सरकारी पदों पर सीधी नियुक्तियां संविधान के विरुद्ध
प्रेस रिलीज़
                   
            

मोदी सरकार ने विभिन्न सरकारी विभागों में निजी क्षेत्र के 9 विशेषज्ञों की संयुक्त सचिव के रैंक पर सीधी नियुक्ति की है. राजस्व विभाग में भी इस तरह की नियुक्तियां होनी थीं, लेकिन प्रक्रियागत कारणों से वे रद्द हो गईं. मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही भारत सरकार को ‘निगम सरकार’ में बदलने का काम तेज कर दिया था. उसी की एक बानगी ये सीधी  नियुक्तियां हैं. सरकार ने एक साल पहले निजी क्षेत्र के तथाकथित विशेषज्ञों से इन नियुक्तियों के लिए आवेदन मांगे थे. यह भी खबर है कि कुछ और विभागों में इस तरह की नियुक्तियां की जायेंगी.

फिलहाल ये नियुक्तियां 3 साल के लिए हैं. यह अवधि 5 साल तक बढ़ाई जा सकती है. सरकार जिस तरह से सरकार के विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को निजी हाथों में सौंपती जा रही है, उसका यही संकेत है कि अगला कदम सीधी नियुक्तियों को पूर्णकालिक बनाने का होगा. सरकार की इस कवायद का एक अन्य संकेत यह भी है कि भविष्य में ये विशेषज्ञ विदेशी प्राइवेट कंपनियों से भी लिए जाएं. इतना ही नहीं, आगे राज्य सरकारों में भी इस तरह की सीधी नियुक्तियां की जा सकती हैं.      
अभी तक संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की सिविल सेवा परीक्षा या अन्य केंद्रीय सेवाओं  की परीक्षा पास करने वाले नागरिक संयुक्त सचिव के रैंक पर पदासीन होते रहे हैं. संयुक्त सचिव के रैंक तक पहुंचने में उन्हें कई सालों के कार्य अनुभव से गुजरना होता है. जिन सरकारी विभागों में ये सीधी नियुक्तियां की गई हैं, वहां इस रैंक पर पहले से लोग कार्यरत हैं. सरकार के इस फैसले से कार्यकुशलता बढ़ने के स्थान पर झगड़ा बढ़ सकता है. मजेदारी यह है कि सीधे संयुक्त सचिव के पद पर बिठाये गए इन विशेषज्ञों का चयन यूपीएससी के मार्फत किया गया है! इसका मतलब है कि सरकार महत्वपूर्ण संवैधानिक संस्था यूपीएससी को निजी क्षेत्र के लिए प्रवेश द्वार बना रही है.     
सोशलिस्ट पार्टी मोदी सरकार के इस निर्णय को संविधान विरोधी मानती है और इसे तुरंत निरस्त करने की मांग करती है. पार्टी देश के समस्त नागरिकों से अपील करती है कि वे इस संविधान विरोधी फैसले को निरस्त करने के लिए सरकार पर जबरदस्त दबाव बनायें.
डॉ. प्रेम सिंह
अध्यक्ष    

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