– संदीप पाण्डेय
मेरठ में अखिल भारतीय हिन्दू महासभा और ओम शिव महाकाल सेवा समिति देश में पहली नाथूराम गोडसे की मूर्ति लगाने की तैयारी में हैं। इसके पहले उन्नाव के सांसद साक्षी महाराज गोडसे को देशभक्त घोषित कर चुके हैं। सीतापुर में कोई गोडसे का मंदिर निर्माण करने की घोषणा कर चुका है। जब से नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी है तब से हिन्दुत्ववादियों के हौसले बुलंद हो गए हैं और उन्हें लग रहा है कि अब वे जो चाहें कर सकते हैं।
महात्मा गांधी इस देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में जाने जाते हैं। ज्यादातर लोगों के मन में उनके प्रति सम्मान है। उन्होंने मार्टिन लूथर किंग और नेलसन मण्डेला जैसे लोगों को प्रेरणा दी। वे तमाम ऐसे लोेगों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं जो अहिंसक तरीके से अन्याय का प्रतिकार करना चाहते हैं। आम इंसान के लिए जब उसके सारे रास्ते बंद हो गए हों शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन कर अपनी बात कहने का तरीका जो लोग अपनाते हैं को गांधी के कारण ही मान्यता मिली है। यदि पूरी दुनिया में भारत की कोई एक सबसे लोकप्रिय पहचान है तो वह है महात्मा गांधी।
ऐसे महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को हिन्दुत्ववादी शक्तियां गौरवान्वित करना चाहती हैं। इन दिगभ्रमित लोगों को क्या राष्ट्रवादी या देशभक्त कहा जा सकता है? वह भी तब जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वतंत्रता आंदोलन में कोई योगदान न रहा हो। भला गांधी के हत्यारे को महिमामण्डित कर हिन्दुत्ववादी क्या हासिल करना चाह रहे हैं?
महात्मा गांधी शाश्वत मूल्यों, सत्य व अहिंसा, के प्रतीक हैं। ये स्थाई मूल्य हैं क्योंकि मनुष्य का यह नैसर्गिक स्वभाव है। वह स्वाभाविक रूप से सत्य ही बोलता है और उसकी प्रकृति अहिंसा की होती है। किन्हीं विषम परिस्थितियों में वह असत्य या हिंसा का सहारा लेता है। लेकिन हिंसा या असत्य अस्थाई होते हैं। यानी हिंसा या असत्य की परिस्थिति बहुत देर तक नहीं बनी रह सकती। जो हिंसा या असत्य का किसी वजह से इस्तेमाल कर रहा है वह जल्दी से जल्दी अहिंसा और सत्य की परिस्थिति में लौटना चाहेगा। गांधी की या किसी महान व्यक्ति की खासियत यह होती है कि वह सत्य और अहिंसा का साथ विषम परिस्थितियों में भी नहीं छोड़ते जबकि सामान्य मनुष्य भय या प्रलोभन वश असत्य या हिंसा का सहारा लेने लगता है।
महात्मा गांधी चूंकि वैश्विक मूल्यों की बात करते थे इसलिए पूरी दुनिया में मशहूर हो गए एवं कठिन परिस्थितियों में संघर्ष करने वालों के प्रेरणास्रोत बने। आश्चर्य की बात यह है कि वे इजराइल के खिलाफ संघर्ष कर रहे संगठन हमास, जो पूर्ण रूप से अहिंसा के सिद्धांत को नहीं मानता, के नेता खालिद मेशाल के भी प्रेरणास्रोत हैं क्योंकि खालिद मेशाल का मानना है कि गांधी ने समाज के कमजोर तबके के अधिकारों की लड़ाई लड़ी। यानी अन्याय, अत्याचार, शोषण के खिलाफ लड़ने वालों के लिए भी गांधी प्रेरणास्रोत हैं।
शायद दुनिया में जितनी गांधी की इज्जत होती है खुद उनके देश में नहीं होती। पूरी दुनिया में सार्वजनिक जगहांे पर किसी व्यक्ति की सबसे अधिक तस्वीरें या मूर्तियां लगी होगीं तो वे शायद गांधी ही होंगे। भारत के ज्यादातर सरकारी कार्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में उनकी तस्वीर जरूर मिलेगी। हमारे हरेक नोट पर उनकी तस्वीर होती है। किंतु उसी नोट का इस्तेमाल हम भ्रष्टाचार के लिए करते हैं। जिन सरकारी कार्यालयों में उनकी तस्वीरें लगी हैं वहीं पर तमाम अवैध काम होते हैं। चूंकि हम गांधी के मूल्यों को नहीं मानते धीरे-धीरे हम उनको भी मानना छोड़ रहे हैं। इसीलिए गांधी विरोधियों की इतनी हिम्मत बढ़ गई है कि वे राष्ट्रपिता के हत्यारे को खुलेआम महिमामण्डित करने का कार्यक्रम बना रहे हैं।
हिन्दुत्ववादी गांधी से इसलिए चिढ़ते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि गांधी मुसलमानों का पक्ष लेते थे। गांधी को विभाजन के लिए भी दोषी माना जाता है जबकि सच तो यह है कि गांधी विभाजन के खिलाफ थे और विभाजन का निर्णय गांधी की सहमति के बिना कांग्रेस व मुस्लिम लीग ने अंग्रेजों के साथ मिलकर ले लिया। इसीलिए गांधी स्वतंत्रता के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में शरीक नहीं हुए। गांधी ने विभाजन के बाद तय शर्तों के मुताबिक पाकिस्तान का जो उसका जायज हिस्सा बनता था सिर्फ उसे पाकिस्तान को देने की बात कही थी। सच तो यह है कि मुस्लिम लीग की ही तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी द्विराष्ट्र के सिद्धांत को मानती थी और विभाजन के पक्ष मंे था।
परन्तु हिन्दुत्ववादियों को गांधी से असली डर यह है कि उनका पूरा कार्यक्रम गांधी के मूल्यों के विपरीत, यानी हिंसा और असत्य, पर आधारित है और उन्हें मालूम है कि यदि लोग गांधी को मानेंगे तो उन्हें नहीें मानेंगे। इसलिए वे गांधी का बदनाम कर लोगों पर गांधी के प्रभाव को कम करना चाहते हैं।
लेकिन गांधी ईसा मसीह, मोहम्मद साहब, गुरु नानक, कबीर, गौतम बुद्ध की श्रेणी के व्यक्ति थे जो इंसान इंसान के बीच प्रेम और भाईचारे की बात करते थे। उन्होंने लोगों के दिलों में जो जगह बनाई है उसे संघ परिवार यदि समझता है कि उनके हत्यारे को महिमामण्डित कर उनकी छवि को धूमिल कर सकता है तो यह उनके मानसिक दिवालिएपन का उदाहरण है।
इस समय मजेदार बात यह है कि एक तरफ नरेन्द्र मोदी गांधी का अपने स्वच्छ भारत अभियान के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं तो दसरी तरफ संघ परिवार गांधी विरोधियों को खुली छूट दे रखे है। नरेन्द्र मोदी को राष्ट्र के स्तर पर अपनी स्वीकार्यता बनाने के लिए संघ परिवार के प्रतीक गोलवलकर, हेडगेवार या सावरकर का नहीं बल्कि सरदार पटेल और गांधी जो कांग्रेस से जुड़े हुए थे का इस्तेमाल करना पड़ा है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि गांधी विरोधियों का अभियान कितनी देर चल पाएगा या उसे कितना जन समर्थन मिलेगा?