प्रोफेसर गुरु दास अग्रवाल द्वारा प्रधान मंत्री नरेंद मोदी को लिखा गया आखिरी पत्र….

प्रधान मंत्री को लिखा गया आखिरी पत्र

मातृ सदन, जगजीतपुर

कनखल, हरिद्वार।

दिनांकः 30 सितम्बर, 2018

सेवा मेंः श्री नरेन्द्र भाई मादी

माननीय प्रधान मंत्री, भारत सरकार, 

नई दिल्ली।

विषयः मां गंगा जी की वर्तमान भीषण दुर्दशा के लिए तुरंत अतिआवश्यक कदम उठाने और उनकी अविरलता, प्रवाह तथा जल, गाद तथा प्राणीतंत्र की गुणवत्ता सुनिश्चित करने हेतु केन्द्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए मेरा 22 जून से चल रहा आमरण अनशन। 

आदणीय प्रधान मंत्री जी,

आज मेरे विषयान्तर्गत उपवास/तपस्या का 101वां दिन पूरा हुआ। फरवरी में केन्द्र सरकार के गंगा मंत्रालय/नमामि गंगे आदि के क्रियाकलापों से पूर्णतया निराश हो जब मैंने 22 जून तक कुछ अपेक्षाएं पूरी न होने पर 22 जून 2018 से आमरण अपवास करने का निर्णय लिया तो 24 फरवरी को इस आशय का पत्र अपनी अपेक्षाएं स्पष्ट करते हुए स्पीड पोस्ट द्वारा भेजा था (देंखें संलग्नक 1 स्पीड पोस्ट की प्रतिलिपि के साथ)। पत्र पर किसी भी प्रकार प्रतिक्रिया न पाने पर और न ही भू-स्थिति या कार्य विधि में कोई भी अंतर दिखने पर दूसरा पत्र 13 जून, 2018 पुनः अपनी अपेक्षाओं और 22 जून से आमरण अनशन करने का अपना निर्णय स्पष्ट करते हुए आपको भेजा (देंखें संलग्नक 2 स्पीड पोस्ट की प्रतिलिपि के साथ)। एक बार फिर न कोई प्रतिक्रिया, न भू-स्थिति में कोई बदलाव। फलतः मैंने अपने निश्चयानुसार 22 जून 2018 से अपना आमरण उपवास प्रारम्भ कर सूचना आपको अपने 23 जून के पत्र से दे दी (देंखें संलग्नक 3)।

आपने 2014 के चुनाव के लिए वाराणसी से उम्मीदवारी भाषण में कहा था – ’मुझे तो मां गंगा जी ने बुलाया है – अब गंगा से लेना कुछ नहीं, अब तो बस देना ही है।’ मैंने समझा आप भी हृदय से गंगा जी को मां मानते हैं (जैसा कि मैं स्वयं मानता हूं और 2008 से गंगा जी की अविरलता, उसके नैसर्गिक स्वरूप और गुणों को बचाए रखने के लिए यथाशक्ति प्रयास करता रहा हूं) और मां गंगाजी के नाते आप मुझसे 18 वर्ष छोटे होने से मेरे छोटे भाई हुए। इसी नाते आपको अपने पहले तीन (संलग्नक 1 से 3) पत्र आपको छोटा भाई मानते हुए लिख डाले। जुलाई के अंत में ध्यान आया कि भले ही मां गंगा जी ने आपको बड़े प्यार से बुलाया, जिताया और प्रधान मंत्री पद दिलाया पर सत्ता की जद्दोजहद (और शायद मद भी) में मां किसे याद रहेगी – और मां की ही याद नही ंतो भाई कौन और कैसा। यह भी लगा कि हो सकता है कि मेरे पत्र आपके हाथों तक पहुंचे ही न हों – शासन तंत्र में ही कहीं उलझे पड़े हों। अतः 5 अगस्त 2018 पुनः आपको एक पत्र अबकी बार आपको छोटा भाई नहीं प्रधान मंत्री सम्बोधित करते हुए भेजा (देंखें संलग्नक 4) और आप तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए उसकी एक प्रति बहन उमाश्री भारती जी के माध्यम से भिजवाई। मुझे पता चला है कि वह पत्र आपके हाथों व केन्द्रीय मंत्रिमण्डल की बैठक तक पहुंचा है। पर परिणाम? परिणाम, आज तक तो वही ढाक के तीन पात। कोई अर्थपूर्ण पहल नहीं। गंगा मंत्री गडकरी जी को न गंगाजी की समझ है न उनके प्रति आस्था (हां, दिखाने भर की श्रद्धा हो सकती है)। फिर सड़कों के जाल से फुरसत कहां, और गंगाजी में मालवाहक जहाज भी तो चलाने हैं, चाहे उसके लिए गंगाजी को वाराणसी की खाड़ी में परिवर्तित करना पड़े। नमामि गंगे के हजारों करोड़ रुपए से सैकड़ों सीवजे ट्रीटमेण्ट प्लांट बन जाएंगे और करोड़ों नगर वासियों का वोट मिलने का जुगाड़ हो जाएगा। गंगा जी बेचारी क्या देंगी?

