देवनागरी (हिंदी) लिपि में निकलने वाला देश का पहला उर्दू हफ्तेवार अख़बार
मोहम्मद शोएब एडवोकेट की मेहनत रंग लाई, अब तक डेढ़ दर्जन बेगुनाह अदालत से बरी हो चुके हैं देशद्रोह और दहशतगर्दी के इल्जाम झूटे साबित

लखनऊ! मायावती की पिछली सरकार के दौरान जिन बेकसूर मुसलमानो को जबरदस्ती दहशतगर्द बता कर जेल में डाला गया था तकरीबन आठ सालो तक जेल में रहने के बाद उनमे से पांच और लोगो को अदालत ने बरी कर दिया। इनके साथ अदालत के छूटने वाले मुबय्यना (कथित) दहशतगर्दो और देशद्रोहियो की तादाद डेढ़ दर्जन से ज्यादा हो चुकी हैं। 2008 में उत्तर-प्रदेश एस.टी.एफ ने जितने लोगो को भी दहशतगर्द बता कर गिरफ्तार किया था, उनमे किसी के खिलाफ भी ठोस सबूत अदालत में नहीं पेश किया जा सका। सबूत पेश भी कैसे होते न वह दहशतगर्द थे उनके खिलाफ कोई सबूत।
बेगुनाह मुसलमानो को अदालत से बरी कराने का जोखिम भरा कारनामा लखनऊ के मशहूर क्रिमिनल एडवोकेट मोहम्मद शोएब ने कर दिखाया। रिहाई मंच के राजीव यादव भी मोहम्मद शोएब के साथ कांधे से कांधा मिला कर हर मुश्किल घड़ी में खड़े रहे। तकरीबन डेढ़ दर्जन बेगुनाह मुसलमानो के रिहा होने के बाद अब वह स्यूडो देशभक्त वकील भी शर्म से मुंह छिपाए फिर रहे हैं जिन्होने 2008 में फैसला किया था कि दहशतगर्दी और देशद्रोह में पकड़े गए लोगो की अदालत में कोई वकील पैरवी नहीं करेगा। विश्व हिन्दू अधिवक्ता संघ के नाम पर वकीलो के एक गरोह ने उस वक्त अदालत में हाजिरी के लिए लाए गए इन फर्जी दहशतगर्दो की पिटाई तो की ही थी उनकी पैरवी के लिए वकालतनामा दाखिल करने वाले सीनियर एडवोकेट मोहम्मद शोएब और उनके चार साथियो पर भी हमला किया था। अपने ही साथियो और अपने से जूनियर वकीलो के हमलो के बावजूद मोहम्मद शोएब अपने फर्ज और कानून के रास्ते पर डटे रहे शायद उनके हौसले ने ही इस मुकदमे में उन्हे कामयाबी और फसांए गए बेगुनाहो को इंसाफ दिलाया।
अब विश्व हिन्दू अधिवक्ता संघ और उसके नाम पर देशभक्ति के नाम पर गुण्डो जैसी हरकते करने वाले वकीलो के पास इसका कोई जवाब नहीं हैं कि अगर उस वक्त उनसे खौफजदा होकर मोहम्म्द शोएब और उनके चंद साथियो ने भी बेगुनाहो की पैरवी करने से मुंह मोड़ लिया होता तो वह डेढ़ दर्जन बेगुनाह तो स्यूडो देश भक्ति और पुलिस व एस.टी.एफ की बेईमानी का शिकार हो कर जेलो में ही सड़ते रहते। उन लोगो पर पुलिस ने इल्जाम भी इंतेहाई मजहकारखेज किस्म के लगाए थे मसलन यह कहा गया कि इन लोगो ने अदालत में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए थे।
