मौजूदा किसान आंदोलन की दिशा

मौजूदा किसान आंदोलन की दिशा

प्रेम सिंह | किसानों की यह राजनीतिक चेतना स्वतंत्रता, संप्रभुता, स्वावलंबन की पुनर्बहाली के लिए जरूरी नव-साम्राज्यवाद विरोधी चेतना का आधार हो सकती है.

कोरोना महामारी : श्रमिक चेतना के उन्मेष का समय

कोरोना महामारी : श्रमिक चेतना के उन्मेष का समय

प्रेम सिंह | राजनीति को बदले बिना अर्थव्यवस्था नहीं बदली जा सकती. कोरोना महामारी को सरकार ने एक मौका बनाया है, तो मौजूदा निगम पूंजीवाद के वास्तविक विरोधी भी इसे एक मौका बना सकते हैं. मजदूरों, किसानों, अर्द्ध-पूर्ण बेरोजगारों का महामारी काल का अनुभव आसानी से भुलाने वाला नहीं होगा. उनके इस अनुभव का राजनीतिकरण होगा तो एक नई श्रमिक चेतना का उन्मेष होगा और कारपोरेट राजनीति के बरक्स वैकल्पिक राजनीति की ज़मीन बनेगी.

कोविड-19 : चार सुझाव

कोविड-19 : चार सुझाव

प्रेम सिंह | वायरस का सामाजिक संक्रमण होता है तो हालत भयावह होंगे. विशाल आबादी, नितांत नाकाफी स्वास्थ्य सेवाएं, अस्वच्छ वातावरण, व्यापक पैमाने पर फैली बेरोजगारी, जर्जर अर्थव्यवस्था जैसे कारको के चलते बड़े पैमाने पर मौतें हो सकती हैं

राजनीतिक पराजय के बाद की पुकार!

राजनीतिक पराजय के बाद की पुकार!

प्रेम सिंह | यह अब छिपी सच्चाई नहीं है कि देश के बौद्धिक नेतृत्व ने नवसाम्राज्यवाद विरोधी राजनीति के स्वरूप और संघर्ष को मुकम्मल और निर्णायक नहीं बनने देने की ठानी हुई है.

सीएए/एनआरसी/एनपीआर विरोधी आंदोलन : आशा और संभावनाएं

सीएए/एनआरसी/एनपीआर विरोधी आंदोलन : आशा और संभावनाएं

प्रेम सिंह | एक महीना से ऊपर हो गया है. पूरे देश में सीएए/एनआरसी/एनपीआर के विरोध में जो आवाज उठी है उसकी धुरी मुसलमान हैं. यह आंदोलन काफी हद तक स्वत:स्फूर्त है. पहले नौजवानों और फिर महिलाओं की भागीदारी ने इस आंदोलन को विशेष बना दिया है.

फोर्ड फाउंडेशन के बच्चों का राजनीतिक आख्यान

फोर्ड फाउंडेशन के बच्चों का राजनीतिक आख्यान

प्रेम सिंह | देश की राजनीति में नवउदारवाद की तानाशाही चल रही है. समाजवादी शायद यह नहीं समझ पाए कि इस तानाशाही के तहत राजनीति करने वाली पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र चल ही नहीं सकता.

Call After Political Defeat

Call After Political Defeat

Dr Prem Singh | The experience since 1991 i.e. the era of beginning of the New Economic policies, has amply shown that the intellectual leadership of the country out did the political leadership in paving the way for neo-imperialist slavery.

Issue of Contractual-Teaching at Delhi University

Issue of Contractual-Teaching at Delhi University

Prem Singh University of Delhi is replete with ad-hoc teachers as it presently employs around five thousand teachers who work in the ad-hoc capacity. Year after year, a hire and fire policy is adopted with regard to their employment by the college administration for every academic session. In this process, an ad-hoc teacher often finds […]