सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) 22 मई को अखिल भारतीय श्रमिक हड़ताल का समर्थन करती है और मांग करती है कि सरकार श्रम कानूनों के सभी परिवर्तनों को तुरंत वापस ले

पिछले कुछ दिनों में कई राज्य सरकारों ने अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के बहाने अपने राज्यों में महत्वपूर्ण श्रम कानूनों को निलंबित कर दिया है । यह उम्मीद की जा रही है कि इस तरह के उपायों से निवेश को आकर्षित करने में मदद मिलेगी और मौजूदा व्यवसायों को उन नुकसानों को ठीक करने की अनुमति मिलेगी जो राष्ट्रव्यापी COVID-19 लॉकडाउन के परिणाम स्वरूप हुए हैं ।

उत्तर प्रदेश सरकार ने एक अध्यादेश के माध्यम से एक हजार दिनों की अवधि यानी लगभग तीन वर्षों के लिए 38 श्रम कानूनों को निलंबित कर दिया है। इनमें न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, ट्रेड यूनियन अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम, व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य अधिनियम, अनुबंध श्रम अधिनियम, अंतरराज्यीय प्रवासी श्रम अधिनियम और मातृत्व लाभ अधिनियम शामिल है।

मध्य प्रदेश सरकार ने फैक्ट्रीज एक्ट, कॉन्ट्रैक्ट एक्ट और इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट में भारी बदलाव किए हैं। कम से कम आठ राज्य सरकारों (गुजरात, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, ओडिशा, महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार और पंजाब) ने कार्यकारी आदेशों के माध्यम से दैनिक कार्य घंटों को आठ से बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया है। जबकि पंजाब, मध्य प्रदेश और हरियाणा ने फैक्ट्रियों अधिनियम के तहत निर्दिष्ट ओवरटाइम दरों का भुगतान करने का वादा किया है, बाकी ने नहीं किया है।

ये परिवर्तन कारखानों के मालिकों को मन-मुताबिक श्रमिकों को काम पर रखने और निकालने की छूट देंगे लेकिन श्रमिकों के काम संबंधी विवाद उठाने और शिकायतों का निवारण किये जाने के अधिकारों को छीन लेंगे। काम के घंटे एक सप्ताह में 72 हो जाएंगे और गारंटीकृत न्यूनतम वेतन का अधिकार निलंबित कर दिया जाएगा। ठेकेदारों को श्रमिकों को अनुबंधित करने के लिए लाइसेंस प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होगी, प्रभावी रूप से उन्हें किसी भी सरकारी विनियमन या नियंत्रण के बिना कार्य करने की अनुमति होगी। कारखानों और अन्य कार्यस्थलों के निरीक्षण से संबंधित आवश्यकताओं को वापस ले लिया जाएगा और संपूर्ण श्रम कानून प्रवर्तन मशीनरी को निलंबित कर दिया जाएगा।

ये परिवर्तन उन कुछ मूल अधिकारों और संरक्षणों को भी छीन लेंगे, जो हमारे देश में दशकों से चली आ रही नवउदारवादी और मजदूर विरोधी नीतियों के बावजूद बचे हुए हैं । दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने इन उपायों के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) में शिकायत दर्ज कराई है। भारत 1919 के ILO समझौते, कार्य अवधि (उद्योग) समझौते का एक हस्ताक्षरकर्ता है। जिन देशों ने समझौते की पुष्टि की थी, वे सप्ताह में 48 घंटे से ज़्यादा मज़दूरों से काम न कराने के लिए सहमत हुए थे। काम के घंटे बढ़ाने का कदम इस प्रतिबद्धता का एक गंभीर उल्लंघन है।

22 मई को इस दमनकारी कदम के विरोध में देश भर के मजदूर संघ हड़ताल पर जा रहे हैं। सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) भारत केमजदूर यूनियनों के साथ एकजुटता के साथ खड़ी है और देशव्यापी हड़ताल के उनके आह्वान का समर्थन करती है। पार्टी मांग करती है कि सरकार सभी श्रम कानूनों को तुरंत बहाल करे। हमारे समाज में मौजूद अन्याय, असमानता और आक्रोश COVID-19 के खिलाफ हमारी लड़ाई में सबसे बड़ी बाधा रही है। यह स्पष्ट है इस संकट से हम केवल सामाजिक न्याय और मानवीय गरिमा के प्रति गहन प्रतिबद्धता द्वारा ही उभर सकते  हैं ।

पन्नालाल सुराणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) | मोबाइल: 9423734089

संदीप पाण्डेय, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) | ईमेल: ashaashram@yahoo.com

श्याम गंभीर, प्रमुख महासचिव, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया)

सुरभि अग्रवाल, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया)

नीरज कुमार, राष्ट्रीय अध्यक्ष, सोशलिस्ट युवजन सभा | मोबाइल: 7703933168

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