राजनैतिक प्रस्ताव

सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया)
राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक
दिल्ली
9 अप्रैल 2017

राजनैतिक प्रस्ताव

आत्म-सम्मान के साथ जीने का अधिकार 

संविधान के मूल्यों में यकीन करने वाले हर नागरिक को देश में जारी खतरनाक घटनाओं पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आरएसएस की तर्ज पर ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने की खुलेआम वकालत कर रहे हैं। केंद्र सरकार के हलके में भी संविधान में व्यक्त समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष भारत की अवधारणा को बदल देने की बातें की जा रही हैं। 

मौजूदा भाजपा सरकार और उसकी कट्टर विचारधारा के विरोधियों के अलावा ऐसे बेकसूर लोगों पर भी लगातार हमले हो रहे हैं और सरेआम गुंडे पीट-पीटकर उनकी हत्या कर रहे हैं, जिनका सत्ता की राजनीति या विचारों की टकराहट से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है। ऐसी बर्बरता का शिकार होने वाले ज्यादातर लोग गरीब दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक मुसलमान, ईसाई और औरतें हैं। राजस्थान के अलवर में हाल में पशुपालक पहलू खान की सरेआम पीटकर हत्या इस सिलसिले में सबसे ताजा उदाहरण है। इन ज्यादातर मामलों में पुलिस मौन दर्शक बनी रहती है या गुंडों को शह देती है। इससे जाहिर होता है कि मौजूदा सरकार की दिलचस्पी संविधान में हर नागरिक को प्रदत्त आत्म-सम्मान के साथ जीने के अधिकार की रक्षा करने में नहीं है।
सोशलिस्ट पार्टी भाजपा सरकार के इस असंवैधानिक, अमानवीय और असभ्य रवैए की कठोर शब्दों में निंदा करती है। पार्टी मांग करती है कि पहलू खान की हत्या करने वालों के खिलाफ फौरन कानूनी कार्रवाई की जाए।

नोटबंदी

मोदी सरकार का दावा है कि वह देश की अर्थव्यवस्था को खस्ताहाल कर रहे काले धन की समस्या पर काबू पाने के मामले में गंभीर है। 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री मोदी ने खुद 500 रु. और 1,000 रु. के नोटों को बंद करने का ऐलान किया और कहा कि इसका मुख्य मकसद देश में काले धन पर अंकुश लगाना है। हालांकि यह दावा हास्यास्पद है। नोटबंदी से ज्यादा से ज्यादा नकदी के तौर रखे काले धन या नकदी के रूप में रखी गैर-कानूनी रकम पर ही कुछ असर पड़ सकता है, वह भी थोड़ी मात्रा में। ऐसे कदम से काले धन के सृजन पर कोई फर्क नहीं पड़ता है, न ही इससे काली कमाई की संपत्ति पर चोट पड़ती है, जो पिछले वर्षों में अर्थव्यवस्था में पैदा हुई है। असल में, सरकार काले धन पर काबू पाने में कतई गंभीर नहीं है। यह इसी से जाहिर हो जाता है कि सरकार की उन लोगों के खिलाफ कदम उठाने में कोई रुचि नहीं है जिन्होंने काली कमाई का जखीरा जमा कर रखा है। 2016 में पनामा पेपर्स लीक में जाहिर हुए 500 भारतीयों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई, जिन्होंने अकूत काली कमाई ‘कर चोरों के जन्नत’ कहे जाने वाले देशों में जमा कर रखी है। सरकार बड़ी काली पूंजी को सफेद करने के उपक्रम पी-नोट पर भी अंकुश लगाने की नहीं सोच रही है। भाजपा खुद अपनी आय के स्रोतों को जाहिर नहीं करना चाहती। मसलन, उसे 30,000 करोड़ रु. कहां से मिले, जो उसने 2014 के लोकसभा चुनावों में खर्च किया था। इसके विपरीत वह भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों को हल्का बनाने पर विचार कर रही है। 

नोटबंदी बुरी तरह नाकाम साबित हुई है, उससे काले धन के बेहद छोटे हिस्से पर ही असर हुआ है। यह इस तथ्य से जाहिर होता है कि बंद किए गए नोटों को जमा करने की आखिरी तारीख 31 दिसंबर के तीन महीने से अधिक बीतने के बावजूद सरकार यह नहीं बता रही है कि कितनी रकम बैंकों में आ गई! इसके विपरीत नोटबंदी से कृषि, छोटे कारोबार जैसे अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़े लाखों लोगों की आजीविका पर भारी असर पड़ा है। लेकिन सरकार यह मानने को तैयार नहीं है और आंकड़ों में हेरफेर करके वह बताने में जुट गई कि नोटबंदी का आर्थिक प्रगति पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ा है। सरकार नोटबंदी से संबंधित नियम भी लगारतार बदलती रही है जिससे लोगों को दिक्कतें उठानी पड़ीं। इस अचानक मनमाने कदम से करीब 100 लोगों की मौत हो गई। लेकिन उनके लिए प्रधानमंत्री या सरकार की ओर से सहानुभूति के दो शब्द भी नहीं निकले।

