योगी पहले बच्चों का दाखिला कराएं फिर जांए सिटी मांटेसरी स्कूल
लखनऊ के जाने मान शैक्षणिक संस्थान सिटी मांटेसरी स्कूल में प्रसिद्ध मीडिया समूह इण्डिया टुडे ने सफाईगिरी पुरस्कार वितरण कार्यक्रम रखा है जिसमें उ.प्र. के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ समेत दोनों उप-मुख्य मंत्री दिनेश शर्मा व केशव प्रसाद मौर्य, विधान सभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित, विधि व न्याय राज्य मंत्री नीलकंठ तिवारी, वाराणसी के महापौर, फिल्मी तारिका शिल्पा शेट्टी पधार रही हैं।
सिटी मांटेसरी वह विद्यालय है जो लगातार तीसरे वर्ष भी शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 12(1)(ग) के तहत अलाभित समूह व दुर्बल वर्ग के बच्चों का कक्षा 1 से 8 तक निःशुल्क शिक्षा हेतु जिलाधिकारी के आदेश के बावजूद दाखिला नहीं ले रहा। 2015-16 में 13 वाल्मीकि बच्चों का दाखिला सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से हुआ था। लेकिन 2015-16 के बाद से इस विद्यालय में दाखिला नहीं हुआ जबकि 2015-16, 2016-17 व 2017-18 के क्रमशः 18, 55 व 296 दाखिलों का आदेश जिलाधिकारी ने किया हुआ है।
यानी मुख्य मंत्री व उ.प्र. सरकार ऐसे विद्यालय और उसके प्रबंधक जगदीश गांधी को वैधता प्रदान कर रहे हैं जो सरकारी आदेशों व राष्ट्रीय कानून को मानने को तैयार नहीं। पहले योगी बयान दे चुके हैं कि उनकी सरकार परिषदीय विद्यालयों को इतना अच्छा बना देगी कि लोगों को अपने बच्चों का नाम निजी विद्यालयों में लिखाना ही नहीं पड़ेगा। उन्होंने यह भी कहा है कि सभी लोगों को अपने बच्चों को सरकारी विद्यालयों में ही पढ़ाना चाहिए। उ.प्र. में तो उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल का 2015 का फैसला भी है कि सभी सरकारी वेतन पाने वालों के बच्चे सरकारी विद्यालयों में पढ़ने चाहिए। इसे न तो अखिलेश यादव की सरकार ने लागू किया और न ही योगी सरकार के कोई लक्षण दिखाई पड़ते हैं कि वह इसे लागू करेगी। दिलासा की बात यही है कि कम से कम उन्होंने इसके पक्ष में बयान तो दिया। किंतु इतनी जल्दी वे जाकर निजी विद्यालयों की गोदी में बैठ जाएंगे इसकी अपेक्षा नहीं थी। उनके शुरू के बयानों से तो ऐसे प्रतीत होता था कि वे निजी विद्यालयों को ज्यादा महत्व नहीं देंगे।
अंततः उ.प्र. की भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने भी पूर्ववर्ती सरकारों की तरह भ्रष्टाचार का शिकार होते हुए शिक्षा माफियाओं के साथ हाथ मिला लिया है। शायद राजनीतिक दलों की मजबूरी है पूंजीपतियों के हितों का संरक्षण करना। जगदीश गांधी शिक्षा के व्यवसायीकरण के प्रतीक हैं और उनको महत्व देने वाली सरकारों पर भी प्रश्न चिन्ह लगेगा। अखिलेश यादव ने तो उन्हें यश भारती पुरस्कार से नवाजा और 2016 में उनकी पत्नी भारती गांधी को, जबकि 2015 में सिटी मांटेसरी विद्यालय शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत हुए दाखिलों के खिलाफ न्यायालय जा चुका था, रानी लक्ष्मी बाई वीरता पुरस्कार दिया। शायद उनकी वीरता यही थी कि वे अपने महंगे विद्यालय में गरीब बच्चों के दाखिला का विरोध कर रही थीं? अब योगी सरकार भी जगदीश गांधी के प्रभाव में आ गई दिखती है।
