नरेन्द्र मोदी अधिकतम आय की सीमा क्यों नहीं तय करते?
यदि रु. 500 और 1000 के नोटों को वापस लेने के निर्णय का मुख्य उद्देष्य काले धन पर अंकुष लगाना था तो पुनः उतने ही बड़े रु. 500 और 2000 के नोटों को बाजार में लाने का उद्देष्य समझ में नहीं आया? बड़े नोटों को अर्थव्यवस्था से हटाने की मांग इसलिए की जा रही थी ताकि काले धन वालों को बड़ी राषि के भंडारण अथवा इस्तेमाल में परेषानी आए। किंतु सरकार के निर्णय से थोड़े ही दिनों में नए नोटों के माध्यम से भी काला धन उत्पन्न हो जाएगा। काला धन रखे हुए लोग अभी से नोट बदलने के प्रयास में लग गए हैं। बड़े नोटों को पुनः अर्थव्यवस्था में लाना सरकार की मंषा पर सवाल खड़ा करता है।
सबको मालूम है कि काले धन का सबसे बड़ा इस्तेमाल शायद चुनाव लड़ने में किया जाता है। उत्तर प्रदेष के पिछले विधान सभा चुनाव में हिन्दी दैनिक हिन्दुस्तान ने लिखा कि चारों बड़े दलों – बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी व कांग्रेस – के प्रत्येक उम्मीदवार चुनाव प्रचार पर रु. 1.25 करोड़ खर्च करेंगे। जबकि उस समय विधान सभा चुनाव के प्रचार पर चुनाव आयोग द्वारा तय की गई खर्च की सीमा मात्र रु. 17 लाख ही थी। यानी 423 सीटों पर कुल मिलाकर रु. 2000 करोड़ से ज्यादा काला धन खर्च हुआ होगा और प्रत्येक उम्मीदवार ने एक करोड़ से ज्यादा काले धन का इस्तेमाल किया। हमारे देष के भ्रष्टाचार के मूल में यह चुनाव में इस्तेमाल होने वाला काला धन ही है। जब तक इस पर अंकुष नहीं लगता तब तक भ्रष्टाचार पर रोक नहीं लगेगी।
किंतु मोदी सरकार द्वारा बड़े नोटों की वापसी के निर्णय के बाद से एक भी राजनेता या राजनीतिक दल अपना काला धन जमा कराने बैंकों में नहीं पहुंचे हैं। शायद उनके काले धन के नोट बिना बैंक जाए ही बदल जाएंगे। इस बात में बिल्कुल सच्चाई नजर आती है कि उत्तर प्रदेष के चुनाव के मद्देनजर भाजपा ने अपना धन तो पहले ही बदलवा लिया हो और बाकी दलों के लिए चुनाव में काले धन का इस्तेमाल अब मुष्किल हो जाएगा। इस तरह चुनाव में उसे सीधा फायदा मिलेगा। जनता देख रही है नेता और दल कैसे अपना काला धन नए नोटों में बदलेंगे? अभी तक मात्र एक राजनेता महाराष्ट्र के सहकारिता मंत्री सुभाष देषमुख की गाड़ी से रु. 91.5 लाख रुपए बरामद हुए हैं। आम नागरिक के पास तो सिर्फ ढाई लाख रुपयों से ऊपर पाए जाने पर आयकर विभाग कार्यवाही शुरू का दे रहा है किंतु सुभाष देषमुख के खिलाफ कोई कार्यवाही अभी तक नहीं हुई है।
मोदी सरकार के निर्णय से आम नागरिक ही परेषान हुआ है जिसे अपना काला धन नहीं बल्कि वैध धन के नोट बदलवाने में ही नानी याद आ गई। समाज का सम्पन्न या प्रभावषाली वर्ग तो कतारों में दिखाई ही नहीं पड़ रहा। उसका काम शायद बिना नकद के चल जाता है। या वह जब बैंक जाएगा तो उसके लिए अलग से दरवाजा ख्ुाल जाएगा। प्रबंधक उन्हें अपने कमरे में बैठा कर उनका नोट बदलवा देंगे।
