आज़ादी के आंदोलन और समाजवादी आंदोलन की विरासत के अनरूप समाजवादी व्यवस्था कायम करने का लिया संकल्प प्रवासी मज़दूरों, किसानों, स्वस्थ्य, बेरोजगारी एवम पर्यावरण के मुद्दों पर
केंद्रित संघर्ष चलाएंगे समाजवादी
हम समाजवादी संस्थाएं द्वारा आयोजित 2 दिवसीय ऑनलाइन सोशलिस्ट कांफ्रेंस का समापन करते हुए राष्ट्र सेवा दल के राष्ट्रीय अध्य्क्ष गणेश देवी ने कहा कि वैचारिक स्तर पर समाजवादियों के सामने चार बड़ी चुनौतियां हैं।पहली चुनौती लोकतंत्र का आगे का रास्ता तलाशने की है ।एक ऐसी संरचना विकसित करना जरूरी है जिसमें पूरी प्रकृति, ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व हो । उन्होंने इसे कॉस्मोक्रेसी के तौर पर परिभाषित किया।दूसरी चुनौती को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान पर्यावरण संकट के चलते अब समाजवाद का मूल आधार पर्यावरण बनाना जरूरी हो गया है। उन्होंने कहा कि जिन शक्तियों से समाजवादियों का मुकाबला है उन शक्तियों से निपटने के लिए व्यापक एकजुटता जरूरी है। चौथी चुनौती को उन्होंने ब्रेटनवूड संस्थाओं (विश्व. बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष,विश्व व्यापार संगठन) द्वारा पैदा की गई नयी व्यवस्था को सरकारों को दरकिनार करने वाली व्यवस्था बताया ,उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में स्थानीय संघर्षों को अंतरराष्ट्रीय स्वरूप देना आवश्यक हो गया है । उन्होंने पन्नालाल सुराणा ,डॉ संदीप पांडे एवं प्रो.आनंद कुमार द्वारा तैयार प्रस्तावों को ऑनलाइन कांफ्रेंस में शामिल समाजवादियों की सहमति के आधार पर पारित करने की घोषणा की।
कांफ्रेंस में सोशलिस्ट पार्टी इंडिया के राष्ट्रीय अध्य्क्ष पन्नालाल जी द्वारा फॉरेस्ट राईट एक्ट 2006 के तहत आवेदन करने वाले सभी जरूरत मंदों को पट्टा दिये जाने, गरीबी रेखा के निचे रहने वाली विधवा, परित्यक्ता महिलाओं की शिक्षा रोजगार और राशन का इंतजाम किये जाने तथा जम्मूकश्मीर की जेलों में बंद पांच हजार से अधिक राजनीतिक बंदियों को तत्काल रिहा किये जाने, राज्य का दर्जा बहाल करने, लोकतंत्र की बहाली कर चुनाव कराए जाने, कश्मीर समस्या के तत्काल समाधान के लिए सभी पक्षों के.साथ बातचीत शुरू किये जाने का प्रस्ताव रखा गया जिसे कांफ्रेंस में पारित किया गया।सोशलिस्ट पार्टी इंडिया के अध्यक्ष ने कहा कि कश्मीर गत 265 दिन से लॉकडाउन का जो दर्द भुगत रहा है वह अब पूरे देश को महसूस हो रहा है ।
डॉ.संदीप पांडे ने कहा कि हमारी स्वास्थ्य सेवा पूरी तरह से चरमरा गई है। इस संकट की घड़ी में स्वास्थ्य सेवा सिर्फ सरकारी अस्पतालों पर निर्भर हो गई है।उन्होंने यह भी कहा कि स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन, बैंकिंग और बीमा का राष्ट्रीयकरण होना चाहिए ,इनका नीजिकरण नही किया जाना चाहिए।उन्होंने कहा कि न्यूनतम आय और अधिकतम आय में सिर्फ़ 10 गुना का अंतर.होना चाहिए। कृषि क्षेत्र की आय अधिकतम हो ,उनकी आय बाकि क्षेत्रों से सम्मानजनक हो।
