बाबरी मस्जिद ध्वंस की याद दिला गया न्यायालय परिसर में कन्हैया कुमार के साथ खुले-आम मार-पीट

– संदीप पाण्डे

जिस तरह से सर्वोच्च न्यायालय से पर्यवेक्षक के रूप में भेजे गए वरिष्ठ वकीलों के दल की मौजूदगी में पटियाला हाऊस न्यायालय में वहां के वकीलों ने पेशी में लाए जा रहे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार के साथ मार-पीट की, 1992 की बाबरी मस्जिद ध्वंस की घटना की याद ताजा हो गई। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ व भारतीय जनता पार्टी के लोग जो उनसे अलग विचारों को मानने वाले लोग हैं उनके ऊपर छोटी-छोटी बातों, जैसे सिर्फ नारे लगाने या कई बार झूठे ही देशद्रोह का आरोप लगा देते हैं, खुद इस देश के संविधान और कानून और व्यवस्था का सम्मान नहीं करते। इस समय हिन्दुत्ववादी लोगों से ज्यादा खतरा देश को और किसी से नहीं जो देश को तेजी से अराजकता की ओर ले जा रहे हैं। हिन्दुत्ववादियों को खुली छूट है कि वे जब चाहें जहां चाहें किसी की भी हत्या कर सकते हैं अथवा किसी के साथ मार-पीट कर सकते हैं और उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होगी क्योंकि गृहमंत्री राजनाथ सिंह हैं, जिन्होंने बिना पुष्टि के यहां तक कह डाला कि ज.ने.वि.वि. की घटना हाफिज सईद ने करवाई।

आज देश में एक बहस छिड़ी हुई है। हिन्दुत्ववादी अपने को देश भक्त और उनसे अलग विचारों को मानने वालों को देश द्रोही साबित करने में लगे हुए हैं। किंतु सावधानी से परखने की जरूरत है कि कौन देश द्रोही है और कौन देश भक्त? क्या देशभक्त कहलाने के लिए काफी है कि कोई भारत माता की तस्वीर लेकर, वंदे मातरम के नारे लगाकर, भारत का झंडा लहराकर, पाकिस्तान को गाली देकर उन लोगों के साथ मार-पीट करे जो उसके विचारों को नहीं मानते? दिल्ली के भाजपा विधायक तो यहां तक कहते हैं कि उनके पास बंदूक होती तो वे देशद्रोहियों को गोली से मार डालते। यदि हम आतंकवाद और नक्सलवाद के नाम पर होने वाली हिंसा को गलत मानते हैं तो हिन्दुत्ववादियों की हिंसा को जायज कैसे ठहराया जा सकता है?

इस देश में इस तरह की नीतियां बनाई जाती हैं कि अमीर और अमीर हो जाए और गरीब गरीब ही बना रहे। इस देश के आधे बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। इस देश में करीब चौथाई बच्चे बाल दासता के शिकार हैं। खराब स्वास्थ्य सेवाओं के चलते एक हजार पैदा होने वालों बच्चों में 47 मर जाते हैं। पांच वर्ष तक की उम्र तक पहुंचते पहुंचते इन हजार में से 14 और बच्चे मर जाते हैं। एक लाख बच्चों का जब जन्म होता है तो 200 माएं जन्म देते वक्त मर जाती हैं। जब से इस देश में उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण की आर्थिक नीतियां लागू हुई हैं करीब तीन लाख किसान कर्ज के बोझ में आत्महत्या कर चुके हैं। क्या ऐसी नीतियां बनाने वाले जिससे लोगों की मौतें हों और वे बदहाली में जिएं देशद्रोही नहीं हैं?

इस देश में निजी कम्पनियां के पास सरकारी बैंकों का रु. 1.14 लाख करोड़ रुपए ऋण के रूप में है जिसे बैंकों ने माफ कर दिया हो। जिस देश में गरीबी की उपर्युक्त स्थिति हो वहां जनता के पैसे को निजी कम्पनियों को यूं ही दे दिया जाए क्या यह देशद्रोह नहीं? या फिर भ्रष्टाचार करने वाले जो देश का पैसा अपने निजी उपभोग के लिए रख रहे हैं क्या देशद्रोही नहीं हैं? भाजपा की सभी सरकारों में विदेशी बैंकों में जमा काले धन को वापस लाने की बात होती है किंतु हमारी अर्थव्यवस्था का काला धन जिससे राजनीतिक दल अपराधी-माफिया या भ्रष्ट उम्मीदवारों को चुनाव जितवा देते हैं और गलत लोग हमारी विधायिका में पहुंच जाते हैं क्या देशद्रोह नहीं हैं? विदेशी पूंजी आकर्षित कर अपने यहां कारखाने लगवा कर अपने मजदूरों का शोषण होने देना क्या देशद्रोह नहीं है? देश की प्राकृतिक संपदा पर मुनाफा कमाने का अधिकार देशी-विदेशी कम्पनियों को दे देना क्या देशद्रोह नहीं? उदाहरण के लिए पेप्सी-कोका कोला हमारा पानी हमें ही ऊंची कीमतों पर बेच मुनाफा अमरीका ले जा रही हैं। क्या ऐसी कम्पनियों की मदद करना देशद्रोह नहीं? नकल करके बच्चों को इम्तेहान पास करवा देना, जो इस देश में बड़े पैमाने पर होता है, क्या देशद्रोह नहीं है, क्योंकि हम बच्चों का भविष्य बरबाद कर रहे हैं?