मोदी सरकार ने एक और अजीब काम शुरू किया है। उसने तमाम तरह की सीमाएं तय करनी शुरू कर दी हैं। जैसे एक बार बैंक में अपने सेविंग्स् खाते से रु. 10,000 निकालने और एक हफ्ते में रु. 20,000 की सीमा तय गई थी जिसे अब बढ़ाकर एक ही बार में और एक ह्फते में रु. 24,000 तय किया गया है। करंट खाते से निकालने की सीमा रु. 50,000 तय की गई है। ए.टी.एम. से एक बार में निकालने की सीमा पहले रु. 4,000 और हफ्ते में रु. 8,000 तय की गई, फिर उसे घटा कर एक बार में निकालने की सीमा रु. 2,000 तय की गई जिसे बढ़ा कर अब रु. 2,500 कर दिया गया है। कुछ पेट्रोल पम्पों से डेबिट कार्ड पर रु. 2000 नकद निकालने की छूट दी गई है। बैंक में पुराने नोटों को बदलने की सीमा रु. 4,500 से घटा कर 2,000 पर तय कर दी गई है। शादी के लिए अब रुपए ढाई लाख निकाले जा सकते हैं किंतु अभी यह व्यवस्था लागू नहीं हुई है। कई परिवारों जिनमें शादियां थीं को खासी दिक्कत झेलनी पड़ी है। जिन किसानों ने कृषि ऋण लिया हुआ है उन्हें रु. 25,000 तक निकालने की छूट दी गई है। केन्द्रीय कर्मचारी अपनी नवम्बर की तनख्वाह से रु. 10,000 नकद ले सकते हैं। ढाई लाख रुपए से ज्यादा जमा कराने पर पैन कार्ड की जरूरत पड़ेगी।
यानी अब आपको कोई बड़ी राषि की जरूरत होगी तो कई बार बैंक जाना होगा और पहले से योजना बना कर बैंक या ए.टी.एम. से पैसा निकालना होगा ताकि जरूरत के समय तक पर्याप्त पैसे की व्यवस्था हो जाए। किंतु बिमारी जैसी चीज तो बता कर आती नहीं। जिनके पास बैंक खाते नहीं हैं अथवा पैन कार्ड नहीं हैं उन्हें अतिरिक्त परेषानी झेलनी पड़ रही है। लोग पैसे बदलने के नायाब तरीके खोज रहे हैं, जैसे महंगे रेलवे के आरक्षित टिकट खरीद उन्हें रद्द करा पैसे वापस पा रहे हैं। नरेन्द्र मोदी के निर्णय से काले धन वाले तो मालूम नहीं कितने परेषान हुए किंतु आम जनता जिसका बहुत समय और पैसा दोनों बरबाद हुआ बुरी तरह झेल गई।
नरेन्द्र मोदी के निर्णय से अर्थव्यवस्था का आकार बहुत छोटा हो गया है क्योंकि कई तरह की पाबंदियां लग गई हैं और पैसे के लेन-देन में भारी गिरावट आई है। एक तरह से नरेन्द्र मोदी ने लोगों के खर्च करने पर सीमा तय कर दी है। जाने-अनजाने शादी, जिसपर अपने समाज में अत्याधिक धन खर्च किया जाता है, में भी खर्च पर सीमा तय हो गई है। यदि नरेन्द्र मोदी चाहते हैं कि लोग सीमित पैसा ही खर्च करें तो सीधे-सीधे अधिकतम आय की सीमा क्यों नहीं तय कर देते? डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि गरीब और अमीर की आय में दस गुना से ज्यादा का फर्क नहीं होना चाहिए। यदि सरकार ने न्यूनतम मजदूरी की दरें तय की हुई हैं तो अधितकम आय उससे दस गुना ज्यादा पर तय कर दी जाए। अपने आप बहुत सारी दिक्कतें खत्म हो जाएंगी। अभी बहुत सारे पेषों में अधिकतम आय तय नहीं इसलिए लोग अनाप-शनाप कमाते हैं और फिर कर चोरी के प्रयास में काले धन को जन्म देते हैं। या फिर भ्रष्टाचार से काला धन उत्पन्न होता है।
उपर्युक्त सीमाओं की तरह सरकार को जरूरी चीजों के दामों पर भी सीमाएं तय करनी चाहिए। षिक्षा और चिकित्सा का निजीकरण समाप्त होना चाहिए ताकि इन जरूरी चीजों पर लोगों को पैसा न खर्च करना पड़े। यदि ऐसा हो जाए तो जनता तो अपना खर्च सीमित कर लेगी। लेकिन क्या राजनीतिक दल चुनाव में काले धन के इस्तेमाल पर रोक लगाएंगे? क्या राजनीति दल कमीषन की संस्कृति समाप्त करेंगे जो काले धन को जन्म देती है?
लेखकः संदीप पाण्डेय
उपाध्यक्ष, सोषलिस्ट पार्टी (इण्डिया)
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