2 दिवसीय ऑनलाइन सोशलिस्ट कांफ्रेंस (17 – 18 मई 2020) के प्रस्ताव

कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का 87वां स्थापना दिवस – समाजवादियों का राष्ट्रीय संवाद – हमारा संकल्प

यह बहुत संतोष की बात है कि कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के 87वें स्थापना दिवस को ‘हम समाजवादी संस्थाएं’ की पहल पर हम सबने दो दिवसीय राष्ट्रीय संवाद के रूप में आयोजित किया। यह सही है कि आज समाजवादियों का कोई राष्ट्रीय मंच नहीं है। यह भी सही है कि हम समाजवादी लोग विभिन्न क्षेत्रीय दलों के जरिये किसी व्यक्ति या बिरादरी के इर्द-गिर्द चुनावी पहचान और राजनीतिक अस्तित्व को कायम रखने में ही ज्यदा शक्ति लगाते दिखते है। लेकिन इस बात को भी याद रखना चाहिए की दर्जनों दलों में बिखरे समाजवादियों की उदासीनता के बावजूद देश के हर जीवंत जन-आन्दोलन में – किसानो और श्रमिकों से लेकर स्त्रियों, दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और छात्रों-युवजनों की हर लड़ाई में – समाजवादी परम्परा से जुड़े स्त्री-पुरुषों की सतत हिस्सेदारी जारी है। विचार प्रसार और साहित्य विस्तार का काम किया जा रहा है। छोटे-बड़े समागमों का सिलसिला बना हुआ है। इसीलिए इस राष्ट्रीय संकट की घड़ी में भी देश के विभिन्न हिस्सों से लगभग एक लाख से अधिक लोगों ने ‘फेसबुक लाइव में हिस्सेदारी के जरिए देश में समाजवादी सपनों की धारावाहिकता और प्रासंगिकता का प्रमाण प्रस्तुत किया है। इन समाजवादी सहयात्रियों ने इन दो दिनों के संवाद में निरूस्वार्थ सहयोग देकर यह दायित्व भी दिया है कि हम देश की मौजूदा आर्थिक-राजनीतिक-सामाजिक दशा और वर्तमान समय में समाजवादियों की जिम्मेदारी के बारे में एक स्पष्ट दृष्टि की प्रस्तुति के साथ इस दो-दिवसीय सहयोग को आगे बढ़ाएं।

आज से छियासी बरस पहले पटना में हुए समागम में यह पहचाना गया था कि भारत जैसे विदेशी गुलामी और देशी शोषकों के गठजोड़ से शोषित-पीड़ित देश में समाजवादी समाज की स्थापना के लिए पहली जरूरत राजनीतिक स्वराज, दूसरी जरूरत आर्थिक नव-निर्माण और तीसरी जरूरत समाज में लिंगभेद-जातिभेद-वर्गभेद-भाषाभेद-सम्प्रदायभेद से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एकता के  अभियान की है। इसे हासिल करने के लिए (क) निजी जीवन में समाजवादी मूल्यों को आधार बनाने और (ख) समाज के वंचित वर्गों में 1. चेतना निर्माण और विचार-प्रसार, 2. कार्यकर्त्ता प्रशिक्षण, 3. संगठन निर्माण, 4. विभिन्न जन-असंतोष के कारणों और समाधान की सही समझ, 5. जन-प्रतिरोधों में भागीदारी, 6. राष्ट्रव्यापी राजनीतिक धारा से एकजुटता और 7. विश्वव्यापी समाजवादी रुझहान के साथ सक्रिय सम्बन्ध की दिशा में एकसाथ आगे कदम बढ़ने होंगे। यह गर्व की बात है कि इस दृष्टि के आधार पर विकसित हुए भारतीय समाजवादी आन्दोलन के महानायकों ने 1934 और 1947 के बीच राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन के निर्णायक दौर में महान योगदान के जरिये एक गौरवशाली स्थान बनाया। विदेशी राज को परास्त करने में अग्रणी भूमिका निभाने के बाद हमारे पुरखों ने महात्मा गांधी के स्वयं सेवक बनकर साम्प्रदायिकता की आग बुझाने और हिन्दू-मुस्लिम-सिख समुदायों में सौहार्द के कर्तव्य को पूरा किया। बाबासाहेब डा. भीमराव आम्बेडकर आदि सामाजिक समता के सूत्रधारों के साथ संयुक्त मोर्चा बनाकर अस्पृश्यता उन्मूलन और जातिविनाश के कार्यक्रमों को आगे बढ़ाया। गाँधी जी की हत्या के बाद सत्ता की झीना-झपटी से 1948 में ही कांग्रेस से बाहर निकलकर एक लोकतांत्रिक समाजवादी दल के रूप में लोकतंत्र के स्वस्थ विकास हेतु किसान-मजदूर-महिला-विद्यार्थी व युवजन-आदिवासी समुदायों के बीच संगठनों को गति दी। यह प्रवृत्ति आज भी प्रबल है क्योंकि स्त्री-सम्मान, पर्यावरण रक्षा और मानव-अधिकारों से लेकर स्वास्थ्य के अधिकार और संविधान की रक्षा के अभियानों तक में समाजवादियों की हिस्सेदारी उल्लेखनीय है।

