पिछले करीब दो दशकों में अब तक मातृ सदन, हरिद्वार, गंगा में अवैध खनन, बड़े बांधों के खिलाफ, आदि मुद्दों पर ६३ अनशन आयोजित कर चुका है। मातृ सदन के तीन संत पहले ही गंगा के मुद्दे पर क़ुरबानी दे चुके हैं जिसमें स्वामी गोकुलानंद की २००३ में खनन माफिया ने हत्या करवा दी, स्वामी निगमानंद सरस्वती की २०११ में ११५ दिनों के अनशन के पश्चात मौत हुयी और प्रख्यात प्रोफेसर गुरु दास अग्रवाल जो स्वामी ज्ञान स्वरुप सानंद के नाम से भी जाने जाते थे की २०१८ में ११२ दिनों के अनशन के बाद मौत हो गयी। इसके अलावा बाबा नागनाथ की वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर २०१४ में ११४ दिनों के अनशन के बाद मौत हो गयी थी।
प्रोफेसर अग्रवाल की मौत के बाद ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद अनशन पर बैठे किन्तु वाराणसी में २०१९ में पिछले लोक सभा चुनाव के दो हफ्ते पहले राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा ने १९४ दिनों के बाद उनका अनशन खत्म कराया ताकि नरेंद्र मोदी के चुनाव से पहले साल भर में दूसरे साधु की मौत से बवाल न खड़ा हो जाये।
ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद का अनशन ख़त्म कराने से पहले किये गए वायदे पूरा न होने पर मातृ सदन की ओर से १५ दिसंबर २०१९ से साध्वी पद्मावती, जो आश्रम के इतिहास में पहली महिला संत हैं जिन्होंने तपस्या का संकल्प लिया, का अनशन शुरू हुआ। ३० जनवरी २०२० को साध्वी को पुलिस आश्रम से उठा ले गयी और दून अस्पताल में भर्ती करा दिया। साध्वी के ऊपर आरोप लगाया गया कि वे दो माह से गर्भवती हैं। साध्वी द्वारा जांच के लिए जोर देने के बाद जब जांच हुयी तो यह बात झूठी पायी गयी। शासन-प्रशासन की ओर से यह आश्रम को बदनाम करने की कोशिश थी ताकि किसी तरह मातृ सदन को ख़त्म किया जा सके।
जब तक अगले दिन साध्वी पद्मावती को मातृ सदन वापस लाया गया तब तक ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद ने भी अनशन शुरू कर दिया था। इस तरह एक साथ दो अनशन चलने लगे। आश्रम का आरोप है की साध्वी को अस्पताल में कोई ऐसी चीज दी गई जिससे उनकी तबियत बिगड़ने लगी और आश्रम लौटने के बाद लगातार तबियत खराब ही होती गई। सरकार द्वारा उनके चरित्र हनन के प्रयास से उन्हें आघात लगा। उनकी तबियत जब ज्यादा खराब हुई तो आश्रम ने ही निर्णय लेकर १६ फरवरी को उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली ले जाने का फैसला लिया। किन्तु निजी एम्बुलेंस में जब उन्हें ले जाया जा रहा था तो उसे बीच सड़क रोक कर सरकारी एम्बुलेंस में डाल ऋषिकेश ले जाने की कोशिश की गयी। ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, ऋषिकेश के निदेशक को मेल द्वारा सन्देश भेज पूछा कि क्या स्वामी सानंद की तरह साध्वी को भी मारने की तैयारी है? ऐसा सन्देश भेजने के बाद एम्बुलेंस का रुख ऋषिकेश से दिल्ली की तरफ हुआ। तब से साध्वी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली की सघन देखरेख इकाई में रखा गया है।
