न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल के फैसले कि सरकारी वेतन पाने वालों के बच्चों का सरकारी विद्यालयों में पढ़ना अनिवार्य हो को लागू कराने के लिए किए जा रहे अनशन पर सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है जबकि मुख्यमंत्री ने इसी बीच ’खूब पढ़ो, आगे बढ़ो’ अभियान की शुरूआत की है और भव्य कार्यक्रम में बच्चों को स्कूल बैग, किताबें, ड्रेस, जूते व मोजे बांटे। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि कोई भी बच्चा स्कूल जाने से छूटने न पाए किंतु यह कैसे होगा यह नहीं बताया। बस एक अच्छी बात यह कही गई कि सरकारी विद्यालयों की सकारात्मक छवि को पुनर्स्थापित किया जाएगा।
जाहिर है सरकार ने अनशन को नजरअंदाज किया है। इसके विरोध में हमने अनशन वापस लेने का फैसला किया है और ऐसे बच्चों के हाथों से जूस पीकर अनशन समाप्त किया जाएगा जो अभी वि़द्यालय जाने से वंचित हैं अथवा शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 12(1)(ग) के अंतर्गत जिलाधिकारी के आदेश से शहर के जाने माने विद्यालयों में प्रवेश पाए लेकिन विद्यालयों ने उन्हें दाखिला नहीं दिया। यह शासन-प्रशासन के मुंह पर तमाचा है। क्या योगी बताएंगे कि पिछले शैक्षणिक सत्र में जिन 105 बच्चों के दाखिले का आदेश सिटी मांटेसरी स्कूल, नवयुग रेडियंस, सिटी इण्टरनेशनल, सेण्ट मेरी इण्टर कालेज, विरेन्द्र स्वरुप पब्लिक स्कूल में हुआ लेकिन उपर्युक्त विद्यालयों ने दाखिला लिया ही नहीं, वे दाखिले मुख्यमंत्री कैसे कराएंगे? इस शैक्षणिक सत्र में भी जिन बच्चों के दाखिले का आदेश अभी तक सिटी मांटेसरी स्कूल में हुआ है विद्यालय उनके खिलाफ यह कहते हुए न्यायालय चला गया है कि ये बच्चे पात्र नहीं हैं। यह कैसे हो सकता है कि बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा सिटी मांटेसरी में कराए गए सभी दाखिले गलत होते हैं? इस विद्यालय द्वारा शिक्षा के अधिकार अधिनियम की खुलेआम जो धज्जियां उड़ाई जा रही हैं उसके खिलाफ शासन-प्रशासन की कोई कार्यवाही करने की हिम्मत है? जगदीश गांधी इन बच्चों को विद्यालय जाने से सीधे वंचित कर रहे हैं।
यह अच्छी बात है कि सरकार अपने विद्यालयों की खोई हुई गरिमा वापस लौटाना चाहती है। लेकिन सिर्फ स्कूल बैग, किताबें, ड्रेस, जूते व मोजे बांटने से यह नहीं होगा। और न ही वृक्षारोपण अभियान से होगा। हमारा मानना है कि यह तभी सम्भव है जब सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों, जन प्रतिनिधियों व न्यायाधीशों के बच्चे सरकारी विद्यालय में पढ़ने जाएंगे। इनके जाते ही सरकारी विद्यालयों की गुणवत्ता में रातों-रात सुधार होगा जिसका फायदा गरीब जनता को मिलगा जिसका बच्चा भी अच्छी शिक्षा पाएगा। इसका लाभ उन मध्यम वर्गीय परिवारों को भी मिलेगा जो अभी अपने बच्चों को मनमाना शुल्क वसूल करने वाले विद्यालयों में भेजने के लिए मजबूर हैं क्योंकि तब ये लोग भी अपने बच्चों को सरकारी विद्यालयों में ही पढ़ाएंगे।
हमें इस बात का अफसोस है कि सरकार को यह बात समझ में नहीं आ रही। अनशन भले ही समाप्त हो गया है लेकिन हमारा संघर्ष जारी रहेगा। न्यायालय के रास्ते, जनता के बीच अभियान चला कर और सरकार के साथ पैरोकारी कर हम न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल के फैसले को लागू कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
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