मई को सम्पन्न हुआ बिहार में त्री स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का चुनाव ।

पिछले पंचायत चुनावों की अपेक्षा इस बार हिंसक घटनाएँ कम रही कारण शराब बंदी।
बावजूद कुछ घटनाएँ तो हुई ।

छीटपूट हिंसक घटनाएँ , जिसमें अपहरण हत्या और लूटपाट भी शामिल है के साथ चुनाव 30 मई 2016 को मतदान प्रक्रिया सम्पन्न।
इस बार की चुनाव भी पिछले वर्ष के चुनाव से और भी अव्यवस्था का शिकार रही। कहीं भी देखने को नहीं मिला की चुनाव आयोग सख्ती से आचार संहिता का पालन करवा रहा हो।
नामांकन के लिए जुलूस निकाला गया उसमें अग्नेस्त्र का भी प्रयोग हुआ और बंदूक भी लहराया तथा जो दबंग थे उसने दबंगी भी दिखाई । वोटर पंक्ति में हैं लेकिन दबंग मुखिया उम्मीदवार ने अपने लोगों के साथ बैलेट पर कब्जा किया ।
जबकि चुनाव भी दस चरणों में किया गया।
अब-जब चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आता गया वैसे-वैसे लोकतंत्र की बोली लगने लगी।
एक घटना मैं स्वयं के अनुभव से आपके बीच रखना चाहता हूँ – इस बार बिहार के आठ जिलों का हमने दौरा किया जिसमें पटना, मुज्जफरपुर, समस्तीपुर, बेगुसराय, खगड़िया, पुर्णियाँ, बांका और भागलपुर । चुनाव बहुत ही रोचक रहा जो कभी भी समाज की सेवा नहीं किया था वो अपने पर्चा में लिखते हैं – समाजसेवी, कर्मठ लगनशील, जनप्रिय, शिक्षित, लोकप्रिय, एवं सुयोग्य उम्मीदवार । कमोबेश लगभग सभी प्रत्याशी ने चाहे वह अनपढ़ महिला या पुरुष हो,
जो भी हो; ताजुब तो तव होती थी जब वह कहता भाई साहब चिंता किस बात की है पैसा जेब में रहना चाहिए। हाँ एक दबे अंदाज में जरूर कहता कि शराब बंदी जो हो गया तो हम प्रत्याशी का बहुत जान बच गया है कम से कम दारू तो नहीं बाटना पड़ता है।
खगड़िया जिला के एक गाँव में जब गया तो हमने पूछा कि आपके गाँव की हालत तो बहुत खराब है जनप्रतिनिधि आपके वोट से जीत कर जाता है तो क्या वापस नहीं लौटकर आता है ? तो वो बुजुर्ग चिंता करते हुए हल्की मुस्कान के साथ कहते हैं चुनाव यहां जातियों, धर्मो, रूपया-पैसा के आधार और बल पर होता है श्रीमान तो विकास से क्या लेना देना है इस बार तो शराब बंद है इसके लिए नीतीश कुमार को धन्यवाद भी देते हैं; नहीं तो मनचला युवा और बूढ़े बुजुर्ग भी इसी में मग्न रहता । इसके बाद कौन प्रत्याशी किस जाति का है, धनवान कौन प्रत्याशी है और किस उम्मीदवार से हमें नीजी लाभ मिलेगा वैसे लोग चुनाव में जीत कर आते हैं फिर उसी समीकरण का मजमा लगता है।
एक जगह भागलपुर जिला के एक गाँव में यह देखने को मिलता है, पाँच सौ के अंदर वाली संख्या पर वार्ड सदस्य का चुनाव होता है कि उस प्रत्याशी को दस बारह लोगों के लिए ठंडा (कोकाकोला) सबको पिला रहा है हम दो साथी जब नजदीक पहुँचे तो हमें भी पूछा गया भैया ठंडा पी लो हमने मना करते हुए सवाल किया किस खुशी में ये हो रहा है तो बोलता है चुनाव में वार्ड से खड़े हैं ।
फिर हमने कहा तो ये किस लिए
बोला वोट के लिए
मुझे दुःख भी हुआ फिर हंसी भी आई मैं उस युवक को जानता था वो मजदूर है शादी हो गई है बहुत गरीब भी है लेकिन वाह रे संवेदनहीन समाज के लोग उससे वहाँ पर बैठे लोग ने मिठाई और ठंडा चुनाव के नाम पर तीन सौ पचास रूपये खर्च कर चुका था।
दूसरी तरफ पाँच से पच्चीस लाख रूपये तक मुखिया उम्मीदवार खर्च कर रहा है क्यूँकि भ्रष्टाचार से कैसे लूट कर खाना है उसे पता चल गया है।
एक अंतिम घटना सुनाकर अपनी बात समाप्त करता हूँ चुनाव से एक दिन पूर्व रात्रि में टहलने निकला दो साथी श्याम सक्सेना और मैं कुछ दूर गया था पास के ही गाँव में रात्रि के 11 बजे लोग अपने दरवाजे पर है कुछ सड़क पर चहल कदमी कर रहे हैं कुछ लोग 40/50 उम्र के लोग सड़क के किनारे गोल करके बीड़ी पी रहे, गप्प मार रहे, हैं, कुछ नौजवानोंकी टीम अपने गुटों में घुसुर फूसूर कर रहे हैं नजदीक जाने पर हमने हालचाल पूछा सबने मुस्कराते हुए जवाब भी दिया और एक ने सवाल भी दागा कि कुछ व्यवस्था भी है ? हम लोग इसी आशा में जागरण कर रहे हैं !
हम तो जान ही रहे थे कि लोग क्यूँ इतनी रात तक जाग रहे हैं ।
खैर हमने जवाब देने के बजाय सवाल किया लोकसभा – विधानसभा में तो वोट बेचते ही हैं ये आपके गाँव के विकास से सीधे जुड़ा चुनाव है कम से कम यहाँ तो बचाइए
जवाब था देखिए भैया अच्छे लोगों को वोट कहां देते हैं लोग और जब पाँच साल लूटपाट करके आज के दिन बाँटने आता है तो हम नहीं लेंगे तो गाँव के वोट का ठिकेदार ले लेगा तो हमलोगों ने तय किया है पैसा हम खुद लेंगे।
मैं अफसोस के साथ रात्रि के दो बजे तक घूमता रहा सभी जगह एक जैसी स्थिति का सामना हुआ।
लोकतंत्र खुलेआम चौराहे पर बीक रहा है खरीददार बोली लगा रहा है जैसी जिस प्रत्याशी की हैसियत है पैसा बाँट रहे हैं । कोई कहने वाला नहीं कोई सुनने वाला नहीं। पदाधिकारी भी चैन की नींद सो रहे हैं!

*लोकतंत्र को बचाने के लिए चुनाव सुधार आज की सबसे बड़ी चुनौती है।
*सडी गली चुनाव की व्यवस्था लोकतंत्र पर खतरनाक खतरा है
*समाजवादी तुम कहां हो ?
*भारत माता खतरे में है ?

गौतम कुमार प्रीतम
छात्र – गांधी विचार विभाग
तिलका माँझी भागलपुर विश्वविद्यालय भागलपुर

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