किसान मजदूर ही बन सकते हैं परिवर्तन का हरावल दस्ता

किसान मजदूर ही बन सकते हैं परिवर्तन का हरावल दस्ता

दिनेश सिंह कुशवाह | आज पूरा देश संकट में है और ऐसे में तमाम समाजवादी विचारों से जुड़े राजनीतिक कार्यकर्ताओं को इस बात पर विचार करना चाहिए कि आज यदि डॉक्टर लोहिया जैसा नेतृत्व होता तो वह इस सरकार की जनविरोधी, मजदूर-किसान विरोधी नीतियों का विरोध कैसे करता.

कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के स्थापना दिवस पर विशेष लेख: स्थापना काल से ही समाजवादी पत्र-पत्रिकाओं और लेखकों ने वैचारिक कार्यकर्ता तैयार करने के लिए बड़ा काम किया

कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के स्थापना दिवस पर विशेष लेख: स्थापना काल से ही समाजवादी पत्र-पत्रिकाओं और लेखकों ने वैचारिक कार्यकर्ता तैयार करने के लिए बड़ा काम किया

रामस्वरूप मंत्री | कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना के समय से ही इस आंदोलन के बड़े नेताओं का मानना था कि विचार वान कार्यकर्ता ही देश में संघर्ष और कसमता की राजनीति कर सकता है। इसलिए उन तमाम नेताओं ने विचार फैलाने के लिए लेखन को भी अपने कर्मो में शामिल किया।

दिल्ली सरकार तुरंत छात्र-छात्राओं की जरूरत को पूरा करे: दिल्ली के मुख्यमंत्री के नाम सोशलिस्ट युवजन सभा का पत्र

दिल्ली सरकार तुरंत छात्र-छात्राओं की जरूरत को पूरा करे: दिल्ली के मुख्यमंत्री के नाम सोशलिस्ट युवजन सभा का पत्र

सरकार की चिंता होनी चाहिए कि छात्र-छात्राओं को किसी ना किसी रूप में शैक्षणिक गतिविधि से जोड़ा जाए। उनकी बाधित हो रही पढ़ाई को ऑनलाइन पाठ्यक्रम के जरिए पूरा कराने पर सरकार ज़ोर दे और छात्र-छात्राओं की हर संभव मदद की जाए।

आत्मनिर्भरता के सही मायने क्या हैं? सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के अध्यक्ष पन्नालाल सुराणा का संदेश   

आत्मनिर्भरता के सही मायने क्या हैं? सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के अध्यक्ष पन्नालाल सुराणा का संदेश   

मोदी ने देश को सम्बोधित करते समय आत्मनिर्भरता का नया नारा दिया है. लेकिन आत्मनिर्भरता का सही मतलब क्या है? 

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय: ‘आत्मनिर्भता’ प्राकृतिक संसाधनों के साथ आती है, उसे लुटाने से नहीं!

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय: ‘आत्मनिर्भता’ प्राकृतिक संसाधनों के साथ आती है, उसे लुटाने से नहीं!

सदियों से संघर्षो के बाद मीले अधिकारों को सरकार छीन रही है। इन मजदूरों के अधिकारों की बलि देकर कारपोरेट को फायदा पहुंचाना है। जो आत्मनिर्भरता के कन्सेप्ट के विपरीत है।

कोरोना महामारी : श्रमिक चेतना के उन्मेष का समय

कोरोना महामारी : श्रमिक चेतना के उन्मेष का समय

प्रेम सिंह | राजनीति को बदले बिना अर्थव्यवस्था नहीं बदली जा सकती. कोरोना महामारी को सरकार ने एक मौका बनाया है, तो मौजूदा निगम पूंजीवाद के वास्तविक विरोधी भी इसे एक मौका बना सकते हैं. मजदूरों, किसानों, अर्द्ध-पूर्ण बेरोजगारों का महामारी काल का अनुभव आसानी से भुलाने वाला नहीं होगा. उनके इस अनुभव का राजनीतिकरण होगा तो एक नई श्रमिक चेतना का उन्मेष होगा और कारपोरेट राजनीति के बरक्स वैकल्पिक राजनीति की ज़मीन बनेगी.