प्रस्तावों में शराब व तम्बाकू पर पूर्णतया प्रतिबंध लगाये जाने, स्वास्थ्य व शिक्षा क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण किया जाने, सार्वजनिक यातायात की व्यवस्था मजबूत की जाने, सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लोकव्यापीकरण किया जाने अर्थात राशन की दुकान आकर जो भी राशन लेना चाहे उसे राशन मिले ,राशन कार्ड की व्यवस्था समाप्त किये जाने की मांग की गई ।तीन वर्षों के लिए निजी कम्पनियों बिना मुनाफे के काम करने , किसी भी कम्पनी, विभाग में न्यूनतम व अधिकतम वेतन में दस गुणा से ज्यादा का अंतर समाप्त करने , कृषि को अधिकतम आय का क्षेत्र बनाया जाने , फसल चक्र के बाद भू-स्वामी व भूमिहीन मजदूर की आय लगभग बराबर किये जाने ,
शिक्षा व्यवस्था से परीक्षा प्रणाली को समाप्त किया जाने , शिक्षक एक प्रमाण पत्र जारी करे कि छात्र ने उसके द्वारा पढ़ाए विषय में ज्ञान हासिल किया है। परीक्षा सिर्फ चयन प्रक्रियाओं हेतु हो।सभी धार्मिक स्थलों पर गुरुद्वारों की भांति लंगर की व्यवस्था अनिवार्य की जाने , जिससे पंजाब की तरह देश के दूसरे हिस्सों में भी खाद्य सुरक्षा की गारंटी हो ,अति महत्वपूर्ण व्यक्ति की श्रेणी समाप्त की जाए। मंत्री, अधिकारी, न्यायाधीश सामान्य नागरिकों की तरह रहें। उनके निजी कामों के लिए सरकारी संसाधनों का व्यय न हो। अवैध गतिविधियां निरोधक अधिनियम खत्म कर उसके तहत जेलों में बंद लोगों को रिहा किया जाने की मांग की गई।
सांसद संजय सिंह ने कहा कि समाजवादियों की जमात सर्वाधिक त्याग और बलिदान करने वालो की जमात है | उन्होंने कहा कि दो तरह का समाज बनाया जा रहा है जिसमें एक तरफ तो अंबानी के पास 450 कमरों का मकान है वहीं दूसरी तरफ गरीब 20 रूपये प्रतिदिन जीवन यापन करने को मजबूर है ।समाजवादी विचारधारा से ही देश का विकास संभव है। उन्होंने परिवर्तन के लिए व्यापक एकता पर बल दिया।
समाजवादी चिंतक एवम पत्रकार कुर्बान अली ने समाजवादी आंदोलन की विरासत पर प्रकाश डालते हुए कहा कि राष्ट्रीय आंदोलन के मूल्यों और संविधान को बचाना समाजवादियों की सबसे बडी जिम्मेदारी है।उन्होंने कहा कि हमे अपनी कमियों को महसूस कर उनमें सुधार करने का प्रयत्न करना चाहिए तथा देश को बचाने के लिए व्यापक मोर्चा बनाना चाहिए।
कर्नाटक के डॉ. टी एन प्रकाश ,(पूर्व कर्नाटक मूल्य आयोग अध्यक्ष ,बंगलुरू) ने कहा कि खाद्य एवम पोष्टिक आहार सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी राज्य की है,उन्होंने कहा कि आजादी के बाद जिस तरह समाजवादीयों ने भूमि के बंटवारे के लिए संघर्ष संघर्ष किया था उसी तरीके का संघर्ष खाद्य एवं पौष्टिक आहार वितरण के लिए होना चाहिए ।उन्होंने कहा कि देश की 50 प्रतिशत महिलाओं और बच्चों की आबादी कुपोषित और खून की कमी से पीड़ित है जबकि अनाज ,फल ,सब्जी और दूध सड़ रहा है
कर्नाटक विधान सभा के पूर्व सभापति बीआर पाटिल ने समाजवादियो का व्यापक मंच तैयार करने की आवश्यकता बतलाते हुए कहा कि इसका आधार एक न्यूनतम कार्यक्रम बनाया जाना चाहिए।
डॉ सुनीलम ने कहा कि केंद्र सरकार किसान ,किसानी और गांव को खत्म करना चाहती है। किसानों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। उन्होंने किसानों की क़र्ज़ मुक्ति ,डेढ़ गुने दाम पर खरीद की गारेंटी,44 श्रम कानूनों की बहाली ,8 करोड़ प्रवासी मज़दूरों सहित 54 करोड़ श्रमिकों को 10 हज़ार रुपये दिए जाने, कृषि योग्य भूमि के अधिग्रहण पर रोक लगाने ,मनरेगा में 200 दिन के काम की गारेंटी सभी इक्छुक व्यक्तियों को काम दिए जाने हेतु 3 लाख करोड़ का पैकेज देने की मांग केंद्र सरकार के सामने रखी। उन्होंने कहा कि देश में किसानों, मज़दूरों, जनसंगठनों, आदिवासियों, छात्र छात्राओं के समन्वय काम कर रहे हैं ,उनको एक मंच पर आकर मज़दूरों, किसानों, स्वस्थ्य, बेरोजगारी एवम पर्यावरण के मुद्दों पर केंद्रित संघर्ष चलाने का काम तत्काल शुरू करना चाहिए ताकि सरकार की तानाशाही पूर्ण एवम कॉरपोरेट मुखी नीतियों पर अंकुश लगाया जा सके ।
