संकटग्रस्त सरकार को उबारने हेतु उठाया गया कदम
नरेन्द्र मोदी द्वारा अचानक रु. 500 व 1000 के नोटों का चलन बंद करने का कदम सराहनीय जरूर है लेकिन एक संकटग्रस्त सरकार को बचाने के लिए उठाया गया ज्यादा प्रतीत होता है। उड़ी आतंकी हमले के बाद बढ़ा-चढ़ा कर बताए गए सर्जिकल धावे, जिससे ऐसा आभास दिया गया कि पाकिस्तान को अच्छा सबक सिखा दिया गया है, के बावजूद दैनिक भारतीय जवानों व नागरिकों की पाकिस्तान द्वारा किए जा रहे हमलों में जानें जाने का सिलसिला रूक नहीं रहा था। यह सरकार के लिए असुविधाजनक व नरेन्द्र मोदी की बड़े प्रयासपूर्वक गढ़ी गई एक सशक्त शासक की छवि को धूमिल कर रहा था। बुरहान वानी की मृत्यु के बाद से कश्मीर में शुरू हुई हिंसा अभी थमी नहीं है जिसमें 90 से ऊपर जानें जा चुकी हैं। मरने वालों में दो सुरक्षाकर्मियों को छोड़ सब स्थानीय नागरिक हैं। इधर विद्यालयों को जलाने का एक नया सिलसिला शुरू हो गया है। पता नहीं कौन कश्मीर के बच्चों के भविष्य का दुश्मन बन गया है? अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का छात्र संगठन है, के छात्रों द्वारा पिटाई के बाद से जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र नजीब अहमद का गायब होना भी हिन्दुत्ववादी लोगों के लिए बदनामी का मुद्दा बन गया है। स्टूडेण्ट्स इस्लामिक मूवमेण्ट ऑफ इण्डिया के आठ छात्रों का भोपाल जेल से भागने के बाद पुलिस द्वारा फर्जी मुठभेड़ में मार डालना इन युवाओं की उन मामलों में संलिप्तता पर संदेह खड़ा करता है जिसकी वजह से ये जेल में थे। यह देश का कोई पहला फर्जी मुठभेड़ नहीं था किंतु भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने जिस तरह से उसे अंजाम दिया उसकी पोल खुल गई। नरेन्द्र मोदी जब उत्तराखण्ड में चीनी सीमा पर सैनिकों के साथ दिपावली मनाने गए तो वहां ऐलान किया कि उन्होंने सैनिकों की मांग ’एक पद एक पेंशन’ लागू कर दी है। इसके तुरंत बाद ही राम किशन ग्रेवाल नामक भूतपूर्व सैनिक द्वारा इसी मुद्दे पर आत्महत्या कर लेने से मोदी का झूठ उजागर हो गया। नरेन्द्र मोदी ने सार्वजनिक रूप से मुस्लिम महिलाओं के प्रति तीन बार तलाक कहने के विरोध में समर्थन जाहिर किया है। किंतु उनके प्रधान मंत्री बनने के बाद से देश में और मुख्य मंत्री रहते हुए गुजरात में मुसलमानों के साथ जो अत्याचार हुए हैं उससे उनकी भूमिका की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा होता है। अपनी पत्नी के साथ भी उनके व्यवहार पर सवालिया निशान हैं। जशोदा बहन अहमदाबाद से सिर्फ इसलिए अपना पासपोर्ट नहीं बनवा पाईं क्योंकि उनके पास शादी का प्रमाण पत्र नहीं था। अपनी पत्नी के अधिकारों की अनदेखी कर दूसरी महिलाओं के अधिकारों का समर्थन करने को कौन गम्भीरता से लेगा?
