भाजपा के नेताओं की सरलीकृत सोच कश्मीर समस्या को और पेचीदा बनाएगी
जिस तरह से कश्मीर में छर्रे के बौछार वाली बंदूकों का इस्तेमाल डेढ़ महीने से ऊपर किया जाता रहा यह सोचने वाला विषय है कि क्या भारत के किसी और हिस्से में सरकार एक दिन भी इस तरह का हथियार लोगों के खिलाफ इस्तेमाल कर पाती? लोग शायद बगावत पर उतर आते और सरकार ही न चलने देते। सरकार के मंत्री कश्मीर की जनता को हिंसा छोड़ने की नसीहत दे रहे हैं। किंतु बुरहान वानी की मृत्यु के बाद से अब तक के कश्मीर में चले सबसे लम्बे कर्फ्यू में आम जनता से लोगों के मरने के आंकड़े रोज बढ़ रहे थे न कि सुरक्षा बलों के लोगों के। सवाल यह है कि किसकी हिंसा ज्यादा जानलेवा या घातक थी? यदि लोगों से हिंसा छोड़ समाधान की दिशा में सहयोग की अपील की जाती है तो सरकार भी सुरक्षा बलों की हिंसा को रोक माहौल को सामान्य बनाने में अपनी भूमिका अदा करनी होगी। 52 दिनों के बाद कर्फ्यू उठाया गया है।
अरुण जेतली ने साम्बा में अपने भाषण में कहा कि चाहे हथियार का इस्तेमाल करने वाले हों अथवा पत्थर फेंकने वाले दोनों से सख्ती से निपटा जाएगा। राजनाथ सिंह ने कहा कि वे कश्मीरी युवा के हाथ में पत्थर व बंदूक के बजाए पेन, कम्प्यूटर या रोजगार देखना चाहेंगे। रक्षा मंत्री मनोहर परिक्कर ने पाकिस्तान को नर्क कहा है। प्रधान मंत्री कहते हैं हिंसा के लिए उकसाने वाले बच नहीं सकेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि जान चाहे किसी की जाए, युवा हो या सुरक्षाकर्मी, तो यह देश का ही नुकसान है। नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से आने वाले शरणार्थियों के लिए रु. 2000 करोड़ की राशि आवंटित करने की घोषणा की है। भाजपा के सभी नेता मानते हैं और अब महबूबा मु्फ्ती से भी कहलवाया जा रहा है कि कश्मीर में जो भी असंतोष है उसके लिए पाकिस्तान जिम्मेदार है।
भाजपा नेताओं की सरलीकृत सोच कश्मीर समस्या को समाधान की दिशा में न ले जाकर और पेचीदा बनाएगी।
नेताओ ंके बयान से ऐसा लगता है कि विकास से लोगों के असंतोष का दूर किया जा सकता है। किंतु यदि भौतिक विकास से ही लोग संतुष्ट हो जाते तो पड़ोसी सम्पन्न पंजाब का युवा इतने बड़े पैमाने पर नशे का शिकार नहीं होता। क्या सरकार सोचती है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से आने वालों को धन देकर उनकी वफादारी खरीदी जा सकती है? यदि ऐसा होता तो कश्मीर में अन्य राज्यों की अपेक्षा विकास पर ज्यादा धन खर्च करने के बाद आज यह स्थिति न होती। कश्मीर के लोग भारत से खुश नहीं हैं। वे तब तक खुश नहीं हो सकते जब तक कश्मीर समस्या का समाधान उनके मन मुताबिक नहीं निकाला जाता। ज्यादातर विशेषज्ञों का कहना है कि यह हल किसी किस्म की स्वायत्ता होगी जो कश्मीरियों को मंजूर हो। कम से कम भारत द्वारा थोपा कोई हल शायद यहां के लोगों को स्वीकार न हो। भाजपा नेता जितनी जल्दी यह बात समझ जाएंगे उतनी ही उनकी और कश्मीरियों की तकलीफ कम होगी।
कश्मीर में लोगों को भरोसा दिलाने के लिए कि सरकार समाधान के लिए गम्भीर है सुरक्षा बलों को धीरे धीरे हटाना चाहिए। 13 वर्षों में पहली बार सीमा सुरक्षा बल को भी बुलाया गया। सुरक्षा बलों की भूमिका सीमा पर है, उन्हें वहां तैनात रहना चाहिए। अंदरूनी कानून और व्यवस्था जम्मू व कश्मीर की सरकार और पुलिए पर छोड़नी चाहिए। आखिर देश में अन्य जगहों पर भी आतंकवादी हमले होते हैं। क्या हर जगह सुरक्षा बलों को न्योता दिया जाता है? और इतने लम्बे समय तक कहीं सुरक्षा बलों को रखा जाता है?