महामंत्री सुशीला मोराले ने सी ए ए -एन आर सी ,एन पी आर को संविधान विरोधी एवं भेदभाव पूर्ण बतलाते हुए कहा कि नागरिकता कानून नागरिकता देने वाला नहीं नागरिकता छीनने वाला कानून है।उन्होंने कहा कि क्रांतिकारी नेता शरद यादव की संसद से सदस्यता साजिशपूर्ण तरीके से समाप्त कर दी गई है।
समता सन्देश पत्रिका के संपादक हिम्मत सेठ (उदयपुर) ने बदलाव के लिए वैकल्पिक मीडिया की आवश्यकता विषय पर कहा कि समता मुलक समाज निर्माण के लिए समाजवाद का रास्ता अख्तियार करना होगा । इसके लिए समाजवाद के संदेश को प्रसारित करना आज अनिवार्यता बन गई है। आजादी के बाद से अब तक तमाम मीडिया के लोगों ने कभी भी स्वतः गैर बराबरी मिटाने का प्रयास नही किया क्योंकि सभी मीडिया अमीरों द्वारा स्थापित किये गए हैं। इनका उद्देश्य पैसा कमाना है । प्रस्ताव में कहा गया कि आज मीडिया लोगों में भ्रम, पाखंड, साम्प्रदायिक दंगे भड़काने का काम कर रहा है।
सामाजिक कार्यकर्ता मधु मोहिते ने कहा कि साठ साल में युसूफ मेहर अली सेंटर ने अपनी खास पहचान बनाई है । सेंटर के ग्रामीण विकास के मॉडल समाजवादियों द्वारा देश भर में ले जाना चाहिये।
जन चेतना मंच के संयोजक राजेंद्र रजक ने कहा कि व्यवस्था परिवर्तन पर तो काम हुआ है लेकिन विचार परिवर्तन का काम अधूरा है ।जब तक विचार परिवर्तन नहीं होगा तब तक केवल सत्ता हासिल करने से सुधार नही होगा।उन्होंने कहा कि विकासवाद के कारण लोगों की संवेदनाएँ मर गई है ।
बिहार सोशलिस्ट पार्टी इंडिया के महामंत्री गौतम प्रीतम कहा कि पूंजीपतियों की सेवा करने वाला युवा आज सड़कों पर पैदल चलकर घर लौट रहा है ।उन्होंने सरकारों की निम्न वर्गों के प्रति उदासीनता पर कहा कि भारतीय समाज में धर्म, जाति से उपर उठकर मजबूर, वंचित वर्ग को साथ लेकर समाजवाद के रास्ते पर चलकर गैर बराबरी को मिटाया जा सकता है ।
राष्ट्र सेवा दल के महामंत्री -जबरसिंह ने कहा कि सामाजिक न्याय का संघर्ष नए मुकाम पर पहुँचा है अब कोई जाति के आधार पर गुलामी करने को तैयार नहीं है। समाजवादियों को सामाजिक न्याय की शक्तियों को बदलाव के लिए एकजुट करना चाहिए।
इंदौर के पत्रकार एवं समाजवादी नेता राम स्वरूप मंत्री ने समाज वादियों द्वारा प्रकाशित पत्र पत्रिकाओं की विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि समाजवा दी साहित्य का प्रकाशन लगातार हो रहा है परंतु नई पीढ़ी में पढ़ने की रुचि पैदा करने की जरूरत है।
रामस्वरूप मंत्री ने कहा कि 1934 में कांग्रेस समाजवादी पार्टी की स्थापना के समय से ही यह सोच बन चुकी थी कि पूंजीवादी समाचार हमारी बातों को स्थान नहीं देंगे ।अतः हमारे समाचारों का प्रकाशन होना चाहिए।
गुजरात लोकसमिति की मुदिता विद्रोही ने कहा कि सरकार लॉकडाउन का फायदा उठाते हुए मजदूरों की विषम परिस्थितियों में पूर्व के कानूनों को बदलकर मजदूर विरोधी कानून लागू कर रही है जिससे सरकारों का अमानवीय चेहरा सामने आ रहा है ।उन्होंने कहा कि सरकारे आंदोलनकारियों को बदले की भावना से चुन चुनकर जेल में डाल रही है। लॉक डाउन के दौरान स्टेचू ऑफ यूनिटी के आसपास की आदिवासियों का अधिग्रहण सभी कानूनों को ताक पर रख कर किया जा रहा है।
