– संदीप पाण्डेय

नरेन्द्र मोदी ने एक अभियान शुरु किया है जिसमें वे हरेक सांसद से अपेक्षा कर रहे हैं कि वह अपने चुनाव क्षेत्र का एक गांव विकास कार्यों के लिए विशेष रूप से गोद ले। या तो इस विचार में इतना आकर्षण है अथवा कोई इस सकारात्मक पहल में पीछे नहीं दिखना चाहता कि विपक्षी दलों के सांसद भी अपने-अपने क्षेत्र का एक गांव चुन रहे हैं। आम तौर पर इस तरह से गांव गोद लेने के कार्यक्रम गैर-सरकारी संस्थाएं या निजी कम्पनियां करती हैं।

एक सांसद का चुनाव क्षेत्र काफी बड़ा होता है। वह अपने आप को सिर्फ एक गांव के विकास तक कैसे सीमित रख सकता है? क्या हम एक सांसद को ग्राम प्रधान बना देना चाहते हैं? या हमारे सांसदों को यह समझ में आ गया है कि पूरे क्षेत्र का विकास तो कर नहीं सकते तो कम से कम एक ही गांव पर ध्यान केन्द्रित करो। इस तरह से पांच साल बाद जब क्षेत्र के लोग सवाल पूछेंगे कि उन्होंने काम क्यों नहीं किया तो वे बहाना बना सकते हैं कि उनका समय एक गांव में ही चला गया और उन्हें दूसरे गांवों पर ध्यान देने का समय ही नहीं मिला। किंतु यदि वे एक गांव के लोगों को भी विकास के मामले में संतुष्ट नहीं कर पाए तो इस कार्यक्रम की पोल खुल जाएगी। सवाल यह भी है कि कौन किन मानकों पर तय करेगा कि विकास हुआ अथवा नहीं? उदाहरण के लिए गांव में पक्की सड़क बने अथवा गांव की आंगनबाड़ी ठीक से चले, विकास की प्राथमिकता में कौन सी चीज पहले होनी चाहिए? इसकी प्रबल सम्भावना है कि शुरुआती उत्साह के बाद हमारी संवेदनहीन, भ्रष्ट व अकार्यकुशल व्यवस्था एक गांव में भी कोई ठोस सकारात्मक परिणाम न दे पाए।

सांसद एक ऐसी व्यवस्था का हिस्सा है जिसमें उसे कार्यपालिका का सहयोग उपलब्ध है। ऊपर से लेकर नीचे तक एक व्यवस्था है जिसमें जिले में मुख्य विकास अधिकारी, खण्ड विकास अधिकारी व ग्राम पंचायत विकास अधिकारी हैं जो विकास के लिए जिम्मेदार हैं। सांसद चाहे तो विकास कार्य कराने के लिए इनकी सेवा ले सकता है। इसके अलावा जन प्रतिनिधियों की अपनी व्यवस्था है। सांसद चाहे तो ग्राम प्रधान, क्षेत्र प्रमुख व जिला पंचायत अध्यक्ष, विधायक या अन्य जन प्रतिनिधियों का सहयोग भी विकास कराने हेतु ले सकता है। फिर सांसद एवं विधायकों के पास अपनी निधि का पैसा भी होता है जिसका वे खुद इस्तेमाल कर सकते हैं।

अहम सवाल यह है कि जब प्रषासनिक एवं जन प्रतिनिधियों की पूरी व्यवस्था का इस्तेमाल कर जो काम कोई सांसद एक गांव में कर सकता है वह अपने क्षेत्र में पड़ने वाले सभी गांवों में क्यों नहीं कर सकता? बल्कि उसकी जिम्मेदारी है कि वह अपने चुनाव क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सभी गांवों का विकास करवाए। यदि वह सभी गांवों को नजरअंदाज कर सिर्फ एक गांव पर अपना ध्यान केन्द्रित करता है तो अन्य गांवों के साथ और अपनी भूमिका के साथ अन्याय कर रहा है।

कुछ लोगों को नरेन्द्र मादी की यह एक गांव चुनने वाली बात भा सकती है लेकिन इसने कुल मिला कर एक भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है। यह सांसदों को उनकी बड़ी भूमिका से एक छोटी भूमिका में संकुचित कर देगा। या फिर नरेन्द्र मोदी चाहते नहीं कि सांसद बड़े स्तर काम करें। वैसे नरेन्द्र मोदी ने सारी निर्णय की प्रकिया को अपने इर्द-गिर्द केन्द्रित कर सांसदों के करने के लिए कुछ छोड़ा भी नहीं है। एक गांव गोद लेने वाली योजना वैचारिक दिवालिएपन का प्रतीक है जिसका कोई भविष्य नहीं है।

होना यह चाहिए कि संविधान के 73वें व 74वें संषोधन के तहत स्थानीय निकायों की निर्णय की प्रकिया में भागीदारी के माध्यम से विकास के काम होने चाहिए। एक सांसद द्वारा एक गांव गोद लेने के बजाए हरेक गांव के ग्राम प्रधान, ग्राम पंचायत व ग्राम सभा को इतना सषक्त करने की योजना बनानी चाहिए कि वे अपने आर्थिक विकास व सामाजिक न्याय के कार्यक्रम खुद ले सकें। स्थानीय निकायों को मजबूत करने से ही इस किस्म का विकास होगा जो स्थानीय लोगों की जरूरतों को पूरा कर सके। अनुच्छेद 243 में ग्राम पंचायतों व नगर पालिकाओं को यह अधिकार दिया गया है कि वे क्रमषः 29 व 18 विषयों में जो संविधान की अनुसूची 11 व 12 में दिए गए हैं पर अपने स्तर से निर्णय ले सकें।

एक वजह कि स्थानीय निकाय अपने पूरे अधिकारों का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे, है कि ऊपर के स्तर से अधिकारियों व जन प्रतिनिधियों का हस्तक्षेप होता है। विधायक या सांसद की स्थानीय स्तर पर कोई भूमिका ही नहीं होनी चाहिए। किंतु विधायक व सांसद स्थानीय उचित मूल्य की दुकान के विके्रता से लेकर थानाध्यक्ष व उप जिलाधिकारी अपनी पसंद का चाहते हैं। वे पंचायत सदस्यों से भय या प्रलोभन के आधार पर अपनी पसंद का क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष या जिला पंचायत अध्यक्ष भी चुनवा लेते हैं।

मोदी की योजना से एक तरफ सांसदों-विधायकों व दूसरी तरफ ग्राम प्रधानों के बीच मतभेद खड़े होंगे। सांसद की भूमिका ऊपर के स्तर पर कानून बनाना या देष के लिए योजनाएं तैयार करना है। गांव के स्तर पर विकास कराना ग्राम प्रधान का काम है। यही वजह है कि लोग विधान सभा या संसद के चुनाव से अधिक मत पंचायत चुनावों में डालते हैं।

बेहतर होगा यदि सांसद गांव के विकास का काम पंचायत सदस्यों पर छोड़ दें और खुद कानून व देष के स्तर पर नीतियां बनाने एवं उनके क्रियान्वयन पर नजर रखने का काम करें। बजाए इसके कि खुद फावड़ा उठाएं, जो वे रोज कर नहीं सकते, वे अन्य कर्मचारियों से काम करवाएं। एक गांव के स्तर पर कुछ कर वे खुषी महसूस कर सकते हैं लेकिन वे अपनी भूमिका के साथ न्याय नहीं करेंगे।

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