भारत पाकिस्तान विवाद के विभिन्न पहलू
जबकि भारत द्वारा पाकिस्तान के अंदर जाकर नियंत्रण रेखा पार सर्जिकल धावे जिसमें दो पाकिस्तानी सैनिकों के मारे जाने की खबर है पर पाकिस्तान व कुछ अंतर्राष्ट्रीय मीडिया संदेह खड़ा कर रहा है हजारीबाग, झारखण्ड में राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम द्वारा खनन हेतु भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चल रहे संघर्ष में चार लोगों के मारे जाने की पुष्टि हुई है। इसके पहले कश्मीर में अलगाववादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों में दो माह के दौरान 80 के करीब लोग मारे गए व झारखण्ड के रामगढ़ जिले में राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम के खिलाफ प्रदर्शन में दो लोग।
प्रधान मंत्री ने कहा है कि पानी और खून साथ-साथ नहीं बह सकते जिसका तात्पर्य यह है कि यदि पाकिस्तान अपनी भूमि से भारत पर हमले होने देगा तो उसे यह अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि जिन नदियों का उद्गम स्थल भारत में है और वे पाकिस्तान में बहकर जाती हैं उनका पानी पाकिस्तान को आसानी से मिलता रहेगा। जबकि यह बात सही है कि पाकिस्तान का भारत में उड़ी, पठानकोट व उससे पहले मुम्बई हमलों में हाथ रहा है, यह नहीं कहा जा सकता कि भारत में सारा खून पाकिस्तान से आए आतंकवादियों की वजह से ही बहा है। भारत के अंदर सुरक्षा बलों द्वारा हिसंक कार्यवाहियों में मारे गए लोगों की संख्या पाकिस्तान से आए आतंकवादियों द्वारा मारे गए भारतीय नागरिकों की संख्या से कहीं ज्यादा है। नरेन्द्र मोदी का बयान इस दुखद सत्य को छिपाता है और भ्रमित करने वाला है। यह किसी अंध राष्ट्रवादी को अच्छा लग सकता है किंतु तार्किक दृष्टि से सोचने वाले किसी नागरिक को नहीं भाएगा।
पाकिस्तान पर हम हमला इसलिए करना चाहते हैं ताकि हम अपनी मातृभूमि की रक्षा कर सकें। किंतु हम अपनी मातृभूमि के साथ कर क्या रहे हैं? क्या उसके ऊपर रहने वाले लोगों के भू-अधिकार सुरक्षित हैं? यदि नरेन्द्र मोदी का बस चले तो वे बिना लोगों से पूछे ही भू-अधिग्रहण कर लें। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार द्वारा अंग्रेजों के बनाए भू-अधिग्रहण अधिनियम में किए गए संशोधनों को तीन बार अध्यादेश लाकर कमजोर करने के प्रयास में नरेन्द्र मोदी असफल रहे। वे यह बदलाव कॉरपोरेट हित में करना चाह रहे थे। ये तो किसानों और जन संगठनों का ऐसा जबरदस्त विरोध था कि सरकार इस कानून को बदल नहीं पाई।
सवाल यह खड़ा होता है कि यदि अंततः नरेन्द्र मोदी की दृष्टि यह है कि निजी कम्पनियों को किसानों की जमीनें आसानी से मिल जानी चाहिए तो क्या वे मातृभूमि की रक्षा के नाम पर लोगों की भावनाओं का इस्तेमाल अपने पीछे गोलबंद करने के लिए करके मातृभूमि की पवित्रता भंग नहीं कर रहे?
