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25 मार्च 2018
प्रेस रिलीज़
इराक में भारतीय मज़दूरों की हत्या : मजदूरों को सरकार की उपेक्षा के विरोध में उतरना चाहिए
इराक के मोसुल शहर में इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों द्वारा बंधक बनाये गए 40 मज़दूरों में से अकेले बचे हरजीत मसीह ने ‘दि हिंदू‘ अखबार (24 मार्च 2018) में प्रकाशित इंटरव्यू में पूरी घटना का ब्योरा दिया है. उसने कहा है कि भारत लौटने पर उसे गिरफ्तार कर कई महीनों तक हिरासत में रखने वाले सरकारी अधिकारियों ने हिदायत दी थी कि वह 39 साथी मज़दूरों के मारे जाने की सच्चाई किसी को नहीं बताए. ऐसा करने पर उसे मृतकों के परिवार वालों के गुस्से का शिकार होना पड़ सकता है. हरजीत मसीह ने अधिकारियों को बताया था कि इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों ने 40 भारतीय मज़दूरों को जून 2014 में कारखाने से अगुआ किया था और दो दिन बाद वीरान जगह पर गोलियों से हत्या कर दी थी. हरजीत मसीह एक साथी की लाश के नीचे दब कर बच गए थे. हरजीत मसीह के इस बयान से यह साफ़ है कि सरकार इस मामले में न केवल संसद बल्कि मज़दूरों के परिजनों से पिछले चार सालों से झूठ बोल रही थी.
सोशलिस्ट पार्टी सरकार के इस मिथ्या और अमानवीय कृत्य की निंदा करती है. दरअसल विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने मज़बूरी में सच्चाई उजागर की है, क्योंकि उसी दिन यानि मंगलवार 20 मार्च 2018 को इराकी अधिकारियों ने इस मामले में प्रेस कांफ्रेंस करना तय किया था. इस घटना ने सरकार की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में विदेशों में भारत की मज़बूत साख बनाने के दावों की भी पोल खोल दी है.
सोशलिस्ट पार्टी का मानना है कि सरकार इस तरह का असंवेदनशील रवैया इसीलिए अपना पाई क्योंकि इराक में मारे गए लोग साधारण मज़दूर और गरीब परिवारों से थे. बाजारवादी मूल्यों से परिचालित शासक वर्ग ने मानवीयता का त्याग कर दिया है. सरकार ने सोच लिया होगा कि मारे गए लोगों के परिजनों के सदमे, आक्रोश और आंसुओं की कीमत उन्हीं की गाढ़ी कमाई से लूटी गई दौलत में से कुछ रकम देकर चुका दी जायेगी.
इराक में मारे गए मज़दूरों के परिजनों को यह खबर सरकार से सीधे नहीं, टीवी चेनलों से मिली. इसका अर्थ है सरकार गरीबों को इस लायक भी नहीं समझती कि उनके प्रियजनों की मौत की सूचना उन्हें दी जाए. मारे गए एक मज़दूर 36 वर्षीय गुरचरण सिंह के पिता सरदारा सिंह ने कहा कि फिर श्रीमती सुषमा स्वराज काली माँ की कसम खा कर उनसे बार–बार यह क्यों कहती रहीं कि ‘बच्चे सुरक्षित हैं‘? इस सवाल का उनके पास क्या जवाब है? ज़ाहिर है, सरकार मान कर चलती है कि गरीबों से सच बोलना जरूरी नहीं है. लिहाज़ा, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि सरकार ने मृतकों के परिजनों से माफ़ी मांगना ज़रूरी नहीं समझा है.
सोशलिस्ट पार्टी की मांग है की सरकार में यदि ज़रा भी मानवता और सभ्यता शेष है तो उसे मृतकों के परिजनों से तुरंत माफी मांगनी चाहिए. लेकिन साथ ही सोशलिस्ट पार्टी देश और विदेशों में दिन–रात मेहनत करने वाले मज़दूरों का आह्वान करती है कि वे अपने हितों की रक्षा के लिए कार्पोरेट समर्थक सरकार का पुरजोर विरोध करें. ध्यान रहे, मध्य–पूर्व में काम करने वाले भारतीय मज़दूर भारी मात्रा में विदेशी धन भारत में लेकर आते हैं. उनका योगदान किसी भी मायने में अनिवासी भारतीयों से कम नहीं है.
डॉ. प्रेम सिंह
अध्यक्ष
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