जिन मुल्जिमान को फर्जी देशद्रोह के इल्जाम में पकड़ा गया था, वह सभी तकरीबन आठ साल बाद बेकुसूर साबित हुए हैं। इन लोगो के जेल में गुजारे गए वक्त और खानदान की बदनामी का हिसाब कौन देगा, इसका जवाब देने के लिए कोई तैयार नहीं हैं। इनकी लड़ाई लड़ने वाले रिहाई मंच ने मतालबा किया हैं कि सरकार को इन लोगो को मुआवजा देना चाहिए। रिहाई मंच के तर्जुमान राजीव यादव का कहना हैं कि पुलिस ने इन बेकुसूरो को बेवजह फंसाया और सरकार ने भी ठीक से पैरवी नहीं की। यही नहीं बीजेपी और संघ से जुड़े वकीलो ने इन लोगो की पैरवी करने पर रिहाई मंच के सदर मोहम्मद शोएब एडवोकेट पर बाकायदा हमला किया था। उनका कहना हैं कि सरकार को चाहिए कि उन लोगो की तन्ख्वाहो से इन बेकुसूर नौजवानो को मुआवजा दिलवाया जाए जिन्होने इन्हे फंसाया हैं।
इन पांच लोगो को रिहा कराने में अहम रोल निभाने वाले रिहाई मंच के सदर मोहम्मद शोएब एडवोकेट का कहना था कि पुलिस की बेईमानी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता था इन सभी को कि पुलिस बंगाल व अलवर से अलग-अलग गिरफ्तार करके ”कोल्ड स्टोरेज“ में रखा था। उन्होने कहा कि ”कोल्ड स्टोरेज“ दरअस्ल एसटीएफ और इंटलीजंेस एजेंसियो के जरिए इस्तेमाल किया जाने वाला ”कोड वर्ड“ हैं जिसका मतलब हैं कि कुछ लोगो को गिरफ्तार करके पन्द्रह-बीस दिन रखो और उसके बाद अगर कोई वाक्या हो जाए तो उन्हे उसका मुल्जिम बना दो कोई बड़ा वाक्या न हो तो उसे छोटे-मोटे किसी जुर्म में फंसा कर कोर्ट भेज दो मोहम्मद शोएब ने अजीजउर्रहमान की मिसाल पेश करते हुए बताया कि उसे पच्छिम बंगाल के बशीर हाट से 11 जून 2007 को कब्जे में लेकर इंटलीजंेस के जरिए ”कोल्ड स्टोरेज“ में डाल दिया गया, फिर 22 जून को उसे वही की कोर्ट में पेश करके डकैती का मंसूबा बनाने के इल्जाम में पकड़ने का दावा किया और 26 जून तक की ज्यूडीशियल कस्टडी में ले लिया। दूसरी तरफ उत्तर-प्रदेश एसटीएफ ने उसे 22 जून (2007) को लखनऊ के मोहनलाल गंज में हथियार छिपाने का मुल्जिम बना दिया। इस तरह एक ही शख्स को एक ही वक्त और दिन में सैकड़ो मील दूर दिखा दिया। यह पुलिस और एसटीएफ की बेईमानी नहीं तो और क्या है? खुद अजीजउर्रहमान का कहना हैं कि वह कोलकाता में रहता हैं और पेशे से मैकेनिक हैं। यूपी एसटीएफ ने उसे पकड़ा और साथ में शेख मुख्तार व मोहम्मद अली अकबर को भी पकड़ कर पच्छिम बंगाल से उत्तर-प्रदेश ले आए। उन्होने बताया कि वह जिन्दगी में पहली बार यूपी आए वह भी पुलिस की वजह से, यहां लाकर पुलिस ने उन पर मोहनलाल गंज में ए.के.सैैतालीस राइफल और धमाका खेज अशिया (विस्फोटक पदार्थ) रखनेे के इल्जाम जड़ दिए। अजीजउर्रहमान को कोलकाता से यूपी एसटीएफ ने उठाया और बाद में उसकी गिरफ्तारी लखनऊ के चारबाग स्टेशन से दिखाई गई। अजीजउर्रहमान कहता हैं कि जब उसे उठाया गया था तब उसकी बीवी हामिला थी, उसके घर बेटी पैदा हुई मगर इन आठ साल में सिर्फ एक बार आधे घंटे के लिए वह अपने परिवार से मिल सका। अजीजउर्रहमान अपनी गिरफ्तारी के पीछे सियासतदानो का हाथ बताते हैं। उनका कहना हैं कि उसकी गिरफ्तारी पर हुक्मरा अपनी सियासत चमकाना चाहते थे। वह यह बात मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि मुसलमान होने की वजह से उसे पकड़ा गया। पांचवी क्लास तक