मातृभूमि को न सिर्फ दुश्मनों से बचाना है बल्कि निजी कम्पनियों की गिद्ध दृष्टि से भी क्यों इस भूमि पर तमाम लोगों का जीवन व जीविका निर्भर होता है। जब लोग अपनी जमीनों को सरकार द्वारा किए जा रहे भू-अधिग्रहण के प्रयासों से बचाते हैं तो उसी जज्बात के साथ जैसे एक सैनिक दुश्मन से अपनी मातृभूमि की रक्षा करता है क्योंकि सैनिक की तरह लोग भी अपनी जमीन के लिए जान तक देने को तैयार रहते हैं। हजारीबाग में राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम से अपनी जमीनें बचाने वाले लोगों के लिए पाकिस्तान तो दूर का दुश्मन है, उनके लिए सामने खड़ा दुश्मन तो पुलिस और प्रशासन ही है।
राष्ट्रवाद की राजनीति ने बड़ी चालाकी से लोगों को पाकिस्तान के खिलाफ सम्भावित युद्ध की आशंका में सरकार के पीछे गोलबंद कर लिया है किंतु यह सरकार तो खुलकर निजीकरण की नीति की पक्षधर है। नरेन्द्र मोदी ने तो रक्षा क्षेत्र भी निजी कम्पनियों के लिए खोल दिया है। अब बड़ी विचित्र स्थिति पैदा हो गई है। यदि युद्ध होता है तो वह मातृभूमि की रक्षा के लिए तो होगा ही लेकिन अब उसमें निजी कम्पनियों का निहित स्वार्थ भी जुड़ा होगा। सीधी सी बात है। युद्ध होने से निजी कम्पनियों को भारत को और हथियार बेचने का मौका मिलेगा। नरेन्द्र मोदी के नजदीकी पूंजीपति मित्र अनिल अंबानी को भारत सरकार द्वारा फ्रांस से रफेल हवाई जहाज की खरीद में बड़ा मौका मिल गया है। अतः मोदी सरकार राष्ट्रवाद व निजीकरण के संयोग का एक खतरनाक खेल खेल रही है। अब देश इसलिए भी युद्ध करेगा ताकि रक्षा में निजी क्षेत्र को मुनाफा मिलता रहे। मीडिया तो इस पूरे खेल में सरकार के साथ में ही है क्योंकि कोई भी सनसनीखेज चीज मीडिया के लिए फायदेमंद होती है। मीडिया ने युद्धोन्माद के वातावरण निर्माण में पूरा सहयोग दिया है जबकि जमीन पर स्थिति इतनी बुरी नहीं थी। इस तरह मीडिया देश के लोगों का काफी नुकसान कर रही है।
भारत द्वारा अंतराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने के अपने प्रयास पर भी पुनर्विचार करना चाहिए। भारत के तमाम प्रयास के बावजूद दुनिया की बड़ी ताकतें पाकिस्तान का साथ छोड़ने को तैयार नहीं। शायद ऐसा कश्मीर में होने वाली मानवाधिकार हनन की घटनाओं के कारण है। हाल में भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग को वहां नहीं जाने दिया जबकि पाकिस्तान ने सर्जिकल धावे के तुरंत बाद अंतर्राष्ट्रीय मीडिया को वहां जाने का मौका दिया जहां भारत ने हमला किया था। हम कश्मीर में होने वाले मानवाधिकार हनन के प्रति अपनी आंखें मूंद कर सिर्फ पाकिस्तान द्वारा करवाए जाने वाले आतंकी हमलों का रोना नहीं रो सकते।
भारत पाकिस्तान के साथ 1960 में किए गए सिंधु नदी समझौते पर भी पुनर्विचार कर रहा है। इस समझौते के मुताबिक पाकिस्तान के लिए तीन नदियों – सिंधु, झेलम व चेनाब – का पानी छोड़ दिया गया है और भारत रावी, ब्यास व सतलज का पानी अपने तरीके से इस्तेमाल के लिए स्वतंत्र है। इसके पहले कि भारत कुछ करता चीन ने भारत के साथ वह कर के दिखा दिया है जो भारत शायद पाकिस्तान के साथ करने की सोच रहा था। चीन ने ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी का पानी रोक लिया है। चीन का भारत के साथ नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर वैसा कोई समझौता नहीं है जैसा कि भारत व पाकिस्तान के बीच हुआ है। अतः चीन की कार्यवाही अनैतिक भले ही हो, अवैध नहीं मानी जाएगी लेकिन यदि भारत ऐसा कुछ करेगा तो उसे समझौते का उल्लंघन माना जाएगा।
नदी के पानी का बंटवारा कितना संवेदनशील मुद्दा है यह कर्नाटक-तमिल नाडू विवाद से स्पष्ट होना चाहिए। ये राज्य यदि दो देश होते तो अब तक कावेरी नदी के पानी के बंटवारे को लेकर युद्ध हो गया होता। यह तो सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के कारण स्थिति कुछ सम्भली हुई है। सर्वोच्च न्यायालय ने कम से कम लोगों को हिंसक न होने की कड़ी हिदायत दी है। सर्वोच्च न्यायालय दुश्मनी जैसे माहौल को समाप्त करने के लिए दोनों राज्यों के अधिशासी प्रमुखों के बीच वार्ता करवाने का भी प्रयास कर रहा है। उम्मीद है कि सर्वोच्च न्यायालय की पहल से कोई सौहार्द्यपूर्ण समाधान निकल आएगा। यह दिखाता है कि हिंसा किसी विवाद का समाधान नहीं और हल के लिए प्रयास करना पड़ता है।
भारत और पाकिस्तान को कर्नाटक-तमिल नाडू विवाद से सबक लेना चाहिए और हिंसा का रास्ता छोड़कर बातचीत के माध्यम से आपसी समस्याओं का हल निकालना चाहिए।
लेखकः संदीप पाण्डेय
उपाध्यक्ष, सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया)
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