सोशलिस्‍ट पार्टी के 14-15 नवंबर 2016 को लखनऊ में चौथे राष्‍ट्रीय अधिवेशन में पारित रक्षा प्रस्ताव

केंद्र की वतर्मान भाजपा सरकार संविधान-विरोधी नवउदारवादी नीतियों को पिछली सरकारों से ज्‍यादा तेजी से लागू कर रही है। इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है कि सरकार ने रक्षा उपकरणों के उत्पादन में 49 प्रतिशत की विदेशी निवेश की सीमा खत्म करके विदेशी कंपनियों को सौ प्रतिशत तक निवेश की छूट दे दी है और धड़ाधड़ रक्षा संबंधी विदेशी सौदे करती जा रही है। सौ प्रतिशत निवेश की छूट में बस सिर्फ यही शर्त रखी गई है कि जब विदेशी निवेश सौ प्रतिशत होगा तो उसके लिए सरकार की मंजूरी लेनी होगी। पर इसी के साथ वे सारी शर्तें हटा दी गई हैं जो रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश के लिए जरूरी थीं। सन 1959 के आर्म्स एक्ट के तहत छोटे हथियार और गोला बारूद का निर्माण स्थानीय स्तर पर ही किया जाना था। उसके लिए विदेशी निवेश की आवश्यकता नहीं महसूस की गई थी। लेकिन ‘मेक इन इंडिया’ का कार्यक्रम चलाने वाली मोदी सरकार ने उसमें भी ‘मेक इन फारेन’ की छूट दे दी है। विदेशी निवेश की दूसरी शर्त आधुनिक प्रौद्योगिकी को देश में लाए जाने की होती थी। यानी अगर किसी उपकरण के निर्माण में बाहर से आधुनिक प्रौद्योगिकी देश में आती थी तो उस कंपनी को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की छूट दी जाती थी। लेकिन अब वह शर्त भी हटा दी गई है। यानी अब अगर बाहर की कोई रक्षा कंपनी अपनी पुरानी प्रौद्योगिकी के सहारे ही भारत में कारोबार करना चाहती है या किसी भारतीय कंपनी का अधिग्रहण करना चाहती है तो उसे भी छूट मिल गई है। मोदी सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम में ‘मेक इन फारेन’ का बोलबाला है इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण रक्षा क्षेत्र में शत-प्रतिशत विदेशी निवेश की छूट देना है।
पहले रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश के दौरान यह शर्त भी होती थी कि विदेशी कंपनी को मूल उपकरण निर्माताओं (ओरिजिनल इक्विपमेंट मैनुफैक्चर्स) के साथ संयुक्त उपक्रम करना होता था। अब उसकी भी जरूरत समाप्त कर दी गई है। इससे एक तरफ विदेशी कंपनियों को भारतीय कंपनियों के साथ समान धरातल मिल गया है तो दूसरी तरफ भारतीय कंपनियों को ज्यादा प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा।
लेकिन विदेशी कंपनियों के साथ रक्षा उपकरणों के निर्माण के लिए हो रहे समझौतों के खतरे सिर्फ आर्थिक ही नहीं हैं। वे खतरे उपकरणों की डिजाइन लीक होने और दुश्मनों के हाथ में पड़ने वाले रहस्यों के भी हैं। हाल में इसका एक नमूना उस समय प्रस्तुत हुआ जब गोवा में भारत के लिए पनडुब्बी का निर्माण कर रही फ्रांसीसी कंपनी डीसीएनएस के डाटा बैंक से उस पनडुब्बी के बारे में 22,400 पेज के आंकड़े लीक हो गए। बताया जाता है कि यह आंकड़े दक्षिण एशिया के किसी केंद्र से लीक हुए हैं और वे चीन से होकर पाकिस्तान पहुंचे हैं। हालांकि सरकार ने इसकी जांच का भरोसा दिया है लेकिन उसने अभी तक उस कंपनी पर न तो कोई पाबंदी लगाई है और न ही पनडुब्बी निर्माण के समझौते को रद्द करने की कोई पहल की है। इस बीच फ्रांसीसी लड़ाकू विमान राफेल खरीदने का भी सौदा किया गया है जो अपने में अब तक का सबसे महंगा सौदा बताया जा रहा है। छ्त्तीस राफेल विमान खरीदने के लिए हुए 59,000 करोड़ रुपए के इस सौदे में एक राफेल विमान 1600 करोड़ रुपए का पड़ने जा रहा है।
इस बीच रक्षा मामलों पर सवाल उठाने और संदेह व्यक्त करने को लगातार हतोत्साहित किया जा रहा है। देश के गृह राज्य मंत्री किरण रिजुजू का यह कहना कि इस देश में सुरक्षा बलों पर सवाल उठाने की एक संस्कृति विकसित हो गई है जो गलत है, उसी मानसिकता की एक बानगी है। सेना, सुरक्षा और रक्षा सौदों का मामला इतना भावना प्रधान बना दिया जा रहा है कि कल अगर कोई बोफर्स जैसा घोटाला सामने आया तो कोई नागरिक, समूह या मीडिया उसे उजागर करने का साहस भी नहीं कर पाए। लोकतंत्र में रक्षा संबंधी सारे फैसले चुनी हुई सरकार और संसद करती है। इसलिए सवाल और संदेह सरकार और उसे चलाने वालों पर उठाए जाते हैं, जिन्‍हें यह सरकार सेना की आड लेकर रोकना चाहती है।
इस बीच वन रैंक वन पेंशन को जब सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में पेश कर रही थी, तब हरियाणा के एक सत्तर साल के पूर्व सैनिक ने इसी मुद्दे पर आत्महत्या करके दावे की कलई खोल दी। विडंबना देखिए कि उस मुद्दे पर भी जनता के सामने पूरा सच लाने की बजाय कांग्रेस और आप जैसी पार्टियां वही भावुक राजनीति करती हैं जिसका सहारा सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी लेती है।
यानी एक तरफ सीमा पर तनाव बढ़ाकर रूस, फ्रांस और अमेरिका से हथियारों की खरीद में तेजी लाई जा रही है तो दूसरी तरफ किसान और गरीब परिवार से निकले सैनिकों को आत्महत्या के लिए मजबूर किया जा रहा है। उससे भी आगे कोशिश यह की जा रही है कि उस पर राजनीति करने और भावनाएं भड़काने का हक सिर्फ एक ही पार्टी को हो और उसकी जानकारी पाने, देने और सवाल उठाने का हक नागरिकों और मीडिया को न हो।
सोशलिस्‍ट पार्टी का मानना है कि आज जबकि देश की रक्षा व्‍यवस्‍था को सरकार ने पूरी तरह से विदेशी कंपनियों के साथ जोड कर देश की सीमाओं और उनकी रक्षा करने वाली भारतीय सेना को ही खतरे में डाल दिया है, रक्षा मामलों पर अधिकतम चर्चा और पारदर्शिता की जरूरत है। सोशलिस्‍ट पार्टी रक्षा क्षेत्र में सौ प्रतिशत विदेशी निवेश की छूट के फैसले को तत्‍काल निरस्‍त करने की मांग करती है।
सोशलिस्‍ट पार्टी का नारा
समता और भाईचारा

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