‘जलियांवाला बाग और क़ुर्बानी के सौ साल’
सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) और आहंग के संयुक्त तत्वावधान में ‘जलियांवाला बाग और क़ुर्बानी के सौ साल’ कार्यक्रम का आयोजन किया किया। शिव मंदिर सभा,सत्य निकेतन और रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन,सत्य निकेतन ने इस कार्यक्रम में अपनी पूरी भागीदारी निभाई। कार्यक्रम के पहले सत्र में क्रांतिकारी गीतों और कविताओं का जोश से भरा प्रस्तुति दी गयी।जिसमें बेरख्त की कविता ‘मदर’ और ‘अध्यापक’ कविता का वाचन क्रमशः अमोघ और आबिद मुबारक ने किया। कात्यायनी की कविता इंक़लाब’ का पाठ हिरण्य हिमकर द्वारा किया गया।पाश की कविता ‘हम लड़ेंगे साथी’ का पाठ कारण द्वारा किया गया।सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता ‘जारी है,जारी है अभी लड़ाई जारी है’ का पाठ अंशुमान ने किया। ‘अब अंधेरा जीत लेंगे,लोग अपने गाँव के’ कविता का पाठ राहुल द्वारा किया गया।स्वर्णजीत सिंह ने ‘ऐ मेरे प्यारे वतन’ और ‘कर चले हम फिदा’गीतों का भाव-विभोर प्रस्तुति दी।कार्यक्रम के दूसरे चरण में

“नवसाम्राज्यवाद का विरोध और जलियांवाला बाग” विषय पर परिचर्चा में मुख्य वक्ता डॉ शशि शेखर सिंह रहे और परिचर्चा की अध्यक्षता सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ प्रेम सिंह ने की।विषय पर बोलते हुए डॉ शशि शेखर सिंह ने इतिहास का विस्तृत संदर्भ बताते हुए वर्तमान के प्रति सचेत रहने को कहा।उन्होंने जलियांवाला बाग की घटना का वर्ष 1919 को भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण साल माना।।उन्होंने इतिहास के संदर्भों से वर्तमान को विश्लेषित करने पर जोर दिया।आज नवसाम्राज्यवादी ताक़तें पूंजी के साथ भारतवर्ष में अपनी जड़ें जमा रहा है,ऐसे में समता-न्याय-स्वतंत्रता जैसे संवैधानिक मूल्यों की हत्या की जा रही है।।।अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए डॉ प्रेम सिंह ने कहा कि आज चुनावी राजनीति भी नवसाम्राज्यवाद की ही देन।नवसाम्राज्यवाद बाज़ार के जरिये हमारे दिमाग मे घर कर चुका,हमारे सांस्कृतिक विचारों में भी वो अपना मुनाफा ढूंढ लेता है।ऐसे में हमारी सरकारें भी नवसाम्राज्यवाद के आगे घुटने टेके हैं।ऐसी परिस्थिति में हम चाहे आज का दिन याद करे,गांधी-नेहरू जयंती आदि मनाएं उसका कोई सार्थक मकसद नहीं है।उन्होंने युवाओं को सचेत करते हुए कहा कि आप इस नवउदारवादी-नवसाम्राज्यवादी स्थितियों की पहचान कर देश को लोकतांत्रिक मूल्यों पर लाकर देश को बचाएं।शिव मंदिर सभा केअध्यक्ष डॉ बी.आर.गुप्ता ने वक्तायों को धन्यवाद दिया।

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