१९ फरवरी से स्वामी शिवानंद को २० वर्षों से सरकार से मिली सुरक्षा हटा ली गयी। यह सुरक्षा स्वामी जी को खनन माफिया से खतरे को देखते हुए मिली थी। तब ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद ने जल त्याग की घोषणा की। २२ फरवरी को ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद को भी हरिद्वार से सरकार द्वारा उठा कर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संसथान, दिल्ली में भर्ती करा दिया गया है। ५ मार्च को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संसथान के चिकित्सकों ने ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद को मुक्त कर दिया किन्तु उत्तराखंड सरकार ने उनके प्रति जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। पांच दिन अस्पताल के बरामदे में पड़े रहने के बाद ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद मातृ सदन चले गए। १० मार्च, होली के दिन स्वामी शिवानंद ने अपने शिष्यों की दुर्दशा व अपमान देख ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद का अनशन ख़त्म करा खुद अनशन शुरू करने के निर्णय लिया।
इस तरह मातृ सदन के दो संत अभी भी अनशन पर हैं, साध्वी पद्मावती कुछ बोल न पाने की स्थिति में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संसथान, दिल्ली में व स्वामी शिवानंद मातृ सदन हरिद्वार में। किन्तु सरकार उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दे रही है, बल्कि कहा जाये तो सरकार उनके अनशन को नज़रअंदाज़ कर रही है जैसे पहले उसने स्वामी सानंद और स्वामी निगमानंद के अनशन को नज़रअंदाज़ किया।
गंगा को बचाने के लिए प्रयासरत इन साधुओं की पीड़ा इस बात से समझी जा सकती है की स्वामी ज्ञान स्वरुप सानंद ने अपने अनशन के दौरान प्रधान मंत्री को लिखे अपने पत्र में कहा था की यदि अनशन करते हुए उनकी मौत हो जाती है तो इसके लिए वे नरेंद्र मोदी को ही जिम्मेदार मानेंगे और भगवन राम के दरबार में जाकर वे उन्हें दंड देने की प्रार्थना करेंगे।
नरेंद्र मोदी सरकार ने चाहे नमामि गंगे के नाम पर जितना भी पैसा खर्च कर लिया हो हक़ीक़त तो यही है की गंगा साफ़ नहीं हुई है और दूसरी हक़ीक़त यह है की जब तक गंगा में अवैध खनन बंद नहीं होगा, सभी प्रस्तावित व निर्माणाधीन बांधों पर रोक नहीं लगाई जाएगी व गन्दी नालियों का पानी, बिना साफ़ किये अथवा साफ़ करने के बाद भी, नदी में डालने से रोका नहीं जायेगा तब तक मातृ सदन का संघर्ष जारी रहेगा।
स्वामी शिवानंद वर्तमान समय में उग्र तपस्या पर हैं जिसमें दिन में सिर्फ पांच गिलास पानी (बिना नीम्बू, नमक या शहद के) ले रहे हैं और धीरे धीरे उसे भी छोड़ने के तैयारी है। जाहिर है यदि उनका अनशन ख़त्म नहीं हुआ तो वे अब ज्यादा दिनों के मेहमान नहीं हैं। कल सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) की तरफ से एक प्रतिनिधि मंडल, जिसमें संदीप पांडेय, फैसल खान, सईद तहसीन अहमद, इनामुल हसन, देवेश पटेल व ज़ीशान शामिल थे, मातृ सदन गए और स्वामी शिवानंद से अनशन समाप्त करने का आग्रह किया किन्तु स्वामी शिवानंद सरकार के रवैये से इतना आहत हैं की उन्होंने अपना शरीर छोड़ने का मन बना लिया है।
हम सरकार से मांग करते हैं की स्वामी शिवानंद से बात कर उनकी मांगों को मानकर उनका अनशन ख़त्म करवाए और पांचवें साधु को शहीद होने से बचाये।
आचार्य प्रमोद कृष्णन, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, मनोज झा, राष्ट्रीय जनता दाल, संजय सिंह व पंकज पुष्कर, आम आदमी पार्टी, फैसल खान व संदीप पांडेय, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया)
संपर्क: ९६५४०७९५२८, सईद तहसीन अहमद, ७७०३९३३१६८, नीरज कुमार