उड़ी हमले के बाद से देश में जो युद्धोन्माद का माहौल निर्मित किया जा रहा है उससे ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार देश को युद्ध में झोंकने की तैयारी कर रही है। शासकों को युद्ध से फायदा हो सकता है किंतु कोई भी युद्ध आम जनता के हित में नहीं होता। भारत-पाकिस्तान युद्ध तो कतई नहीं हो सकता क्योंकि दोनों देशों के पास परमाणु शस्त्र हैं। जो लोग युद्ध की बात कर रहे हैं उनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या वे दोनों देशों में कई शहरों को हिरोशिमा-नागासाकी में तब्दील होते देखना चाहते हैं? युद्ध की बात करना भी पागलपन है। भारत पाकिस्तान के बीच चार युद्ध हो चुके हैं। उनसे समस्या का कोई समाधान तो निकला नहीं। न ही कोई युद्ध ऐसा निर्णायक ही रहा कि आगे युद्ध की जरूरत न पड़े। यानी युद्ध से समाधान निकलने की सम्भावना क्षीण ही है। फिर युद्ध से क्या लाभ?
युद्ध की वजह, कशमीर समस्या, का हल निकालने की जरूरत है ताकि भविष्य में न तो कोई भारतीय सैनिक शहीद हो और न ही कशमीर का कोई नागरिक। सरकार की यह जिम्मेदारी है कि कशमीर में माहौल सामान्य बनाए और पाकिस्तान के साथ वार्ता करे ताकि कोई स्थाई समाधान, जो कशमीर के लोगों को मंजूर हो, निकाला जा सका। यह ठीक है कि हमारे सैनिक बहुत बहादुर हैं और वे देश के लिए हर वक्त कुर्बानी देने के लिए तैयार रहते हैं किंतु उनकी जान कीमती है, खासकर उनके परिवार वालों के लिए। हमें उन्हें अनावश्यक नहीं मरने देना चाहिए। सरकार की नीतियां ही तय करती हैं कि सैनिक कितने सुरक्षित रहेंगे। सरकारें तो जब चाहें दोस्ती कर लेती जब चाहें तो दुश्मनी का माहौल बना देती हैं। भारत व पाकिस्तान के आम नागरिक तो जब मौका मिलता है बड़े सद्भाव से मिलते हैं। उनके बीच कोई दुश्मनी नहीं। तब सरकारों की दुश्मनी का खामियाजा हमारे सैनिक क्यों भुगतें?
नरेन्द्र मोदी की सरकार को आए अभी दो वर्ष ही हुए हैं और भारत पर दो आतंकी हमले हो चुके। जम्मू व कशमीर में भाजपा की गठबंधन सरकार है और आजादी के बाद से जम्मू व कशमीर में सबसे खराब हालात हैं। आखिर क्या बात है कि भाजपा की सरकार आने के बाद से कशमीर के अंदर और भारत की सीमा पर स्थिति ज्यादा तनावपूर्ण हो गई है? इसमें कहीं भारतीय जनता पार्टी के नजरिए व उनके तरीके का दोष तो नहीं? इस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोगों को आत्मचिंतन करने की जरूरत है।
अभी तक भारत सरकार कशमीर के मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने से बच रही थी। किंतु बलूचिस्तान का मुद्दा उठा कर भारत खुद ही इस मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण कर रहा है। भारत को बलूचिस्तान का मुद्दा उठाने का पूरा हक है किंतु हमारी प्राथमिकता कशमीर होनी चाहिए। यदि कशमीर में दो माह में 80 के ऊपर लोग मर जाते हैं और हमें अपने ही नागरिकों पर छर्रे के बौछार वाली बंदूको का इस्तेमाल करना पड़ता है जिससे बच्चों तक की जानें चली जाती हैं या लोग अंधे हो जाते हैं तो यह दुनिया में कोई अच्छा संदेश नहीं देता है। यह इस बात का प्रमाण है कि कशमीर के लोग भारत के साथ नहीं है। भारत सरकार कशमीर में होने वाली हरेक घटना के लिए पाकिस्तान को दोषी ठहराती है। यह सच है कि पाकिस्तान कई कशमीरी नवजवानों को आतंकवादी प्रशिक्षण देता है किंतु जब कशमीर के बच्चे और महिलाएं भी सुरक्षा बलों के सामने पत्थर लेकर खड़े हो जाते हैं तो वह हमारी नीतियों का दोष है। बिना अपने घर को ठीक किए बाहर वाले को दोष देने से भारत की विश्वसनीयता नहीं बनेगी।