पढ़े शेख मुख्तार और अजीजउर्रहमान कहते हैं कि उन लोगो के बहुत से हिंदू दोस्त हैं। इन दोनो का मानना हैं कि भारत में हिन्दू-मुस्लिम के बीच आपसी कोई झगड़ा नहीं हैं, जो कुछ भी होता हैं उसके पीछे सियासतदां होते हैं जो सियासी फायदा उठाने के लिए इस किस्म की हरकते कराते रहते हैं। इन लोगो की तरह देशद्रोह के फर्जी इल्जाम में पकड़े गए नौशाद का भी कहना हैं कि वह सच्चा हिन्दुस्तानी हैं और अपने मुल्क के लिए उसके दिल में बेपनाह मोहब्बत हैं, वह अपने मुल्क से गद्दारी की बात सोच भी नहीं सकता। नौशाद बिजनौर के छाइली गांव का रहने वाला हैं। वह अलवर के नीमराना में मजदूरी कर रहा था। तब उसकी उम्र 23 साल थी जब जून 2007 में उसे एसटीएफ ने उठाया और दहशतगर्द होने व जदीद असलहा बरामद दिखाकर व पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने जैसे इल्जामात लगाकर उसे जेल में बंद कर दिया गया। जेल में रहकर नौशाद ने अपनी पढ़ाई पूरी की और वह इंग्नू के बी.ए फाइनल इयर में हैं। उसने कहा कि वह जानता था कि वह बेकुसूर हैं, और उसे मुल्क की अदलिया पर पूरा भरोसा था, तकरीबन साढ़े आठ साल बाद अदालत से उसे इंसाफ मिला, उस पर लगाए गए तमाम इल्जाम गलत पाए गए और उसे बाइज्जत रिहा कर दिया गया। अजीजउर्रहमान और शेख मुख्तार वगैरह की तरह नौशाद को भी मुल्क और अवाम से कोई मिला नहीं हैं उसे भी हुक्मरानो से शिकायत हैं, जिन्होने उसकी जिन्दगी के कीमती साढ़े आठ साल छीन लिया और मुल्क दुश्मनी का दाग अलग लगा दिया था। वह कहता हैं कि अपनी पढ़ाई पूरी करके मुल्क की खिदमत करेगा।
दहशतगर्दी के इल्जाम में शेख मुख्तार और अजीजउर्रहमान के साथ पच्छिम बंगाल से पकड़ कर लाए गए मोहम्मद अली अकबर के साथ सबसे बुरी बीती। पुलिस के जरिए अजीयते दिए जाने और बेकुसूर होते हुए भी जेल में बंद रहने की वजह से वह जेहनी तौर पर बीमार हो गया हैं। उसके वालिद अल्ताफ इंडियन एयरफोर्स में तकरीबन इक्कीस साल तक जूनियर वारंट अफसर रहे हैं। वह 1987 में रिटायर हुए है। अल्ताफ का कहना था कि उन्होने हमेशा अपने बच्चो को वतन से मोहब्बत करना सिखाया था, जिसका सिला यह मिला कि पुलिस ने उनके बेटे को दहशतगर्दी के झूटे इल्जाम में फंसा कर आठ साल जेल मंे बंद रखा। यूपी एसटीएफ ने इन लोगो को उठा कर फर्जी इल्जाम में जेल में भेज दिया था मगर कुछ ठोस सुबूत उसके पास नहीं थे, नतीजा यह कि दारोगा राम नरायन सिंह ने वजीरगंज थाने में 12 अगस्त 2008 को रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि वह मुल्जिमान को जिला जेल से एडीजे कोर्ट की पेशी पर लाए थे दोपहर बाद शेख मुख्तार हुसैन, मोहम्मद अली अकबर, अजीजउर्रहमान, नूर इस्लाम और नौशाद को लेकर अदालत पहुंचे। वहां मुल्जिमान के वकील मोहम्मद शोएब एम एफ फरीदी, दो दीगर वकीलों के साथ मिले तो फरीदी ने मुल्जीमीन के कान में कुछ कहा जिसके बाद इन लोगो ने भारत मुखालिफ और पाकिस्तान की हिमायत