Day 3 of Morning-to-Evening Fast: किसान अब बाजार के हवाले, राशन व्यवस्था पर निर्भर लोगों के लिए बुरे दिन आने वाले हैं

हाल ही में केन्द्र सरकार ने जो तीन कृषि सम्बंधित विधेयक पारित करवाए हैं वे किसान विरोधी हैं जिसके खिलाफ किसान सड़क पर भी उतरे हैं। यदि ये विधेयक किसान विरोधी नहीं होते तो राज्य सभा में बिना चर्चा के और मत विभाजन के इसे पारित करवाने की नौबत नहीं आती। हलांकि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का राज्य सभा में बहुमत था लेकिन सरकार को यह भरोसा नहीं था कि सभी सहयोगी दल उसका साथ देंगे। आखिर शिरोमणि अकाली दल गठबंधन से बाहर ही आ गया और अब उसके नेता सुखबीर सिंह बादल किसानों के साथ आंदोलन में शामिल हो गए हैं।

किसान को अब न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी नहीं रह गई, निजी क्षेत्र को कृषि उत्पाद के असीमित भण्डारण की छूट मिल गई है और खेती कम्पनियों के हवाले की जा रही है। ये सारे कदम किसान विरोधी हैं। इसीलिए आज किसान सड़क पर है।करोना काल में जब सारे उद्योग धंधे बंद थे तो लोगों को यह समझ में आ गया कि अर्थव्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र कृषि है। बाकी उत्पादों के बिना मनुष्य का काम चल सकता है लेकिन कृषि उत्पाद के बिना नहीं। यह राष्ट्रीय शर्म का विषय होना चाहिए कि हमारा किसान कर्ज के बोझ में आत्महत्या कर लेता है क्योंकि उसे अपने उत्पाद का लाभकारी मूल्य नहीं मिलता। सरकार कहती तो है कि वह किसान को अपनी लागत का डेढ़ गुणा देती है लेकिन वह ईमानदारी से यह नहीं तय करती। और अब जब न्यूनतम समर्थन मूल्य की कोई गारंटी नहीं रहेगी तो हम किसान को निजी खरीददारों द्वारा शोषण के लिए छोड़ देंगे।

कायदे से किसान की आय सबसे अधिक होनी चाहिए क्योंकि वह अर्थव्यवसथा का सबसे महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। जब हम किसान कहते हैं तो हमारा तात्पर्य खेती की मजदूरी करने वाले से है यानी जो व्यक्ति स्वयं खेती करता है। यदि कृषि की आय अन्य उद्योगों में काम करने या सरकारी-गैर सरकारी नौकरी करने वालों से ज्यादा होगी तो इस देश की बेरोजगारी की समस्या हल हो जाएगी क्योंकि फिर ज्यादातर लोग पढ़ने-लिखने के बाद भी खेती करना ही पसंद करेंगे।

एक अन्य संकट जो खड़ा होने वाला है कि जब किसान अपना उत्पाद निजी क्षेत्र की कम्पनियों को बेचेगा तो न्यूनतम समर्थन मूल्य पर होने वाली सरकारी खरीद बंद हो जाएगी और भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में अनाज आना बंद हो जाएगा और सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी। राशन की दुकान की व्यवस्था का महत्व भी कोरोना काल में और स्पष्ट हो गया जिनके माध्यम से गरीबों तक अनाज पहुंचाया गया। क्या सरकार ने सोचा है कि उन गरीब परिवारों का क्या होगा जो अपनी खाद्य सुरक्षा के लिए पूरी तरह से राशन से मिलने वाले अनाज पर निर्भर हैं? यह सरकार की गरीब विरोधी सोच को एक बाद पुनः उजागर करता है।   

संदीप पाण्डेय, 0522 2355978

अनिल मिश्र (सोशलिस्ट किसान सभा अध्यक्ष)

असीम भाई (हरदोई)

सलमान राईनी, 9335281976

मोहम्मद अहमद, 7007918600

सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) जिला कार्यालय
कल्बे आबिद मार्ग, पुरानी सब्जी मण्डी के पास, मुख्तारे हलवाई के सामने, लखनऊ

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