अरुण जेतली को सोचना चाहिए कि आम कश्मीरी महिला और बच्चा भी क्यों पत्थर उठा रहा है? पत्थर तो लोग सुरक्षा बलों की हिंसा की प्रतिक्रिया में उठा रहे हैं। बल्कि जेतली को तो कश्मीरियों का धन्यवाद देना चाहिए कि लोग सिर्फ पत्थर ही उठा रहे हैं और बड़े पैमाने पर कोई हिंसा नहीं कर रहे। ऐसे कश्मीरी जो सुरक्षा बलों पर घातक हमले कर सकें उनकी संख्या तो बहुत कम है। सुरक्षा बल तो पत्थरों से अपनी सुरक्षा कर ही सकती हैं। किंतु लोग, जिनमें बच्चे और महिलाएं भी शामिल हैं, अपने को छर्रे के बौछार वाली बंदूकों से कैसे बचाएंगे? इस हथियार से 8 वर्षीय जुनैद का फेफड़ा फटने से या 16 वर्षीय इंशा की आंख जाने से लोगों के पास क्या सुरक्षा है? जितने लम्बे समय से कश्मीरी इन घातक हथियारों को झेल रहे हैं हमें कहना होगा कि कश्मीरी हिसंक नहीं बल्कि बहुत सहनशील हैं। मुख्य मंत्री को शर्म भी नहीं आती कि वे इंशा से अस्पताल में पूछती हैं कि क्या वह उनसे नाराज है? इतना अपमान कहां की जनता झेलेगी? भारत के मुख्य भू-भाग में इस किस्म की हिंसा, शायद आदिवासी इलाके को छोड़, कहीं भी बरदाश्त नहीं की जाती। कश्मीरियों का यह सवाल जायज है कि भारत में छर्रे के बौछार वाली बंदूकों का इस्तेमाल अब तक और कहीं क्यों नहीं किया गया? क्या हम कश्मीरी को अपना उतना नागरिक नहीं मानते जितना अन्य किसी राज्य के नागरिक को? कोई भी संवेदनशील लोकतांत्रिक सरकार इस किस्म के हथियार का इस्तेमाल अपने नागरिकों पर नहीं करेगी। इसे इजराइल फिलीस्तीनी लोगों पर इस्तेमाल करता है परन्तु इजराइल का फिलीस्तीनियों से वैसा रिश्ता नहीं है जैसा कि भारत कश्मीर के साथ होने का दावा करता है।
पाकिस्तान को कश्मीर में होने वाली सभी प्रकार की हिंसा के लिए दोषी मान लेना सरकार की ही किरकिरी है। इसका मतलब यह है कि पाकिस्तान का कहीं न कहीं लोगों पर प्रभाव है और भारत उसके सामने लाचार है। जिस तरह आज भारत बलूचिस्तान, गिलगित, बल्तिस्तान या पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में लोगों के असंतोष का फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है वही काम पाकिस्तान ने इतने सालों से कश्मीर में किया है।
प्रधान मंत्री कह रहे हैं कि हिंसा के लिए उकसाने वाले बचेंगे नहीं। इस कथन में यह अहंकार झलकता है कि सरकार ही सही है और जनता गलत। क्या नरेन्द्र मोदी अपने कथन को देश के अंदर उनके हिन्दुत्ववादी साथियों द्वारा की गई हिंसा के संदर्भ में भी लागू करेंगे?
भाजपा के नेताओं को सभी तरह की परिस्थितियों से निपटने का एक ही तरीका आता है – सख्ती। कश्मीर का मामला बहुत पेचीदा हो चुका है। भाजपा नेता इतना ही कर सकते हैं कि उसे और पेचीदा न बनाएं।
लेखकः संदीप पाण्डेय
उपाध्यक्ष, सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया)
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