सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) ने लोहिया भवन, हजरगंज, लखनऊ में शहीदी दिवस और लोहिया जयंती के अवसर पर पर भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और डा० राम मनोहर लोहिया की याद करते हुये एक सभा किया।
सभा का संचालन करते हुए सलीम भाई ने कहा कि इस देश की आज़ादी के लिए शहीद भगत सिंह ने 23 वर्ष की उम्र में हंसते हुए फाँसी के फन्दे को चूम लिया, उनके साथ फाँसी के फन्दे को चूमने वालों में सुखदेव और राजगुरु थे। उन्होंने जिस आज़ाद देश का सपना देखा था वो आज भी सही अर्थों में आज़ाद नहीं है। वर्तमान समय में सरकार ने अभिव्यक्ति की आज़ादी पर भी पाबंदी लगा दिया हैं। लोहिया जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुये सलीम भाई ने कहा कि राममनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को फैजाबाद में हुआ था। उनके पिताजी हीरालाल पेशे से अध्यापक व हृदय से सच्चे राष्ट्रभक्त थे। उनके पिताजी गांधीजी के अनुयायी थे। जब वे गांधीजी से मिलने जाते तो राम मनोहर को भी अपने साथ ले जाया करते थे। इसके कारण गांधीजी के विराट व्यक्तित्व का उन पर गहरा असर हुआ।
डा० लोहिया जी अपने पिताजी के साथ 1918 में अहमदाबाद कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार शामिल हुए। बनारस से इंटरमीडिएट और कोलकता से स्नातक तक की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए लंदन के स्थान पर बर्लिन का चुनाव किया था। वहीं जाकर उन्होंने मात्र तीन माह में जर्मन भाषा पर अपनी मजबूत पकड़ बनाकर अपने प्रोफेसर जोम्बार्ट को चकित कर दिया। उन्होंने अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि केवल दो वर्षों में ही प्राप्त कर ली। जर्मनी में चार साल व्यतीत करके, डॉ. लोहिया स्वदेश वापस लौटे और किसी सुविधापूर्ण जीवन के स्थान पर जंग-ए-आजादी के लिए अपनी जिंदगी समर्पित कर दी।
लोहिया जी ने कहा था कि अगर सड़क खामोश हो गई तो संसद आवारा हो जाएगी. और ज़िंदा क़ौमे पांच साल इंतज़ार नहीं करती हैं.
मज़दूर नेता उमशंकर मिश्रा जी ने सभा को संबोधित करते हुये कहा कि आज हम लोग अपने प्रिय समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया जी के जयंती के अवसर पर यहाँ इकठ्ठा हुए हैं. आज जब चुनाव की घोषणा हो गई है, इस समय लोहिया जी के विचारों की आज एक बहुत बड़ी उपयोगिता है, आम जनता को दिशा और निर्देश देने के लिए. आजादी की लड़ाई कांग्रेस के बैनर तले सभी ने लड़ी जिसमे गाँधी जी, नेहरु, लोहिया आचार्य नरेंद्र देव. सरदार पटेल लोहिया जी जैसे नेता और क्रन्तिकारी लड़ें. भारतीय समाज में समाजवादी विचारधारा के जनक आचार्य नरेंद्र देवजी, राम नारायण लोहिया जी और जयप्रकाश नारायण जी थे. लोहिया जी नेहरू, सुभाष चन्द्र बोस और गाँधी जी के बहुत करीब थे. लोहिया जी कांग्रेस में रहते हुए सोशलिस्ट विचारधारा को आगे बढ़ाते रहे, बाद में उन्होंने कांग्रेस से अलग हटकर सोशलिस्ट विचारधारा को और आगे बढाया. नेहरु जी जब प्रधान मंत्री हो गये तो उनके कार्य और विचार धारा में फर्क होने लग गया तब लोहिया जी, गाँधी जी के और करीब आ गए. लोहिया जी जीवन पर्यंत नेहरु जी से लेकर इंदिरा गाँधी तक उनकी गलत नीतियों और गलत विचारों का पुरजोर विरोध सड़क से लेकर संसद तक किया. आजादी के बाद गाँधी जी चाहते थे कि कांगेस को भंग कर दिया जाय, लेकिन लोग नहीं माने और गाँधी जी का भी नेहरु से मोहभंग होने लगे. डा० लोहिया जी ताउम्र समाजवादी विचारधारा के लिए संघर्ष करते रहे. वर्तमान सरकार आज लोगों को धर्म का अफीम चटाकर राज कर रही है, ये किसी देश के लिए अच्छा, नहीं है. डा० लोहिया जी कहते थे, धर्म श्रेयस पाने का साधन हैं और राजनीति अन्याय से लड़ने का प्लेटफार्म है. धर्म देह कालीन राजनीति है और राजनीति अल्पकालीन धर्म है. अन्याय के खिलाफ लड़ना धर्म है, शोषण के खिलाफ लड़ना धर्म है, जातिवादी के खिलाफ लड़ना धर्म है.
आज के सभा का समापन करते हुए सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के राष्ट्रीय महासचिव डा० संदीप पाण्डेय ने कहा की डा० राम मनोहर लोहिया जी की विचारधारा को आगे ले जाने के लिए सोशलिस्ट पार्टी पूरे देश में सड़क से लेकर संसद तक सदैव संघर्ष करती रहेगी.
संदीप पाण्डेय