महत्वपूर्ण विधेयकों को धन विधेयक के रूप में पास कराना
 
मोदी सरकार राज्यसभा में पराजय और समीक्षा से बचने के लिए महत्वपूर्ण विधेयकों को धन विधेयक के रूप में पेश करने का तरीका अपना रही है। धन विधेयक को राज्यसभा में पास करवाना जरूरी नहीं होता। यह अलोकतांत्रिक रणनीति आधार विधेयक के मामले में पहले ही अपनाई जा चुकी है। हालांकि वह धन विधेयक के रूप में पेश किए जाने की शर्तें पूरी नहीं करता था। दरअसल, आधार विधेयक में ऐसे कई प्रावधान हैं जिनका लोगों के मौलिक और संवैधानिक अधिकारों पर दूरगामी असर होगा। अब सरकार वही रणनीति वित्त विधेयक पास कराने के लिए अपना रही है जबकि इसमें कई ऐसे अहम पहलू हैं जिनका धन विधेयक से कोई लेनादेना नहीं होता। इसमें ऐसे कई प्रावधान हैं जिनसे काले धन और भ्रष्टाचार में भारी वृद्धि होगी। मसलन, एक प्रावधान में राजनैतिक दलों को कारपोरेट घरानों और विदेश से असीमित चंदा लेने की छूट दी गई है। यह महत्वपूर्ण है कि जिन विधेयकों का हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया और आम आदमी की वित्तीय सुरक्षा पर गंभीर असर पडऩे वाला हो, उन पर खुलकर सार्वजनिक बहस हो। सबसे बढक़र तो यह है कि संसद के दोनों सदनों में उनकी उचित लोकतांत्रिक समीक्षा हो।

लेकिन भाजपा सरकार लोकतंत्र की सभी स्थापित मयार्दाओं को तोड़ती जा रही है। सबसे खतरनाक तो कंपनी (संशोधन) कानून 2016 है। इस संशोधन से राजनैतिक पार्टियां विदेशी फर्मों से चंदा ले सकती हैं और उस पर एफसीआरए कानून की धाराएं लागू नहीं होंगी। फिलहाल कंपनी कानून के तहत चंदे की सीमा है, खासकर अज्ञात इकाइयों के मद में। केंद्र सरकार के इस संशोधन से देश वास्तविक लोकतंत्र से कारपोरेट लोकतंत्र में बदल जाएगा, जैसा कि अमेरिका में सिटिजंस केस के बाद कुछ अमेरिकी टिप्पणीकारों ने कहा। इस संशोधन को संविधान के अनुच्छेद 14 के उल्लंघन और वित्त विधेयक को पारित करने में इन प्रावधानों की अप्रासंगिकता के लिए अदालत में चुनौती दी जा सकती है।

मोदी सरकार की संवैधानिक मूल्यों की जानबूझकर अवहेलना भी साबित करती है कि उसकी नजर में भारतीय संविधान की कोई कद्र नहीं है। यही नहीं, सरकार सार्वजनिक उपक्रमों की कीमत पर निजी क्षेत्र को बढ़ावा देकर और उद्योगपतियों के हित में श्रम कानूनों को नरम बनाकर संविधान की आत्मा पर ही चोट कर रही है। भाजपा सरकार सार्वजनिक उपक्रमों को खत्म करने पर आमादा है, जो समाजवादी समाज की बुनियाद हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में सत्ता का केंद्रीकरण भी विकेंद्रीकरण के संवैधानिक मूल्यों को खत्म करने का एक और उदाहरण है।

सोशलिस्ट पार्टी सरकार से मांग करती है कि :

-सरकारी बैंकों के बड़े कर्जदारों के नाम सार्वजनिक किए जाएं, जिनके पास कुल 8 लाख करोड़ रु. बकाया हैं। ऐसे लोग जब सार्वजनिक हित और अर्थव्यवस्था को चौपट कर रहे हैं तो उन्हें क्यों बचाया जाना चाहिए?

-स्विश बैंकों और दूसरे ‘कर चोरों की जन्नत’ कहे जाने वाले देशों में खाताधारकों के नाम फौरन सार्वजनिक किए जाएं और वहां जमा काला धन वापस लाया जाए, जैसा कि लोकसभा चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी ने वादा किया था।

-कारपोरेट क्षेत्र से चुनाव फंडिंग बंद की जाए, कारपोरेट घरानों के अलग चुनाव ट्रस्ट के बहाने भी इस तरह की फंडिंग पर रोक लगे।

– कारपोरेट क्षेत्र सहित ऊंची आमदनी पर न्यूनतम 30 फीसदी का कर लगाया जाए।

-समाज में भारी गैर-बराबरी को घटाने के लिए विरासत कर लगाया जाए।
-महिला आरक्षण विधेयक को संसद और विधानसभाओं में फिर से पेश किया जाए।

इन फौरी मांगों के साथ सोशलिस्ट पार्टी देश के लोगों, खासकर युवाओं और सभी राजनैतिक दलों से अपील करती है कि आत्मनिर्भर, समृद्ध और सभ्य राष्ट्र के निर्माण के उद्देश्य से संविधान की रक्षा में एकजुट होकर आवाज उठाएं।

सोशलिस्ट पार्टी का नारा
समता और भाईचारा

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