लखनऊ। रिहाई मंच ने लखनऊ और दिल्ली में मानवाधिकार कार्यकर्त्ता और वरिष्ठ पत्रकार पर मनगढ़ंत आरोप लगाए जाने की निन्दा करते हुए इसे लोकतांत्रिक और पेशागत अधिकारों का दमन बताया। मंच ने इस बात को भी उठाया है कि इस समय जब पूरा देश कोरोना जैसी महामारी से लड़ने के लिए गंभीर है तब आम देशवासियों के राहतकार्य से जुड़े लोगों का लगातार दमन किया जा रहा है जिससे स्वेक्षा से समाजसेवा करने वाले लोगों का मनोबल टूट रहा है।
रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि दिल्ली पुलिस द्वारा अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार जफरुल इस्लाम खान के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करना हो या फिर मानवाधिकार कार्यकर्त्ता अमित अम्बेडकर और पत्रकार मनीष पाण्डे के खिलाफ पुलिसिया कार्रवाई, विरोध के स्वर का दमन है। उन्होंने कहा कि जफरुल इस्लाम ख़ान सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान दिल्ली पुलिस द्वारा आंदोलनकारी छात्रों के खिलाफ बल प्रयोग से लेकर दिल्ली सांप्रदायिक हिंसा के दौरान पुलिस की भूमिका पर दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष की हैसियत से सवाल उठाते रहे हैं। उन्होंने कहा कि जफरुल इस्लाम खान पर देशद्रोह जैसा आरोप लगाने को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
रिहाई मंच नेता रविश ने कहा कि किसी भी घटना के बारे में पुलिस को सूचना देना और कार्रवाई की मांग करना अफवाह फैलाना कैसे हो सकता है? अमित ने ट्विटर पर पुलिस से एक वीडिओ शेयर करते हुए कार्रवाई की मांग की थी, लेकिन लखनऊ पुलिस ने उन पर मुकदमा कायम कर गिरफ्तार कर लिया। क्या अब दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र में कार्रवाई की मांग करना या पुलिस को सूचना देना अपराध की श्रेणी में आयेगा?
रिहाई मंच नेता शाहरुख़ अहमद ने कहा कि पत्रकार मनीष पाण्डेय ने अस्पतालों के कुप्रबंधन और चिकित्साकर्मियों को मानक के अनुरूप सुरक्षा किट उपलब्ध ना होने पर रिपोर्ट लिखी थी। ये मामला सीधे कोरोना महामारी से देश को बचाने के संघर्ष से जुड़ा है। जहां कमियों को उजागर करने के लिए सरकार को उन्हें धन्यवाद कहना चाहिए था वहां उन पर पुलिसिया कार्रवाई प्रेस की अभिव्यक्ति का गंभीर मसला है।
द्वारा जारी:
राजीव यादव
महासचिव, रिहाई मंच
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