मूलतरू समाजवादियों के चिंतन में पांच आदर्शों का समन्वय है – स्वतंत्रता, लोकतंत्र, समता, सम्पन्नता, और विकेंद्रीकरण। भारतीय समाजवादी आन्दोलन ने इन आदर्शों से जुडी नीतियों और कार्यक्रमों के लिए आज तक वोट (लोकतांत्रिक चुनाव) – फावड़ा (रचनात्मक कार्यक्रम) – जेल (संघर्ष) की त्रिवेणी के जरिए समाज में अपना असर बनाया है। समाजवादियों के संगठनकर्ताओं के बारे में यह छबि है कि समाजवादियों के नेताओं का ‘एक पाँव रेल में और एक पाँव जेल में’ रहता है – या तो विचार, आन्दोलन और संगठन के प्रसार के लिए दौरा चलता है या जनहित के प्रश्नों पर आगे आकर सत्याग्रह के कारण जेल में होते हैं ! समाजवादी होने के लिए ‘संतति और संपत्ति के मोह से मुक्ति’ एक व्यापक कसौटी के रूप में प्रचलित है। जातिवाद, साम्प्रदायिकता और पूंजीवाद का विरोध समाजवादियों को घुट्टी में पिलाया जाता है। एक समाजवादी को सार्वजनिक जीवन में देशी भाषाओं को व्यवहार में लाने वाला तथा स्त्रियों, दलितों, आदिवासियों, पिछड़ी जातियों, और पसमांदा मुसलमानों के लिए विशेष अवसर का समर्थक होना चाहिए. हर समाजवादी मूल नागरिक अधिकारों की रक्षा और चैखम्भा राज अर्थात सत्ता के विकेंद्रीकरण के जरिए सहभागी लोकतंत्र की रचना के लिए प्रतिबद्ध होता है। समाजवादियों के निजी जीवन में सादगी, साहस और संघर्ष का होना अप्रत्याशित नहीं माना जाता।

हर बड़े आन्दोलन की तरह समाजवादी आन्दोलन में भी आजादी के बाद से अब तक के सात दशकों में कई धाराओ और प्रवृत्तियों का विकास होता रहा है. यह भी एक विडम्बनापूर्ण तथ्य है कि अद्वितीय छबि और अविश्वसनीय क्षमता वाले यशस्वी नायकों की लम्बी श्रृंखला और अपने मुख्य अभियानों, विशेषकर विधानसभा और संसद के चुनावों में सफलता मिलने के बावजूद समाजवादियों में सिद्धांत, संगठन और सत्याग्रह तीनों के प्रति प्रतिबद्धता में घटाव की प्रवृत्ति फैलती रही है। वोट-फावड़ा-जेल के बीच संतुलन की जरूरत की उपेक्षा और अनुपात की समझ का अभाव सामने आ जाते हैं। इसके लिए 1964-67, 1974-79, 1989-92 और 2011-14 के प्रसंगों को याद करना ही पर्याप्त होगा। इसलिए इसे ‘सफलता का संकट’ मानते हुए नए प्रस्थान की जरूरत को पहचानना आज समाजवादियों की सबसे बड़ी चुनौती है। बिना इस चुनौती को पहचाने हम वैश्विक पूंजीवाद द्वारा परेशान देश-दुनिया के लोगों के लिए असरदार समाजवादी सहायक नहीं साबित हो सकेंगे।