पैगाम मीडिया समूह की प्रमुख आकृति भाटिया जी ने कहा कि मजदूरो की मौत कोई साधारण मौत नही है यह हत्या है। उन्होंने यह भी कहा कि अपने ही देश में रोजगार की तलाश में जाने वाले मजदूरों को प्रवासी मजदूर की संज्ञा देना उचित नहीं है । शहर से लौटकर आने वाले मजदूरों को गांव में.ही खाद्य सुरक्षा का अधिकार एवं रोजगार मिलना चाहिए।
सोशलिस्ट युवजन सभा के राष्ट्रीय अध्य्क्ष ,नीरज कुमार ने समतावादी समाज में निर्माण में युवाओं की भूमिका पर कहा कि समाजवादी एकजुटता एतिहासिक आवश्यकता है ।उन्होंने कहा कि हमें गांव के युवाओं को एकजुट करने का प्रयास करना चाहिए ।उन्होंने बताया कि लोहिया जी और अंबेडकर जी वैचारिक रूप से एक दूसरे के नजदीक थे।वर्तमान चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए समाजवादियों और वामपंथियों को एक साथ आना आज की जरूरत है।
नीरज कुमार ने कहा कि प्रवासी मजदूरों में सबसे ज्यादा युवक और युवतियां है जो पढ़े-लिखे हैं।आज के युवा कहते है कि उनका किसी राजनीतिक दल से कोई रिस्ता नही है,जो सबसे खतरनाक है ।
संजय कनौजिया ने कहा कि युवा नेताओं ने कांग्रेस से अलग होकर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की । उस समय डॉ लोहिया , कमला देवी चट्टोपाध्याय , जयप्रकाश नारायण की उम्र काफी कम थी सबसे बड़े आचार्य नरेन्द्र देव की उम्र 40 वर्ष थी।
समाजवादी समागम के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य,संजय कनोजिया ने कहा कि नेताओं की जनता के साथ था कार्यकर्ताओं से दूरी लगातार बढ़ रही है,जिसके चलते कार्यकर्ताओं में निराशा बढ़ रही है।पार्टियों में दौलतमंदों का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है।
खुदाई खिदमतगार के संयोजक फैजल खान ने कहा कि नए मनुष्य का निर्माण सबसे बड़ी चुनौती है। उंसपर ध्यान केंद्रित कर समाजवादियों को काम करना चाहिए ,उन्होंने कहा कि सरकारें बदलना आसान है ,इंसान को बदलना बहुत मुश्किल ,उन्होंने कहा कि नया मनुष्य गढ़ने के सभी तरीके विफल रहे है इस कारण नेता ,पार्टी और सरकार बदलने से समाज नहीं बदलता।
कांफ्रेंस को राष्ट्र सेवा दल के महामंत्री शाहिद कमाल और पूर्व विधायक एवम सम्पूर्ण क्रांति मंच के राम प्रवेश सिंह ने संबोधित करते हुए कहा कि यह कॉन्फ्रेंस पटना में लॉक डाउन के चलते नहीं हो सकी परंतु लॉक डाउन खुलने के बाद समाजवादियों का जमावड़ा पटना में होगा । उन्होंने कहा कि बिहार ने सम्पूर्ण क्रांति का नेतृत्व किया था अब की बार फिर साम्प्रदायिक फासिस्टों का मुकाबला बिहार करेगा।
कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का ८७वां स्थापना दिवस : समाजवादियों का राष्ट्रीय संवाद – हमारा संकल्प