लोगों को ऐसा लगने लगा था कि इस प्रधान मंत्री का देश के सामने जो स्थितियां हैं उनपर नियंत्रण नहीं और न ही उसे मालूम है कि किस चीज से कैसे निपटना है। सभी प्रकार के विरोध को सख्ती से निपटने का तरीका भी जनता में प्रतिक्रिया पैदा कर रहा है। मोदी ने ताबड़-तोड़ विदेशी दौरे कर अपनी नेहरू जैसी एक वैश्विक नेता की छवि बनाने की कोशिश की। उनकी पूरी कोशिश कि दुनिया पाकिस्तान को एक आतंकवादी देश मान ले विफल रही। भारत की दृष्टि से तीन महत्वपूर्ण देश – अमरीका, रूस व चीन – ऐसा करने को तैयार नहीं। बल्कि वे तीनों ही पाकिस्तान के साथ अच्छे सम्बंध बना कर रखना चाहते हैं। अंत में वैश्विक छवि की महत्वकांक्षा रखने वाले मोदी पाकिस्तान के मुद्दे पर उलझ कर रह गए। रु. 500 व 1000 के नोटों के चलन को बंद करने में भी उन्होंने एक कारण यह बताया है कि पाकिस्तान नकली नोट छाप कर आंकतवादियों का वित्तीय पोषण कर रहा है। नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान, चीन व नेपाल के साथ तो सम्बंध पहले से खराब कर लिए हैं।
जिस मीडिया ने मोदी को प्रधान मंत्री बनाया उसने जब मोदी सरकार को जवाबदेह ठहराने की कोशिश की तो सरकार ने एन.डी.टी.वी. पर एक दिवसीय प्रतिबंध का ऐलान कर दिया। देश में राजनीतिक रूप से जागरूक नागरिकों को आपातकाल की याद आ गई। प्रतिबंध के खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया से फिलहाल तो सरकार ने अपने कदम वापस खींच लिए हैं।
जिस सुरक्षा को नरेन्द्र मोदी देश का सबसे बड़ा मुद्दा बनाने चाह रहे हैं वही अब उनके गले की फांस बन गया है। आज देश अपने आप को बाहर व अंदर दोनों से ही असुरक्षित महसूस कर रहा है। यदि मोदी इस मुद्दे पर कुछ और करते तो चीजों के और उलझने का खतरा था।
इसलिए उन्होंने एक अलग क्षेत्र अर्थव्यवस्था से जुड़ा मुद्दा उठाया है। आनन फानन में रु. 500 व 1000 के नोटों पर लगाए गए प्रतिबंध के बात लोग अब आने वाले कुछ हफ्तों इसी की बात करेंगे। सब लोग इस कोशिश में लग जाएंगे कि कैसे जल्दी से जल्दी इन नोटों से छुटकारा पाया जाए। नरेन्द्र मोदी को मालूम है कि लोग राष्ट्रवादी होने से पहले स्वार्थी हैं। मध्यम व उच्च मध्यम वर्ग जो राष्ट्रवाद पर सबसे मुखर है को ही रु. 500 व 1000 के नोटों से पीछा छुड़ाने की चिंता करनी पडे़गी। जब तक उनकी अलमारियां इन नोटों से खाली नहीं हो जातीं तब तक उनके लिए राष्ट्रवाद का मुद्दा इंतजार कर सकता है। फिलहाल लोग मोदी सरकार की उपर्युक्त खामियों की चर्चा नहीं करेंगे जिनकी वजह से उत्तर प्रदेश के आगामी विधान सभा चुनावों में भाजपा की अच्छी बनती स्थिति पर खतरा मण्डराने लगा था।
गरीब, जिसके लिए आजीविका का मुद्दा राष्ट्रवाद से ज्यादा प्राथमिक ह,ै को तो रु. 500 या 1000 के नोट के दर्शन कभी-कभी ही होते हैं। उन्हें रु. 500 व 1000 के नोटों के बण्डलों को बैंक खातों, यदि उनके पास हों तो, में 30 दिसम्बर के पहले जमा करने की चिंता नहीं करनी पड़ेगी। जिस तरह से पाकिस्तानी हमले का उन पर बहुत प्रभाव नहीं पड़ता उसी तरह मोदी के कदम का उनपर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा। पाकिस्तान का हमला हो अथवा नहीं उनकी जिदंगियों पर तो रोज-रोज का खतरा बना ही रहता है।
रु. 500 व 1000 पर प्रतिबंध लगाने से काले धन पर रोक लगेगी। जिन लोगों ने नकद का भण्डारण किया हुआ है उनके लिए अब उससे छुटकारा पाना मुश्किल होने वाला है। सरकार के कदम से काफी काला धन सरकार के पास वापस आ जाएगा। जिनके पास बहुत ज्यादा नकद है उनके सामने सिवाए नोटों को गरीब लोगों में बांटने के शायद कोई विकल्प नहीं क्योंकि यदि वे इसे बैंक में जमा करने ले जाएंगे तो उनसे पूछा जा सकता कि उनके पास इतना धन कहां से आया।
रु. 500 व 1000 के नोटों पर प्रतिबंध लगने से चुनावों में भी इसके इस्तेमाल पर रोक लगेगी। इससे भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लग सकता है। इस देश में भ्रष्टाचार का मूल कारण राजनीति में काले धन कर इस्तेमाल होना है।
लेखकः संदीप पाण्डेय
उपाध्यक्ष, सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया)
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