दिल्ली में आने वाले विधानसभा चुनाव एक ऐसे वक्त में हो रहे हैं, जब पिछले साल ही केन्द्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार बनकर आई है। मोदी सरकार नवउदारवादी नीतियों को उग्रतापूर्वक आगे ले जाने का काम कर रही है और कारपोरेटों से लोकसभा चुनावों में मिले समर्थन का जवाब उनके लिए बढ़े हुए मुनाफों के रूप में दे रही है। केन्द्रीय बजट ने कारपोरेटों और उच्च मघ्यम वर्ग को करों में भारी छूट दी है। चुनाव प्रचार के दौरान भारी-भरकम वादों के बावजूद असल में महंगाई और खासकर खाद्य वस्तुओं की कीमतों पर कोई लगाम नहीं लगी है। मालिकों को फायदा पहुंचाने के लिए मोदी सरकार श्रम कानूनों में बदलाव करने पर आमदा है।
इसके साथ ही आरएसएस-भाजपा अपने ज़हरीले साम्प्रदायिक अभियान के जरिए लोगों को बांटने और सरकार के खिलाफ बढ़ते असंतोष को विभाजक रास्तों में भटकाने का प्रयास कर रहा है। दिल्ली में बवाना, त्रिलोकपुरी, श्रीराम कालोनी, नंद नगरी, मदनपुर खादर जैसे इलाकों में आरएसएस-भाजपा ने साम्प्रदायिक हिंसा करवाने के घृणित प्रयास किए हैं। जहां साम्प्रदायिक तौर पर बांटने के पीछे इनका तात्कालिक लक्ष्य आने वाले विधानसभा चुनावों में चुनावी फायदा लेना है, वहीं लम्बे दौर में वे अनाधिकृत, झुग्गी और पुर्नवास कालोनियों में रहने वाले दलितों और गरीबों को हिन्दू राष्ट्र के अपने एजैण्डे को आगे ले जाने के लिए लामबंद करना चाह रहे हैं।
भारत की आज़ादी और प्रत्येक नागरिक के अधिकारों की गारंटी करने वाले भारत के संविधान को अपनाने वाले दिन को आज हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। लेकिन यह काफी दुर्भाग्य पूर्ण है कि मोदी सरकार ने भारतीय नागरिकों के हितों को इसी दिन अमेरिका और कॉरपोरेट हितों के हाथों बेच कर भारतीय मजदूरों, किसानों, महिलाओं, दलितों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को कुचला है।
भाजपा और कांग्रेस, ये दोनों पार्टियां दिल्ली की सत्ता पर लगातार काबिज रही हैं और आज दिल्ली की जनता के सामने जितने भी सवाल हैं, उनके लिए यही दोनों पार्टियां जिम्मेदार हैं। इन दोनों ही पार्टियों की सरकारें दिल्ली की जनता के लिए खाद्य वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी, बड़े स्तर पर बेरोजगारी, आवास का संकट, बिजली, पानी,शिक्षा, स्वास्थ्य व अन्य जन सुविधाओं की भारी कमी, महिलाओं के प्रति अपराध, और मजदूरों की जीविका पर हमले एवं शहरी गरीबों व मेहनतकशों को निरंतर हाशिए पर धकेलने की नीतियों को लेकर आईं।
ऐसे स्थिति में दोनों पार्टियों के काम-काज से परेशान लोगों ने बड़ी संख्या में दिसंबर 2013 के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को वोट दिया, जिसके बाद वह कांग्रेस की मदद से सरकार बना पाने में सफल हो पाई। इस सरकार ने जनता में उम्मीद जगाई थी। पर, जिस तरह से आम आदमी पार्टी की सरकार ने अपने चुनावी वादों को पूरा करने के कोई ठोस प्रयास किए बिना ही 49 दिनों में सरकार छोड़ने का फैसला ले लिया, उससे इसके कई समर्थक निराश हो गए। मज़दूर वर्ग और दिल्ली के गरीबों के जो सवाल पिछले विधानसभा चुनावों के मुद्दे बने थे, इन चुनावों में ‘आप‘ के अभियान में भी उन्हें पीछे कर दिया गया है। आम आदमी पार्टी भी न तो वैकल्पिक नीतियां देने को तैयार है और न ही उन नवउदारवादी नीतियों से बाहर निकलने को तैयार है, जिसके बिना जनता की बुनियादी समस्याओं का व्यापक हल नहीं हो सकता है।
इस पृष्ठभूमि में सीपीआई, सीपीआई(एम), सीपीआई(एमएल)लिबरेशन, एसयूसीआई(सी), फॉरवर्ड ब्लॉक और सोशलिस्ट पार्टी(इण्डिया) ने मिलकर दिल्ली के विधानसभा चुनावों में तालमेल कर निम्नलिखित 14 सीटों पर एक-दूसरे को समर्थन देने का फैसला किया हैः तिमारपुर, बल्लीमारान, पालम, त्रिलोकपुरी व कृष्णा नगर (सी.पी.आई.); करावल नगर व द्वारका (सी.पी.आई.-एम); नरेला, वज़ीरपुर व कोंडली (सी.पी.आई.(एम-एल) लिबरेशन); मुंडका व नांगलोई जाट (ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक); बादली व सदर बाज़ार (एस.यू.सी.आई.-कम्युनिस्ट)। आर.एस.पी. व सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) ने कोई उम्मीदवार खड़े नहीं किए हैं और वे अन्य वामपंथी दलों द्वारा खड़े किए गए उम्मीदवारों का समर्थन करेंगे।
हम दिल्ली के मजदूर वर्ग के सवालों को जिनके लिए वाम दल हमेशा संघर्षरत रहे हैं प्रमुखता से उठायेंगे। इनमें न्यूनतम मजदूरी कानून समेत सभी श्रम कानूनों को सख्ती से लागू कराना, ठेकेदारी प्रथा को खत्म कराना, सभी रेहड़ी-पटरी-खोमचा वालों के जीनवयापन के अधिकार को बुलन्द करते हुए उनके उत्पीड़न पर रोक लगाना, झुग्गियों-मजदूर बस्तियों के विस्थापन को रोकना, झुग्गी के निवासियों के लिए मालिकाना हक, सभी के लिए आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, सफाई, बिजली, सस्ता जन-परिवहन की गारंटी और इन सुविधाओं के निजीकरण पर रोक, महिलाओं के अधिकार और आजादी की गारंटी करने वाली शहरी प्लानिंग के साथ हिंसा पीडि़त महिलाओं के लिए क्राइसिस सेण्टरों की स्थापना, और सभी गरीब व मजदूर बस्तियों में चाइल्ड केयर सेण्टरों का निर्माण आदि मुद्दे प्रमुख हैं। सभी वाम दल साम्प्रदायिक मंसूबों का प्रतिरोध करने और जनता के बीच शांति व सद्भाव बनाने के प्रति प्रतिबद्ध हैं।
हम दिल्ली की जनता से अपील करते हैं कि इन चुनावों में वाम दलों के उम्मीदवारों को अपना समर्थन व वोट दे कर विधानसभा के अन्दर व बाहर विरोध के स्वरों को मजबूत करें ताकि आने वाले दिनों में दिल्ली की आम जनता, गरीबों व मेहनतकशों के सवालों पर जीत हासिल हो सके।
के. एम. तिवारी
सचिव,
दिल्ली राज्य, सी.पी.आई.(एम)
उपरोक्त 7 वामपंथी पार्टियों की ओर से