यह बहुत संतोष की बात है कि कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के ८७वें स्थापना दिवस को ‘हम समाजवादी संस्थाएं’ की पहल पर हम सबने दो दिवसीय राष्ट्रीय संवाद के रूप में आयोजित किया. यह सही है कि आज समाजवादियों का कोई राष्ट्रीय मंच नहीं है. यह भी सही है कि हम समाजवादी लोग विभिन्न क्षेत्रीय दलों के जरिये किसी व्यक्ति या बिरादरी के इर्द-गिर्द चुनावी पहचान और राजनीतिक अस्तित्व को कायम रखने में ही जादा शक्ति लगाते दीखते है. लेकिन इस बात को भी याद रखना चाहिए की दर्जनों दलों में बिखरे समाजवादियों की उदासीनता के बावजूद देश के हर जीवंत जन-आन्दोलन में – किसानो और श्रमिकों से लेकर स्त्रियों, दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और छात्रों-युवजनों की हर लड़ाई में – समाजवादी परम्परा से जुड़े स्त्री-पुरुषों की सतत हिस्सेदारी जारी है. विचार प्रसार और साहित्य विस्तार का काम किया जा रहा है. छोटे – बड़े समागमों का सिलसिला बना हुआ है. इसीलिए इस राष्ट्रीय संकट की घड़ी में भी देश के विभिन्न हिस्सों से लगभग 75,000 लोगों ने ‘फेसबुक लाइव’ में हिस्सेदारी के जरिए देश में समाजवादी सपनों की धारावाहिकता और प्रासंगिकता का प्रमाण प्रस्तुत किया है. इन समाजवादी सहयात्रियों ने इन दो दिनों के संवाद में नि:स्वार्थ सहयोग देकर यह दायित्व भी दिया है कि हम देश की मौजूदा आर्थिक-राजनीतिक-सामाजिक दशा और वर्तमान समय में समाजवादियों की जिम्मेदारी के बारे में एक स्पष्ट दृष्टि की प्रस्तुति के साथ इस दो-दिवसीय सहयोग को आगे बढ़ाएं.
आज से छियासी बरस पहले पटना में हुए समागम में यह पहचाना गया था कि भारत जैसे विदेशी गुलामी और देशी शोषकों के गठजोड़ से शोषित-पीड़ित देश में समाजवादी समाज की स्थापना के लिए पहली जरूरत राजनीतिक स्वराज, दूसरी जरूरत आर्थिक नव-निर्माण और तीसरी जरूरत समाज में लिंगभेद-जातिभेद-वर्गभेद-भाषाभेद-सम्प्रदायभेद से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एकता के अभियान की है. इसे हासिल करने के लिए क) निजी जीवन में समाजवादी मूल्यों को आधार बनाने और ख) समाज के वंचित वर्गों में १. चेतना निर्माण और विचार-प्रसार, २. कार्यकर्त्ता प्रशिक्षण,३. संगठन निर्माण, ४. विभिन्न जन-असंतोष के कारणों और समाधान की सही समझ, ५. जन-प्रतिरोधों में भागीदारी, ६. राष्ट्रव्यापी राजनीतिक धारा से एकजुटता और ७. विश्वव्यापी समाजवादी रुझहान के साथ सक्रिय सम्बन्ध की दिशा में एकसाथ आगे कदम बढ़ने होंगे. यह गर्व की बात है कि इस दृष्टि के आधार पर विकसित हुए भारतीय समाजवादी आन्दोलन के महानायकों ने १९३४ और १९४७ के बीच राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन के निर्णायक दौर में महान योगदान के जरिये एक गौरवशाली स्थान बनाया.
विदेशी राज को परास्त करने में अग्रणी भूमिका निभाने के बाद हमारे पुरखों ने महात्मा गांधी के स्वयंसेवक बनकर साम्प्रदायिकता की आग बुझाने और हिन्दू-मुस्लिम-सिख समुदायों में सौहार्द के कर्तव्य को पूरा किया. बाबासाहब डा. भीमराव आम्बेडकर आदि सामाजिक समता के सूत्रधारों के साथ संयुक्त मोर्चा बनाकर अस्पृश्यता उन्मूलन और जातिविनाश के कार्यक्रमों को आगे बढ़ाया. गाँधी जी की हत्या के बाद सत्ता की झीना-झपटी से १९४८ में ही कांग्रेस से बाहर निकलकर एक लोकतांत्रिक समाजवादी दल के रूप में लोकतंत्र के स्वस्थ विकास हेतु किसान-मजदूर-महिला-विद्यार्थी व युवजन-आदिवासी समुदायों के बीच संगठनों को गति दी. यह प्रवृत्ति आज भी प्रबल है क्योंकि स्त्री-सम्मान, पर्यावरण रक्षा और मानव-अधिकारों से लेकर स्वास्थ्य के अधिकार और संविधान की रक्षा के अभियानों तक में समाजवादियों की हिस्सेदारी उल्लेखनीय है.
