सरकार की किसान के उत्पाद को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने की एक व्यवस्था है ताकि किसान को नुकसान न हो। हाल ही में सम्पन्न रबी मौसम में किसान को धान का ग्रेड ए व बी का क्रमषः रु. 1360 व 1400 प्रति कंुतल दर नहीं मिली। सरकारी खरीद केन्द्र या तो खुले नहीं थे अथवा वे खरीदने से मना कर दे रहे थे। मजबूरी में किसान को अपना धान निजी धान पाॅलिषिंग कारखानों को दलालों के माध्यम से रु. 1000 या 1100 में बेच देना पड़ रहा था। अभी किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य न मिलने के संकट से गुजरा ही था कि एक और संकट खड़ा हो गया। बेमौसम बरसात और कहीं-कहीं ओले पड़ने से किसान को अपूर्तीनीय क्षति हो गई है।

किसानों की आत्महत्या, जो अभी तक हम महाराष्ट्र के विदर्भ अथवा आन्ध्र प्रदेश में सुनने में आती थी अब उत्तर प्रदेश में भी एक प्रकोप के रूप में पहुंच चुकी है।

हमारी मांग है कि किसान को बीमा का पैसा दिया जाए जो किसान के्रडिट कार्ड बनवाने के लिए पंजीकरण के साथ ही स्वतः हो जाता है। इस पैसे से किसान अपना ऋण अदा कर सकता है, जो कि किसान की अत्महत्या का एक बड़ा कारण बनता है।

उस किसान को जो जमीन का मालिक है, भले ही उसके पास किसान के्रडिट हो अथवा न, तो कुछ मुआवजा मिल जाएगा लेकिन दो ऐसी श्रेणी के लोग हैं जो मुआवजे के हकदार नहीं बन पाएंगे। एक तो वह भूमिहीन किसान है जो बटाई पर दूसरे का खेत लेकर खेती कर रहा था। चूंकि जमीन उसके नाम नहीं है इसलिए उसे कोई मुआवजा नहीं मिल सकता। जब कि खेती करते समय हो सकता है कि उसने भी कुछ निवेश किया हो। दूसरी श्रेणी उन भूमिहीन मजदूरों की है जिन्होंने असली मेहनत की – बीज रोपाई से लेकर खाद डालने, निराई करने तथा फसल काटने तक – लेकिन किसी सरकारी दस्तावेजों पर चूंकि उसका नाम अंकित नहीं इसलिए वह भी मुआवजे से वंचित रह जाएगा। कुछ समझौतों में नकद मजदूरी देने की बात नहीं होती। मजदूर उत्पादन का एक हिस्सा ले लेता है। सवाल यह है कि जब उत्पादन ही नहीं हुआ तो उसे क्या मिलेगा?

एक ऐसी राष्ट्रीय नीति की जरूरत है जिसमें बटाईदारों एवं भूमिहीन मजदूरों के कृषि उत्पादन में योगदान को स्वीकार किया जाए एवं ऐसी परिस्थिति में जब कृषि उत्पाद को नुकसान पहुंचे उन्हें भी मुआवजे का हकदार माना जाए। यह बटाईदारों व कृषि मजदूरों के लिए कोई बीमा योजना के रूप में हो सकता है।

हलांकि केन्द्रीय सरकार ने किसानों के नुकसान के आंकलन के पश्चात वित्तीय सहायता की घोषणा की है तथा ऋण लिए हुए किसानों के ब्याज को माफ किया है, यह देखा जाना चाहिए कि भूस्वामी किसानों और क्रिसान क्रेडिट कार्ड धारक किसानों के साथ-साथ बटाईदारों व भूमिहीन मजदूरों को भी क्षतिपूर्ति मिलनी चाहिए। सौ प्रतिशत नुकसान की स्थिति में ऋण माफी या अगली फसल के लिए बीज, खाद, पानी व बिजली पर सौ प्रतिशत सब्सिडी देने पर विचार कर सकती है।

ऊपर से भूमि अधिग्रहण बिल का संकट मुंह बाए खड़ा है। किसानों के लिए तो अच्छे दिन कतई नहीं आए। पहले अध्यादेष लाने पर और संसद में उसे पारित न करा पाने की स्थिति में जब अध्यादेष समाप्त हो गया तो नरेन्द्र मोदी सरकार दूसरा अध्यादेष ले आयी है। इसे जला कर आज हम इस पुरजोर विरोध करना चाहेंगे।

वर्तमान संकट से एक चीज सीखने को मिलती है। यदि सरकार खरीद के मामले में लापरवाही बरतेगी क्योंकि कहीं न कहीं यह फैसला हो चुका है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली में राशन देने के बजाए लोगों के बैंक खातों में नकद हस्तांतरित कर दिया जाएगा तो भारतीय खाद्य निगम के गोदाम धीरे-धीरे खाली हो जाएंगे और बेमौसम बरसात से खड़े हुए वर्तमान संकट के समय की चुनौती का हम सामना न कर पाएंगे। इसी तरह महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना, जिसके विषय में भी वर्तमान सरकार की सोच कोई सकारात्मक नहीं है, गरीब परिवारों के लिए नकद का स्रोत है और संकट के ऐसे समय में उनके लिए एक उम्मीद की किरण है।

संदीप पाण्डेय
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, सोषलिस्ट पार्टी (इण्डिया)

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