नाम गांधी, काम माफिया का
लखनऊ में एक जगदीश गांधी हैं जिनके सिटी मांटेसरी स्कूल की 18 शाखाओं में करीब पचपन हजार बच्चे पढ़ते हैं। एक विद्यालय में सर्वाधिक बच्चों को पढ़ाने के लिए इनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में है। इनको बच्चों में सहनशीलता का गुण सिखाने के लिए यूनेस्को शांति पुरस्कार मिला हुआ है और उ.प्र. सरकार का यश भारती पुरस्कार भी। लेकिन जगदीश गांधी शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के तहत अलाभित समूह व दुर्बल वर्ग के उन बच्चों का कक्षा 1 से लेकर 8 तक मुफ्त शिक्षा हेतु दाखिला नहीं ले रहे जिनके दाखिले का आदेश जिलाधिकारी व बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा किया जाता है। शैक्षणिक सत्र 2015-16 में 18 बच्चों, 2016-17 में 55 बच्चों तथा 2017-18 में 296 बच्चों का दाखिला लेने से इस विद्यालय ने मना कर दिया। 2015-16 में जिन 13 बच्चों, जो सभी वाल्मीकि समुदाय से हैं, के दाखिले हुए वे सभी उच्च न्यायालय के आदेश से। अपनी तरफ से जगदीश गांधी ने एक भी बच्चे को दाखिला नहीं दिया है।
हाल ही में सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत उ.प्र. आवास एवं विकास परिषद से यह जानकारी प्राप्त हुई है कि सिटी मांटेसरी की इंदिरा नगर शाखा के चार मंजिला भवन का निर्माण बिना अनुमति के हुआ है, इसका भू उपयोग आवासीय है व भवन के ध्वस्तीकरण का आदेश है। यह भवन दो आवासीय प्लॉटों – ए-823 व ए-903 को मिला कर बनाया गया है। ए-903 तो विद्यालय के प्रबंधक जगदीश गांधी ने खरीद लिया था किंतु ए-823, जो सेवा निवृत आई.ए.एस. अधिकारी आर.बी. पाठक का है, पर जगदीश गांधी ने जबरदस्ती विद्यालय का चार मंजिला भवन बना लिया है। यदि किसी के घर को तोड़ कर मालिक की अनुमति के बगैर कोई अवैध निर्माण करा ले तो उसे भू-माफिया नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे?
अब सवाल यह उठता है कि जो भवन ही अवैध है और जिसके ध्वस्तीकरण का आदेश है उसमें चलने वाले विद्यालय को क्या मान्यता मिल सकती है? यदि सिटी मांटेसरी की इंदिरा नगर शाखा की आई.सी.एस.ई. द्वारा प्राप्त मान्यता रद्द कर दी जाती है तो इसमें पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं के भविष्य का क्या होगा?
ए-823 के अवैध निर्माण के ध्वस्तीकरण का आदेश तो 1996 का है और ए-903 के अवैध निर्माण के ध्वस्तीकरण का आदेश 2015 का है फिर भी आज तक भवन खड़ा हुआ है व विद्यालय का यथावत संचालन हो रहा है। अधिशासी अभियंता के अनुसार एक बार अनाधिकृत निर्माण हटाने का प्रयास किया गया किंतु प्रबंधक द्वारा विद्यालय के बच्चों को सामने बैठा दिया गया।
अधिकारियों से यह पूछा जाना चाहिए कि ध्वस्तीकरण की कार्यवाही तब क्यों नहीं की गई जब विद्यालय में बच्चे न हों, जैसे स्कूल की छुट्टी के बाद अथवा अवकाश के दिन? इससे लगता है कि अधिकारियों की जगदीश गांधी के साथ मिली भगत है अन्यथा बीस वर्ष बीतने के बाद भी ध्वस्तीकरण की कार्यवाही क्यों नहीं हो पाई है?
इस समय उ.प्र. सरकार की प्राथमिकता भू-माफियाओं के खिलाफ कार्यवाही है। क्या योगी सरकार जगदीश गांधी के खिलाफ कार्यवाही कर सकती है?