भारत पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र के रूप में चिन्हित करवाना चाहता है। किंतु अमरीका की भूमिका पर हम कोई सवाल नहीं उठाते। मुम्बई हमले में एक अमरीकी डेविड कोलमैन हैडली की भूमिका की बात क्यों नहीं की जाती? आखिर अमरीका पाकिस्तान को आज भी क्यों हथियार मुहैया करा रहा है? यदि हम पाकिस्तान के खिलाफ पूर्वाग्रह के कारण अन्य कारणों को नजरअंदाज करेंगे तो आतंकवाद थमने वाला नहीं।
हमें अपनी सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम करने की भी जरूरत है ताकि देश में बार-बार घुसपैठ न हो। यह अच्छा होगा कि हम आक्रमण करने वाले हथियारों पर पैसा खर्च करने के बजाए घुसपैठ से अपनी सुरक्षा के आधुनिक इंतजाम करें। राष्ट्रवाद के नाम पर बड़ी-बड़ी बात करने वाले नेताओं से पूछा जाना चाहिए कि यह कैसे होता है कि आतंकवादी अपनी मर्जी से भारत की सीमा में काफी अंदर तक चले आते हैं और हमारी खुफिया एजेंसियों को खबर तक नहीं लगती? जो लोग इन घुसपैठ के लिए जिम्मेदार हैं उनकी जवाबदेही तय होनी चाहिए।
यदि भारतीय जनता पार्टी आर्थिक विकास के मुद्दे पर अपनी असफलता को ढंकने के लिए युद्ध के बहाने लोगों का ध्यान बांटना चाहती है तो इससे ज्यादा शर्मनाक बात कोई हो नहीं सकती। नरेन्द्र मोदी के तमाम प्रयासों के बावजूद देश में कोई खास पूंजीनिवेश नहीं हुआ है, निजीकरण को तेजी से बढ़ावा दिया जा रहा है जिसमें उन्हीं के मित्र अंबानी व अडानी को ज्यादा लाभ मिल रहा है, महंगाई व बेरोजगारी पर कोई रोक नहीं है। युद्ध की बात करते हुए रेल बजट को अलग से पेश न करने का महत्वपूर्ण निर्णय व घाटे में चलने वाली 17 सरकारी कम्पनियों को बेचने का निर्णय इन पर सवाल खड़े करता है। युद्ध की आशंका की छाया में कहीं सरकार की मंशा यह तो नहीं कि बिना बहस के ये बड़े निर्णय देश पर थोप दिए जाएं?
हमारी भारत सरकार से अपेक्षा है कि सरकार युद्ध की बात करना बंद कर कशमीर की समस्या का स्थाई हल ढूढ़ने की दिशा में पहल करे। बकायदा घोषित नीति के तौर पर पाकिस्तान के साथ दोस्ती व शांति स्थापित करे। यह काम ठीक उसी तरह एक झटके में हो सकता है जैसे नरेन्द्र मोदी अचानक पाकिस्तान पहुंच गए। भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती के लिए मौजूद साझा सांस्कृतिक आधार मददगार होगा। चूंकि पाकिस्तान यह मानने को तैयार नहीं कि किसी भी आतंकी हमले में उसका हाथ है तो उसे भी इसके लिए राजी करे कि सम्बंधों को सामान्य बनाया जाए। इस दिशा में एक चीज जो मदद करेगी वह एक-दूसरे के नागरिकों का आपस में मिलना जुलना आसान बनाएं। यदि भारत-पाकिस्तान सम्बंध सामान्य बनते हैं तो कशमीर समस्या का हल निकालना भी आसान हो जाएगा।
लेखकः संदीप पाण्डेय
उपाध्यक्ष, सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया)
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