दूसरी तरफ कोई भी ऐसा काम जिससे इस देश के आम नागरिक का सशक्तिकरण हो रहा हो क्या देशभक्ति नहीं? यदि कोई ऐसे बच्चों को पढ़ा रहा है जो खुद विद्यालय जाने में अक्षम हैं, देशभक्ति का काम नहीं? क्या किसी बेसहारा जिसको इलाज की जरूरत है की मदद करना देशभक्ति का काम नहीं? क्या गरीबों को संगठित कर उनके अधिकारों की लड़ाई में शामिल होना ताकि उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार हो देशभक्ति का काम नहीं? क्या किसी पीड़ित या पीड़िता जिसके साथ अत्याचार हो रहा हो को न्याय दिलाना देशभक्ति का काम नहीं? क्या सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ आवाज उठाना ताकि आम इंसान का नुकसान न हो और सही नीतियों की मांग करना जिससे आम इंसान को लाभ मिले देशभक्ति का काम नहीं? सरकार के बजट में अपव्यव के खिलाफ बोलना ताकि देश का पैसा बचे और जरूरी कामों में लगे देशभक्ति का काम नहीं? उदाहरण के लिए रक्षा पर बजट का बड़ा हिस्सा खर्च करने के बजाए सरकार को यह राय देना क्या सही नहीं होगा कि सरकार जिन देशों से उसकी दुश्मनी है के साथ संबंध सुधारे ताकि रक्षा का खर्च कम हो और बचा हुआ पैसा शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, आदि उपलब्ध कराने में लगे ताकि इस देश के और दुश्मन देश के भी गरीब लोगों को राहत मिले। क्या यह देशभक्ति का काम नहीं? यह तो ऐसी देशभक्ति है जिससे अपने देश के साथ पड़ोसी देश का भी फायदा हो।

असल में देखा जाए तो राष्ट्र की अवधारणा भी जाति और धर्म की तरह लोगों को बांटने का काम करती है और ये सभी बांटने वाली श्रेणियां कृत्रिम या मानव निर्मित हैं। राष्ट्र का तो अंततोगत्वा वह हश्र होना चाहिए जैसा आधुनिक यूरोप में हुआ है। जहां अब देश की सीमाओं पर न तो फौजेें हैं और न ही एक सीमा से दूसरी सीमा में जाने के लिए किसी पासपोर्ट या वीसा की जरूरत पड़ती है। दक्षिण एशिया में भी जरूर एक ऐसा दिन आएगा जब हम एक देश से दूसरे देश में ऐसे चले जाएंगे जैसे एक जिले से दूसरे जिले में प्रवेश कर रहे हों। इस तरह के राष्ट्र में उग्र तेवर वाले दक्षिणपंथी राष्टवादियों की कोई ज्यादा भूमिका नहीं रह जाती। क्योंकि इनका अस्तित्व तभी तक है जब तक सामने कोई दुश्मन, वास्तविक अथवा कल्पित, खड़ा किया गया हो। यह इनकी सबसे बड़ी विडम्बना है। इसलिए इनका सारा का सारा कार्यक्रम दुश्मन को केन्द्र में रख कर होता है। यानी इनका अस्तित्व दुश्मन के अस्तित्व पर टिका हुआ है। इसलिए समझदार लोग इनकी बातों में नहीं आते।
लेखकः संदीप

1 Comments

  1. KSV Krishnan

    Is this a revisit of the East India Company. They came with business interests on the face of it but the hidden agenda was their and their Queen’s well being by enslaving the selfish stupid foolish masses who did not identify the hidden agenda. Now in the name of development those sections of the society whose voice does not reach the ‘Rulers’ or even if and when the voice reaches the ‘Rulers’ turn a deaf ear such sections are being enslaved and made second or third class citizens. They also are the children of Bharath mata and theirfore our brothers and sisters. If they attempt to save their livelyhood they are not Desh Drohis. Those who oppress their brothers ans sisters for their personal greed are the Desh Drohis.

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