मूलत: समाजवादियों के चिंतन में पांच आदर्शों का समन्वय है: स्वतंत्रता, लोकतंत्र, समता, सम्पन्नता, और विकेंद्रीकरण. भारतीय समाजवादी आन्दोलन ने इन आदर्शों से जुडी नीतियों और कार्यक्रमों के लिए आज तक वोट (लोकतांत्रिक चुनाव) – फावड़ा (रचनात्मक कार्यक्रम) – जेल (संघर्ष) की त्रिवेणी के जरिए समाज में अपना असर बनाया है. समाजवादियों के संगठनकर्ताओं के बारे में यह छबि है कि समाजवादियों के नेताओं का ‘एक पाँव रेल में और एक पाँव जेल में’ रहता है – या तो विचार, आन्दोलन और संगठन के प्रसार के लिए दौरा चलता है या जनहित के प्रश्नों पर आगे आकर सत्याग्रह के कारण जेल में होते हैं !
समाजवादी होने के लिए ‘संतति और संपत्ति के मोह से मुक्ति’ एक व्यापक कसौटी के रूप में प्रचलित है. जातिवाद, साम्प्रदायिकता और पूंजीवाद का विरोध समाजवादियों को घुट्टी में पिलाया जाता है. एक समाजवादी को सार्वजनिक जीवन में देशी भाषाओं को व्यवहार में लाने वाला तथा स्त्रियों, दलितों, आदिवासियों, पिछड़ी जातियों, और पसमांदा मुसलमानों के लिए विशेष अवसर का समर्थक होना चाहिए. हर समाजवादी मूल नागरिक अधिकारों की रक्षा और चौखम्भा राज अर्थात सत्ता के विकेंद्रीकरण के जरिए सहभागी लोकतंत्र की रचना के लिए प्रतिबद्ध होता है. समाजवादियों के निजी जीवन में सादगी, साहस और संघर्ष का होना अप्रत्याशित नहीं माना जाता.
हर बड़े आन्दोलन की तरह समाजवादी आन्दोलन में भी आज़ादी के बाद से अब तक के सात दशकों में कई धाराओ और प्रवृत्तियों का विकास होता रहा है. यह भी एक विडम्बनापूर्ण तथ्य है कि अद्वितीय छबि और अविश्वसनीय क्षमता वाले यशस्वी नायकों की लम्बी श्रृंखला और अपने मुख्य अभियानों, विशेषकर विधानसभा और संसद के चुनावों में सफलता मिलने के बावजूद समाजवादियों में सिद्धांत, संगठन और सत्याग्रह तीनों के प्रति प्रतिबद्धता में घटाव की प्रवृत्ति फैलती रही है. वोट-फावड़ा-जेल के बीच संतुलन की जरूरत की उपेक्षा और अनुपात की समझ का अभाव सामने आ जाते हैं. इसके लिए १९६४-६७, १९७४-७९, १९८९-९२, और २०११-१४ के प्रसंगों को याद करना ही पर्याप्त होगा. इसलिए इसे ‘सफलता का संकट’ मानते हुए नए प्रस्थान की जरूरत को पहचानना आज समाजवादियों की सबसे बड़ी चुनौती है. बिना इस चुनौती को पहचाने हम वैश्विक पूंजीवाद द्वारा परेशान देश-दुनिया के लोगों के लिए असरदार समाजवादी सहायक नहीं साबित हो सकेंगे.