सूचना के अधिकार के तहत इस खुलासे के बाद कि सिटी मांटेसरी स्कूल की इंदिरा नगर शाखा के ध्वस्तीकरण का आदेश है, जगदीश गांधी ने तुरंत उच्च न्यायालय जाकर 4 जनवरी, 2018 को ध्वस्तीकरण के खिलाफ स्थगन आदेश प्राप्त कर लिया। विद्यालय की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि इस भवन में पिछले तीस साल से विद्यालय चल रहा है व वर्तमान में इण्टरमीडिएट तक 1,700 बच्चे पढ़ रहे हैं, यदि भवन को गिराया जाता है तो विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ेगा व यहां कार्यरत सैकड़ों शिक्षकों व कर्मचारियों को भी नुकसान उठाना पड़ेगा। इमारत को गिराने के बजाए कहीं और स्थानांतरिक करने की गुहार की गई। न्यायालय से कोई कठोर कदम न उठाने की आग्रह किया गया।
अब जगदीश गांधी से पूछा जाना चाहिए कि क्या भविष्य सिर्फ अमीर बच्चों का होता है? क्या उन बच्चों को कोई भविष्य नहीं जिनको शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 12(1)(ग) के तहत वे दाखिला नहीं दे रहे और उन्हें शिक्षा के वंचित कर रखा है? क्या जगदीश गांधी को यह समझ में नहीं आता कि वे गरीब बच्चों के खिलाफ कठोर कार्यवाही कर रहे? गौर तलब है कि न्यायालय को तो बताया जा रहा है कि विद्यालय में 1,700 बच्चे पढ़ रहे हैं ताकि बच्चों की बड़ी संख्या दिखाई जा सके और अग्नि शमन विभाग को बताया गया है कि विद्यालय में मात्र 600 बच्चे पढ़ते हैं ताकि किसी आपातकालीन परिस्थिति में बच्चों को आसानी से भवन से निकाला जा सके। न्यायालय को बताया गया है कि विद्यालय इण्टरमीडिएट तक चलता है जबकि इस शाखा की मान्यता आई.सी.एस.ई. की है यानी सिर्फ कक्षा 10 तक।
जगदीश गांधी अपने यहां किसी पढ़ाई में कमजोर बच्चे को नहीं रखते ताकि बोर्ड की परीक्षा में उनके विद्यालय का परिणाम अव्वल रहे। अलीगंज शाखा में पढ़ने वाली एक लड़की गणित पढ़ना चाहती थी किंतु कक्षा 8 की परीक्षा में उसके अंक कुछ कम थे। उससे कहा जा रहा था कि वह हिन्दी के साथ वाणिज्य ले ले। अंततः उसे सिटी मांटेसरी स्कूल छोड़ दिल्ली पब्लिक स्कूल में दाखिला लेना पड़ा और वहां आज वह अपना मनपसंद विषय गणित पढ़ रही है।
सिटी मांटेसरी में दो माह का शुल्क एक साथ लिया जाता है। निम्न मध्यम वर्ग के परिवारों, जो पाई-पाई जोड़ कर अपने बच्चों को यहां पढ़ाते हैं, के लिए इससे बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है। छुट्टी के महीनों का शुल्क यहां काफी पहले ही ले लिया जाता है।
शिक्षकों के बच्चों को तो शुल्क में छूट दी जाती है किंतु एकदम निचले स्तर के कर्मचारियों जैसे आया, सफाईकर्मी, रिक्शाचालक, जो बच्चों को लाते ले जाते हैं, के बच्चों को शुल्क में छूट नहीं मिलती। यह खुली गोपनीय बात है कि जिन लोगों से काम होता है जगदीश गांधी उन ऊंचे अधिकारियों, नेताओं, न्यायधीशों व पत्रकारों के बच्चों को शुल्क में भारी छूट देते हैं अथवा उनके परिवार की महिलाओं को शिक्षण कार्य हेतु रख लेते हैं। इस तरह पूरे शासक वर्ग को अपनी मुट्ठी में रखते हैं और मनमाने तरीके से अपने विद्यालय चलाते हैं। किसी भी राजनीतिक दल की सरकार में अपनी पहुंच मुख्य मंत्री तक बना लेते हैं। इसलिए इनके खिलाफ कोई अधिकारी, नेता, न्यायालय कार्यवाही नहीं करता।
लेखकः संदीप पाण्डेय
ए-893, इंदिरा नगर, लखनऊ-226016
फोनः 0522 4242830, मो. 9415269790 (प्रवीण श्रीवास्तव)
email: ashaashram@yahoo.com