The Socialist Party (India) condemns the entry of police forces into the premises of the Bihar Legislature on 23 March 2021 & the assaults by these forces on legislators including women legislators. Such transgressions are unprecedented and did not occur within parliamentary institutions even during the Emergency of 1975-77.
The Socialist Party (India) calls to attention of the Bihar Government that Socialist attitude towards police excesses has been well defined in the 1950s in controversies relating to events in Travancore-Cochin in August 1954.
The Socialist defence of Parliamentary democracy in India is also well known and countless Socialists have over the years courted imprisonment in assertion of democratic rights. Such rights cannot be upheld if elected representatives in parliamentary institutions are permitted to be assaulted and intimidated by police forces and that too in Assembly premises under the watch of, if not actually at the behest of, the Bihar Government and Assembly Secretariat.
This is a disgraceful event in India’s parliamentary history. It is ironic and particularly shameful that it has occurred during the incumbency in Government of persons who claim to be affiliated to the political traditions of Loknayak Jayaprakah Narayan and Dr Ram Manohar Lohia.
In the circumstances, the Socialist Party (India) makes it clear that if no adequate remedial and punitive action is immediately taken, the Party will be constrained to demand the resignation of the state government as it had done in cases of police excesses in respect of other state governments in the past.
Pannalal Surana, Anil Nauriya
Socialist Party (India)
बिहार विधान सभा परिसर में पुलिस कारवाई की कड़ी निंदा करती है सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) 23 मार्च 2021 को बिहार विधान सभा परिसर के अन्दर पुलिस बल के प्रवेश करने की और विधायकों पर (जिनमें महिला विधायक भी शामिल हैं) डंडे आदि से हमला करने की सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) कड़ी निंदा करती है. लोकतान्त्रिक संस्थानों में ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना तो 1975-77 की इमरजेंसी में भी नहीं हुई थी. बिहार सरकार को सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) इस बात की याद दिलाना चाहती है कि पुलिस ज्यादतियों के परिप्रेक्ष्य में समाजवादी रवैया 1950 के दशक से भलीभांति स्थापित है, जब 1954 की त्रावनकोर-कोचीन विवादपूर्ण घटना हुई थी. भारत में संसदीय लोकतंत्र के पक्ष में समाजवादी विचारधारा हमेशा से रही है और बीते सालों में अनगिनत समाजवादी विचारकों ने अपने लोकतान्त्रिक अधिकार को बचाने के लिए और उसका इस्तेमाल करते हुए गिरफ़्तारी तक दी है. यह अधिकार कैसे सुरक्षित रहेंगे यदि लोकतान्त्रिक संस्थान में निर्वाचित सदस्यों पर बर्बरता के साथ हमला होने दिया जायेगा और बिहार सरकार और विधान सभा सचिवालय के सामने ही पुलिस बल इन निर्वाचित सदस्यों को डराएगा-धमकाएगा?
भारत के संसदीय इतिहास में यह एक शर्मनाक घटना है. यह विडंबना भी है क्योंकि ऐसी घटना उस बिहार सरकार के शासनकाल में हुई है जिसके प्रमुख लोग लोकनायक जयप्रकाश नारायण और डॉ राम मनोहर लोहिया के राजनैतिक विचार से प्रेरित होने का दावा करते हैं. इस स्थति में, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) की मांग है कि बिना विलम्ब संतोषजनक करवाई हो अन्यथा बिहार सरकार इस्तीफ़े दे.
पन्नालाल सुराणा, अनिल नौरिया
सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया)