अक्तुबर 2015 में यूजीसी (विश्वविद्धालय अनुदान आयोग) ने तय किया कि केंद्रीय विश्वविद्धालयों में दी जानेवाली ‘युजीसी नौन-नेट स्कौलरशिप’ बंद कर दी जाएगी | छात्र सन्गठनों ने तुरंत समझ लिया कि यह फैसला समान अवसर देने व सामाजिक न्याय के सम्वैधानिक एजेंडे को खत्म करने के WTO-GATS के मकसद की वजह से लिया गया है | यह शुरुआत होगी छात्र को बाजार से कर्ज लेकर पढने के लिए मजबूर करने की| इसी समझ के तहत ‘औक्युपाई यूजीसी’ का आंदोलन उक्त स्कौलरशिप के बरकरार रखने, उसमें बढोत्तरी करने और राज्य सरकार के विश्वविद्धालयों तक विस्तारित करने की माँग को लेकर आज भी चल रहा है व देश भर में जडे पकड़ रहा है| और सरकार द्वारा इसे कुचलने का हर संभव कोशिश चल रहा है|
सोशलिस्ट युवजन सभा मानती है कि उच्च शिक्षा के बाजारिकरण की नींव सन 1999 में भारत सरकार ने यूनेस्को को पेश अपने पर्चे में डाल दी थी | इस पर्चे में तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री ने दावा किया था कि उच्च शिक्षा सार्वजनिक हित के लिए नहीं है, वरन यह महज व्यक्तिगत हित का ‘(बिकाऊ) माल’ है| इसलिए इसकी किमत छात्रों को व्यक्तिगत तौरपर ही चुकानी चाहिए, न कि सरकार को | आगे, सन 2000 में प्रधानमंत्री की ‘आर्थिक मामलों की परिसद’ को पेश अम्बानी-बिड़ला रपट ने कहा कि सरकार को उच्च शिक्षा को पैसा देना बंद करके इसे पूरी तरह बाज़ार के हवाले कर देना चाहिए और बाज़ार तय करेगा कि क्या पढाया जाए, कैसे पढाया जाए यानी ज्ञान पर बाज़ार का पूरा कब्जा हो जाएगा | इस क्रम को आगे बढाते हुए भारत सरकार ने अगस्त 2005 में विश्व व्यापार संगठन के पटल पर उच्च शिक्षा का अपना ‘संसोधित प्रस्ताव’ रख दिया यानी उच्च शिक्षा के दरवाजे बाज़ार के लिए खोलने की पेशकश कर दी | अभी तक यह पेशकश ‘प्रतिबद्धता’ नहीं बनी थी, क्योंकि पिछले दस वर्षो में व्यापार-वर्ताओं में सभी सदस्य देशों के बीच सहमति नहीं बन पायी है, खासकर खेती व खाद्य पदार्थो को दी जानेवाली सब्सिडी को कम करने के सवाल पर | आगे ताकतवर पुंजिवादीं मुल्कों की योजना यह है कि इन व्यापार-वार्ताओं को जुलाई 2015 के बाद तेजी से आगे बढाया जाए और इसी वर्ष 15 से 18 दिसंबर 2015 को नैरोबी, केन्या में होने वाले दसवें मंत्री-स्तरीय सम्मेलन में हर हाल में पुरा करवाया जाए | स्पष्ट रूप से इस सम्मेलन का उद्देश्य विश्व व्यापार संगठन के दायरे का विस्तार करना है| यदि भारत सरकार ने सम्मेलन के पहले ही उच्च शिक्षा के ‘संशोधित प्रस्ताव’ को वापस नहीं लिया तो अपने आप ही उच्च शिक्षा हमेशा के लिए प्रतिबद्धता बन जाएगी जिसके देश के लिए दुर्गामी दुष्प्रभाव होंगे |
सोशलिस्ट युवजन सभा अखिल भारत प्रतिरोधक मोर्चा द्वारा 07-14 दिसंबर 2015 तक चलने वाले इस आंदोलन का हिस्सा है और इस आंदोलन को आगे जारी रखेगी |
नीरज सिंह
सोशलिस्ट युवजन सभा