Unlocking the Economy

Unlocking the Economy

Pannalal Surana | The financial package announced by the RBI Governor may start oiling the businesses but the majority of the labourers may still not find jobs. So it is imperative that the government enhance disbursement to needy people.

महामारी में विज्ञान और धर्म

महामारी में विज्ञान और धर्म

अरुण कुमार त्रिपाठी | आधारित साजिश के आख्यान चला रहे हैं तो समझदार लोग अपने अपने घरों में अपने अपने आध्यात्मिक अनुभवों के आधार पर आत्ममंथन कर रहे हैं और दुनिया भर के डाक्टर और वैज्ञानिक मानवता का उपचार करने के साथ नए अनुसंधान कर रहे हैं।

तुम पर हमें नाज़ है फरह

तुम पर हमें नाज़ है फरह

फरह नाज़ बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं। जब आज़मगढ़, संजरपुर में मास्क बनाने का काम शुरू हुआ तो उन्होंने बढ़चढ़ उसमें हिस्सा लिया। कुछ दिनों बाद यह तय हुआ कि मास्क बनाने के लिए दो रूपया प्रति मास्क दिए जाएंगे। मास्क बनाने का काम महिलाएं ही कर रहीं हैं। फरह को जब भी पैसे […]

समाज बीमार, बाजार लाचार, वापस सरकार

समाज बीमार, बाजार लाचार, वापस सरकार

अरुण कुमार त्रिपाठी | ध्यान देने की बात है कि जनता और औद्योगिक क्षेत्रों की यह मदद वे सरकारें भी कर रही हैं जो दक्षिणपंथी हैं और सरकारों के कल्याणकारी काम में कम से कम यकीन करती हैं। मतलब बाजार हर समस्या का समाधान कर लेगा यह अवधारणा ध्वस्त हो रही है।

जस्टिस सच्चर के पुण्य तिथि पर याद करते हुए

जस्टिस सच्चर के पुण्य तिथि पर याद करते हुए

नीरज कुमार | जस्टिस राजिंदर सच्चर अपनी पीढ़ी के एक निष्ठावान और किवदंती थे । उन्होंने न्यायविद के रूप में कमान संभाली लेकिन इन सबसे ऊपर, उन्हें एक बेहतरीन और अद्भुत इंसान के रूप में याद किया जाएगा ।

डॉ. अम्बेडकर की जयंती के अवसर पर

डॉ. अम्बेडकर की जयंती के अवसर पर

नीरज कुमार | डॉ. अम्बेडकर यह मानते थे कि मनुष्यों में केवल राजनीतिक समानता और कानून के समक्ष समानता स्थापित करके समानता के सिद्धांत को पूरी तरह सार्थक नहीं किया जा सकता | जब तक उनमें सामाजिक-आर्थिक समानता स्थापित नहीं की जाती, तब तक उनकी समानता अधूरी रहेगी |

कोरोना महामारी : प्रतिक्रांति की गहरी नींव (1)

कोरोना महामारी : प्रतिक्रांति की गहरी नींव (1)

प्रेम सिंह | ताला-बंदी के चार-पांच दिनों के भीतर यह सच्चाई सामने आ गई कि अमीर भारत असंगठित क्षेत्र के करीब 50 करोड़ प्रवासी/निवासी मेहनतकशों की पीठ पर लदा हुआ है. इनमें करीब 10 प्रतिशत ही स्थायी श्रमिक हैं. बाकी ज्यादातर रोज कुआं खोदते हैं और पानी पीते हैं.