तो जैसा मैंने आपने पहले वाक्य में लिखा, आज मात्र नींबू पानी लेकर उपवास करते हुए मेरा 101वां दिन है – यदि सरकार को गंगाजी के विषय में, वे युगों युगों तक अपने नैसर्गिक गुणों से भारतीय संस्कृति में विश्वास रखने वालों को लाभान्वित करती रहें, इस दिशा में कोई पहल करनी थी तो इतना समय पर्याप्त से भी अधिक था। अतः मैंने निर्णय लिया है कि मैं आश्विन शुक्ल प्रतिपदा (तदनुसार 9 अक्टूबर, 2018) को मध्यान्ह अंतिम गंगा स्नान, जीवन में अंतिम बार जल और यज्ञशेष लेकर जल भी पूर्णतया (मुंह, नाक, ड्रिप, सिरिंज या किसी भी माध्यम से) लेना छोड़ दूंगा और प्राणांत की प्रतीक्षा करूंगा (9 अक्टूबर मध्यांह 12 बजे के बाद यदि कोई मुझे मां गंगाजी के बारे में मेरी सभी मांगें पूरी करने का प्रमाण भी दे तो मैं उसकी तरफ ध्यान भी नहीं दूंगा)। प्रभु राम जी मेरा संकल्प शीघ्र पूरा करें, जिससे मैं शीघ्र उनके दरबार में पहुंच, गंगाजी की (जो प्रभु राम जी की भी पूज्या हैं) अवहेलना करने और उनके हितों को हानि पहुंचाने वालों को समुचित दण्ड दिला सकूं। उनकी अदालत में तो मैं अपनी हत्या का आरोप भी व्ष्क्तिगत रूप से आप पर लगाऊंगा – अदालत माने न माने।

प्रभु राम जी आपको सदबुद्धि दें इस शुभकामना के साथ।

मां गंगा जी के प्रति सच्ची निष्ठा वाला

उनका पुत्र

(स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद)

सन्यास पूर्व डॉ. गुरुदास अग्रवाल

प्रोफेसर एण्ड हेड, सिविल, आई.आई.टी. कानपुर

सदस्य सचिव, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

प्रतिलिपिः

1. माननीय राष्ट्रपति, राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली।

2. माननीय मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय, नई दिल्ली।

3. माननीय मुख्य न्यायाधीश, उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय, नैनीताल।

4. माननीय चेयरमैन, राष्ट्रीय हरित अभिकरण, नई दिल्ली।

5. श्री नितिन गडकरी जी, मा. जल संसाधन व गंगा पुनर्जीवन मंत्री, भारत सरकार, नई दिल्ली।

6. सुश्री उमा भारती जी, मा. पेय जल एवं स्वच्छता मंत्री, भारत सरकार, नई दिल्ली।

7. माननीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री, भारत सरकार, नई दिल्ली।

8. माननीय राज्यपाल, उत्तराखण्ड शासन, देहरादून।

9. माननीय मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड सरकार, देहरादून।

10. श्रीमान मुख्य सचिव, उत्तराखण्ड शासन, देहरादून।

11. श्रीमान पुलिस महानिदेशक, उत्तराखण्ड पुलिस, देहरादून।

12. श्रीमान मण्डलायुक्त, हरिद्वार।

13. श्रीमान जिलाधिकारी, जिला हरिद्वार।

14. श्रीमान वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, जिला हरिद्वार।

15. श्रीमान थानाध्यक्ष, थाना कनखल, हरिद्वार।

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