दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंसा : सोशलिस्ट युवजन सभा का नजरिया
सोशलिस्ट युवजन सभा (एसवाईएस) दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में हुई हिंसा का पुरजोर विरोध करती है। एसवाईएस देश के अन्य कई विश्वविद्यालयों में कई रूपों में हुई हिंसा का भी पुरजोर विरोध करती है। हैदराबाद विश्वविद्यालय के होनहार शोध-छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या इसी हिंसा की राजनीति का परिणाम कही जा सकती है। एसवाईएस का मानना है कि विश्वविद्यालय अभिव्यक्ति की आजादी और व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास का मंच हैं। विश्वविद्यालयों में देश के भविष्य का निर्माण होता है, जहां विद्यार्थी अपने को वैचारिक स्तर पर समृद्ध बना कर देश और समाज के लिए सार्थक जीवन जीने की राह बनाते हैं। लेकिन बडे पैमाने पर पहले जेएनयू और अब डीयू की हिंसक घटनाओं ने विश्वद्यालयों की गरिमा को चोट पहुंचाई है। इससे सामान्य छात्राओं-छात्रों, खासतौर पर वे जो दूर-दराज क्षेत्रों से यहां पढाई करने आए हैं, को असुरक्षित बना दिया है और उनके अकादमिक कैरियर को बाधित किया है।
केन्द्र की सत्ता की शह पर आरएसएस-भाजपा की छात्र इकाई एबीवीपी राष्ट्रवाद और संस्कृति की ठेकेदार बन कर उत्पात मचाती है। उसके जवाब में कम्युनिस्ट छात्र संगठन अभिव्यक्ति की आजादी का संघर्ष चलाते हैं। संघियों और कम्युनिस्टों के बीच छिडी वर्चस्व की लडाई में स्वतंत्र, उदार, अहिंसक, लोकातांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और सामाजिक न्याय के पक्षधर सामान्य छात्राएं-छात्र और संगठन स्वाभाविक तौर पर एबीवीपी के दकियानूसी एजेंडे के खिलाफ डट कर खडे होते हैं। लेकिन कम्युनिस्ट छात्र संगठनों का इरादा उन्हें अपने सीमित एजेंडे के लिए इस्तेमाल करने का होता है। इससे छात्र-हितों का संघर्ष कमजोर होता है, जिसका फायदा एबीवीपी को मिलता है। कम्युनिस्ट छात्र संगठन इन समूहों का नेतृत्व नहीं करते, यह तथ्य जेएनयू छात्र संघ चुनाव में पहली बार में ही BAPSA के शानदार प्रदर्शन ने साबित किया है। सोशलिस्ट युवजन सभा ने कई दशकों की लंबी अनुपस्थिति के बाद वर्ष 2013 और 2014 में डूसू चुनाव में अपना पैनल उतारा था, जिसे छात्राओं-छात्रों का बहुत अच्छा समर्थन मिला था। सोशलिस्ट युवजन सभा का स्पष्ट मानना है कि विश्वविद्यालय परिसरों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की लडाई को वर्चस्व की लडाई में घटित नहीं किया जाना चाहिए।
यह चिंताजनक है कि रामजस कॉलेज की घटना के बाद सोशल मीडिया पर कई कम्युनिस्ट साथी खुले आम हिंसा की वकालत करते नजर आए। हिंसा का दुष्परिणाम सबसे अधिक समाज के कमजोर तबकों से आने वाले छात्राओं-छात्रों को झेलना पडता है। सोशलिस्ट युवजन सभा मानती है कि विश्वविद्यालय परिसरों में हिंसक छात्र राजनीति के लिए कोई जगह नहीं है। लिहाजा, वह किसी तरह की और किसी भी तरफ से की जाने वाली हिंसा का विरोध करती है। अब वक्त आ गया है, जब तमाम छात्र संगठन अहिंसा के रास्ते पर चलना स्वीकार करें जो भगत सिंह, गांधी, आचार्य नरेंद्रदेव, युसुफ मेहर अली, डॉ. अंबेडकर, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान, डॉ. लोहिया, जेपी और किशन पटनायक जैसे विचारकों ने भली-भांति दिखाया है।
रामजस कॉलेज की घटना के बहाने एक बार फिर से कुछ लोगों को छात्र राजनीति के खिलाफ बोलने का मौका मिल गया है। वे कहते हैं कि विश्वविद्यालय परिसर में राजनीति की जरुरत क्या है। सोशलिस्ट युवजन सभा का मानना है कि राजनीति की सही ट्रेनिंग विश्वविद्यालय परिसर में ही हो सकती है। इस संदर्भ में भगत सिंह और डॉ. लोहिया के ये कथन दृष्टव्य हैं :
‘वे (विद्यार्थी) पढें। साथ ही पॉलिटिक्स का भी ज्ञान हासिल करें और जब जरूरत हो तो मैदान में कूद पडें और अपना जीवन इसी काम में लगा दें।‘ (भगत सिंह)
‘जब विद्यार्थी राजनीति नहीं करते तब वे सरकारी राजनीति को चलने देते हैं और इस तरह से परोक्ष में राजनीति करते हैं।‘ (डॉ. लोहिया)
निवेदक सोशलिस्ट युवजन सभा
नीरज कुमार (अध्यक्ष) बंदना पांडे (महासचिव)
संपर्क : 9911970162