आज हमारा देश ‘नयी आर्थिक नीतियों’ के खोखलेपन के आगे हतप्रभ खड़ा है। यह समझाने की कोशिश की जा रही है कि देश के सामने कोरोना महामारी के कारण अभूतपूर्व संकट आ गया ह। कोरोना महामारी के मुकाबले के लिए हर नागरिक का सहयोग जरुरी है और हर नागरिक को सुरक्षा मिलनी ही चाहिए । लेकिन मार्च, 2020 के पहले क्या स्थिति थी? 2019 का घटना क्रम बताता है कि संसद में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में दुबारा प्रबल बहुमत प्राप्त करने में सफल होने के बाद सत्तारूढ़ बहुदलीय गठबंधन के महानायकों ने सबसे पहले मीडिया को कब्जे में किया। इसके बाद चुनावी आश्वासनों के बावजूद ग्रामीण भारत की अनसुनी की, फिर श्रमजीवी भारत के अधिकारों पर प्रहार हुआ. छात्रों – युवजनों को भी निशाने पर लिया गया। इसके बाद नागरिक रजिस्टर बनाने की आड़ में हिन्दू-मुसलमान की दरार को बढ़ाया गया। देश की राजधानी में ही सरकार की नाक के नीचे गरीब मुसलामानों की बस्तियों में बेरोकटोक आगजनी हुई और आतंक फैलाया गया। सर्वोच्च न्यायालय भी धृतराष्ट्र जैसा आचरण करता देखा गया। सजग नागरिकों की ‘सविधान बचाओ-भारत बचाओ’ की पुकार अनसुनी की गयी।

अब महामारी का मुकाबला करने के लिए देशभर के लोग पिछले आठ सप्ताह से महामारी से बचने के लिए घरों में बैठाये गए हैं। लेकिन यह संपन्न वर्गों का सच है. कृषि-निर्भर और श्रमजीवी भारतीय का सच बहुत अलग और बेहद भयानक है। क्योंकि रोज कमाने-खाने वाले लगभग 8 करोड़ स्त्री-पुरुषों को बेघरबार होने को मजबूर किया गया है। इससे श्रमजीवी नागरिक शहरों से अपने  गाँव ‘देस’ की ओर भाग रहे हैं। देश के संगठित क्षेत्र के मजदूरों की दुनिया में अँधेरा हो गया है – उनका मेहनताना, उनकी कार्य-दशा, उनका बोनस, उनकी पेंशन – सभी स्तर पर राज्यसत्ता अमर्यादित फैसले लाद रही है। उद्योग और पैसेवालों की दुनिया में पूंजीवाद और बाजारवाद के स्वभाव के कारण मत्स्यन्याय का दौर आ गया है – बड़ी पूंजीवाले मंझोली और छोटी पून्जीवाले प्रतिष्ठानों को निगल रहे हैं। विदेशी-देशी पूंजीपतियों और ‘राष्ट्रवादी’ नेताओं के गंठजोड़ के राज्यसत्ता पर एकाधिकार के बावजूद गतिहीन आर्थतंत्र और दिशाहीन राजतन्त्र का सच बेपर्दा है। स्वास्थ्य के तीन दशक लम्बे व्यवसायीकरण ने कोरोना महामारी का मुकाबला करने में मदद के लिए आगे आने की बजाय पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था अस्त-व्यस्त है। राज्यसत्ता और नागरिक के बीच सिर्फ पुलिस की लाठी का रिश्ता सामने है।

समाजवादियों का मानना है कि आजका सच पूंजीवादी नीतियों का परिणाम है। देश का जनसाधारण सरकार और सरकारी  नीतियों से मोहभंग के दौर में है। नए समाधानों की तलाश का समय आ गया है। ‘सबको रोटी – सबको काम’ का नारा देशव्यापी हो रहा है। यह बिना ‘नयी आर्थिक नीतियों’ की आड़ में 1991 से पनपाये जा रहे पूंजीवाद से पिंड छुटाए नहीं होने जा रहा है। इस कठिन समय में समाजवादियों की सजग सक्रियता की जरूरत है। अपने पास-पड़ोस, गाँव, मोहल्ले, कसबे, शहर में छोट-बड़े समूह बनाकर परेशान देश का सहारा बनने का समय है। आइये देश को बनाने वाले स्त्री-पुरुषों को सरकारी दमन से पैदा आतंक से बचाऐं । पूंजपतियों, सत्ता-प्रतिष्ठान और बाजारवाद से मिले धोखे से पैदा बेबसी से बाहर निकालें। देश को दशकों से अपनी मेहनत और निष्ठा से पाल-पोस रहे किसानों-मजदूरो-व्यापारियों-कर्मचारियों-चिकित्सकों-शिक्षकों-समाजसेवकों को ही देश का भाग्य-विधाता बनाने का अभियान चलायें।

इस दिशा में आगे बढ़ने में देश के  समाजवादी विषय विशेषज्ञों द्वारा बनाया गया सोशलिस्ट मैनिफेस्टो मार्गदर्शक की भूमिका अदा करेगा।

डॉ सुनीलम( पूर्व विधायक )
हम समाजवादी संस्थाएं
9425109770

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