आज हमारा देश ‘नयी आर्थिक नीतियों’ के खोखलेपन के आगे हतप्रभ खड़ा है. यह समझाने की कोशिश की जा रही है कि देश के सामने कोरोना महामारी के कारण अभूतपूर्व संकट आ गया है. कोरोना महामारी के मुकाबले के लिए हर नागरिक का सहयोग जरुरी है और हर नागरिक को सुरक्षा मिलनी ही चाहिए. लेकिन मार्च, २०२० के पहले क्या स्थिति थी? २०१९ का घटना क्रम बताता है कि संसद में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में दुबारा प्रबल बहुमत प्राप्त करने में सफल होने के बाद सत्तारूढ़ बहुदलीय गठबंधन के महानायकों ने सबसे पहले मीडिया को कब्जे में किया. इसके बाद चुनावी आश्वासनों के बावजूद ग्रामीण भारत की अनसुनी की. फिर श्रमजीवी भारत के अधिकारों पर प्रहार हुआ. छात्रों – युवजनों को भी निशाने पर लिया गया. इसके बाद नागरिक रजिस्टर बनाने की आड़ में हिन्दू-मुसलमान की दरार को बढ़ाया गया. देश की राजधानी में ही सरकार की नाक के नीचे गरीब मुसलामानों की बस्तियों में बेरोकटोक आगजनी हुई और आतंक फैलाया गया. सर्वोच्च न्यायालय भी धृतराष्ट्र जैसा आचरण करता देखा गया.सजग नागरिकों की ‘सविधान बचाओ – भारत बचाओ’ की पुकार अनसुनी की गयी.
अब महामारी का मुकाबला करने के लिए देशभर के लोग पिछले आठ सप्ताह से महामारी से बचने के लिए घरों में बैठाये गए हैं. लेकिन यह संपन्न वर्गों का सच है. कृषि-निर्भर और श्रमजीवी भारतीय का सच बहुत अलग और बेहद भयानक है. क्योंकि रोज कमाने-खाने वाले लगभग 8 करोड़ स्त्री-पुरुषों को बेघरबार होने को मजबूर किया गया है. इससे श्रमजीवी नागरिक शहरों से अपने गाँव/‘देस’ की ओर भाग रहे हैं. देश के संगठित क्षेत्र के मजदूरों की दुनिया में अँधेरा हो गया है – उनका मेहनताना, उनकी कार्य-दशा, उनका बोनस, उनकी पेंशन – सभी स्तर पर राज्यसत्ता अमर्यादित फैसले लाद रही है. उद्योग और पैसेवालों की दुनिया में पूंजीवाद और बाजारवाद के स्वभाव के कारण मत्स्यन्याय का दौर आ गया है – बड़ी पून्जीवाले मंझोली और छोटी पून्जीवाले प्रतिष्ठानों को निगल रहे हैं. विदेशी-देशी पूंजीपतियों और ‘राष्ट्रवादी’ नेताओं के गंठजोड़ के राज्यसत्ता पर एकाधिकार के बावजूद गतिहीन आर्थतंत्र और दिशाहीन राजतन्त्र का सच बेपर्दा है. स्वास्थ्य के तीन दशक लम्बे व्यवसायीकरण ने कोरोना महामारी का मुकाबला करने में मदद के लिए आगे आने की बजाय पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था अस्त-व्यस्त है. राज्यसत्ता और नागरिक के बीच सिर्फ पुलिस की लाठी का रिश्ता सामने है.
समाजवादियों का मानना है कि आजका सच पूंजीवादी नीतियों का परिणाम है. देश का जनसाधारण सरकार और सरकारी नीतियों से मोहभंग के दौर में है. नए समाधानों की तलाश का समय आ गया है. ‘सबको रोटी – सबको काम’ का नारा देशव्यापी हो रहा है. यह बिना ‘नयी आर्थिक नीतियों’ की आड़ में १९९१-९१ से पनपाये जा रहे पूंजीवाद से पिंड छुटाए नहीं होने जा रहा है. इस कठिन समय में समाजवादियों की सजग सक्रियता की जरूरत है. अपने पास-पड़ोस, गाँव, मोहल्ले, कसबे, शहर में छोट-बड़े समूह बनाकर परेशान देश का सहारा बनने का समय है. आइये देश को बनानेवाले स्त्री-पुरुषों को सरकारी दमन से पैदा आतंक से बचाएं. पूंजपतियों, सत्ता-प्रतिष्ठान और बाजारवाद से मिले धोखे से पैदा बेबसी से बाहर निकालें. देश को दशकों से अपनी मेहनत और निष्ठा से पाल-पोस रहे किसानों-मजदूरो-व्यापारियों-कर्मचारियों-चिकित्सकों-शिक्षकों-समाजसेवकों को ही देश का भाग्य-विधाता बनाने का अभियान चलायें.
डॉ सुनीलम( पूर्व विधायक)
हम समाजवादी संस्थाएं, 9425109770