वैसे भी भारतीय जनता पार्टी पूंजीपतियों का पक्षधर दल है। नरेन्द्र मोदी तो यहां तक कह चुके हैं कि जो सरकारी विद्यालय ठीक से नहीं चल रहे उन्हें निजी हाथों में दे दिया जाए। यह समझना बहुत मुश्किल नहीं कि यदि शिक्षा के क्षेत्र में निजीकरण को बढ़ावा मिलेगा तो परिणामस्वरूप सरकारी शिक्षा की गुणवत्ता और गिरेगी और गरीब के बच्चे से अच्छी शिक्षा और दूर हो जाएगी। निजीकरण की पूरी प्रकिया ही गरीब विरोधी है। निजीकरण का मतलब ही है कि जहां पैसा कमाने की छूट होगी। जब विद्यालय सिर्फ पैसा कमाने के उद्देश्य से चलेंगे, जैसा अभी भी हो रहा है, तो गरीब का बच्चा उसमें कैसे पढ़ेगा? शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 12(1)(ग) के तहत विद्यालय की क्षमता का 25 प्रतिशत गरीब बच्चे इन महंगे विद्यालय में निःशुल्क कक्षा 8 तक पढ़ सकते हैं। किंतु जिस तरह से जगदीश गांधी और अब उनका देखा-देखी अन्य विद्यालय भी उक्त धारा के तहत बच्चों का दाखिला लेना बंद कर दिए हैं ऐसा लगता नहीं कि गरीब बच्चों के लिए एक खिड़की जो खुली थी उसका बहुत लाभ उन बच्चों को मिल पाएगा।
लखनऊ के ही भारतीय जनता पार्टी के एक पूंजीपति नेता सुधीर हलवासिया भी अपने विद्यालय नवयुग रेडियंस में शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत अलाभित समूह व दुर्बल वर्ग के बच्चों को जिलाधिकारी के आदेश के बावजूद दाखिला नहीं दे रहे। जब भाजपा के नेता ही खुले आम राष्ट्रीय कानून की अवहेलना कर रहे हैं तो इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि कानून की किस तरह धज्जियां उड़ रही होंगी। जिन अभिभावकों के बच्चों के दाखिले का आदेश हो गया है वे दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं और उनके अपने बच्चों को अच्छे विद्यालयों में पढ़ाने का सपना धरा का धरा रह गया। कुछ तो न्यायालय की शरण ले रहे हैं लेकिन ज्यादातर की क्षमता ही नहीं वे न्यायालय जा सकें।
अभी तक जगदीश गांधी जैसे लोग मनमाने तरीके से अपने-अपने निजी विद्यालय चला रहे थे। किंतु जैसे ही एक तरह से उनके 25 प्रतिशत हिस्से का सरकारीकरण हुआ उनकी तरफ से जबरदस्त विरोध हुआ। वे नहीं चाहते कि उनके निजी साम्राज्य में कोई सरकारी हस्तक्षेप हो। अब सरकारों को तय करना है कि वे इन निजी विद्यालयों की मनमानी चलने देंगी अथवा लोकतंत्र की भावना का सम्मान करते हुए इस देश के कानून का पालन कराएंगी और गरीब बच्चों को भी उसी शिक्षा को प्राप्त करने का अवसर दिया जाएगा जो अमीरों के बच्चों को उपलब्ध है।
उत्तर प्रदेश में अब भ्रष्ट राजनीति व शिक्षा माफिया का अपवित्र गठजोड़ का हो गया है। जो लोग यह अपेक्षा कर रहे थे कि भाजपा के शासन में भ्रष्टाचार समाप्त नहीं तो कम तो जरूर हो जाएगा अब तो उनका मोहभंग हो जाना चाहिए। सच तो यह है कि भाजपा के राज में भ्रष्टाचार बढ़ गया है। इसका सीधा कारण यह है कि भाजपा को चुनाव लड़ने के लिए अन्य दलों से ज्यादा पैसा चाहिए।
लेखकः संदीप पाण्डेय
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