में नारेबाजी की। दारोगा रामनरायन ने फरीदी व उनके साथियो पर मुल्जिमान को ऐसी नारेबाजी करने के लिए उकसाने का इल्जाम भी लगाया। साथ ही संघी वकीलो को बचाने की कोशिश करते हुए कहा कि इस नारेबाजी के खिलाफ कुछ वकील इकट्ठा हुए तो माहौल खराब होने का खतरा देखते हुए उन लोगो की जल्दी पेशी कराकर वापस जेल पहुंचाया। लेकिन अदालत के सामने झूट की यह थ्योरी दो कदम भी नहीं चल सकी। अदालत ने कहा कि प्रासीक्यूशन ने जो गवाह पेश किए उनके बयानात में बहुत एख्तेलाफ हैं। अदालत ने कहा कि न सिर्फ नारेबाजी का वक्त अलग-अलग हैं बल्कि जगह भी अलग-अलग बताई गई हैं। अदालत ने अपने हुक्म में उस वक्त के एडीजे शशीकांत की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि 12 अगस्त 2008 को कोर्ट में जलालउद्दीन व दीगर के मामले की पेशी होनी थी। लंच टाइम के दौरान मुल्जिमान को पुलिस कस्टडी में लाया गया। तभी उन्हे शोरगुल सुनाई दिया तो वह वहां (जज शशिकांत)पहुंचे तो देखा कि कोर्ट रुम में वकीलो के दो ग्रुप झगड़ा कर रहे थे। पूछने पर पता चला कि एक ग्रुप मुल्जिमान की पैरवी करना चाहता था मगर दूसरा ग्रुप उन लोगो को पैरवी करने से रोक रहा था। इसी के बाद एटीएस के स्पेशल जज एस.ए.एच. रिजवी ने नौशाद उर्फ हाफिज उर्फ साबिर, अजीजउर्रहमान उर्फ सरदार, शेख मुख्तार हुसैन, मोहम्मद अली अकबर हुसैन और नूर इस्लाम उर्फ मामा को रिहा करने का हुक्म दिया। नूर इस्लाम को निचली अदालत ने दहशतगर्दी के एक और मामले में उम्रकैद की सजा सुना रखी हैं, जिसके खिलाफ उसने हाईकोर्ट में अपील भी दायर कर रखी हैं। इसलिए नूर इस्लाम को छोड़कर बाकी चारो को रिहा कर दिया गया। इनकी रिहाई में मोहम्मद शोएब एडवोकेट की टीम ने बड़ी मेहनत की हैं। जेल से रिहा होने वालो को यूं तो किसी से शिकायत नहीं हैं लेकिन इस बात की तकलीफ जरुर हैं कि बेकुसूरो को जेल में ठूसने वाले पुलिस अफसरान के खिलाफ किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं हुई हैं।
यह कोई पहला मामला नहीं हैं जब अदालत मंे पुलिस की थ्योरी गलत साबित हुई हैं। इससे पहले 10 जून 2007 को बिजनौर के मोहम्मद याकूब को नगीना स्टेशन के पास से पुलिस ने पकड़ा और उसे बांग्लादेश की दहशतगर्द तंजीम हरकतुल जेहादउल इस्लामी (हूजी) का दहशतगर्द बताया, गिरफ्तारी के वक्त उसकी उम्र 28 साल थी, आठ साल में उसके खिलाफ भी कुछ साबित नहीं हुआ तो उसे अगस्त 2015 में छोड़ दिया गया। मोहम्मद याकूब ने बताया कि उसे पुलिस ने बेहद अजीयते दी और कहलवा दिया की नौशाद और जलालउद्दीन उर्फ बाबू भाई हूजी के कमांडर हैं, लेकिन किसी के खिलाफ कुछ साबित नहीं कर पाई। लखनऊ से पकड़े गए मुबीन,नासिर रामपुर से ताज मुहम्मद उर्फ जावेद समेत चार लोग, सहकरिता भवन लखनऊ में बम धमाके में फसांए गए, गुलजार अहमद बानी और मोहम्मद कलीम के अलावा, मुरादाबाद से गिरफ्तार दिखाए गए सादिक अली समेत बारह मुबय्यना (कथित) दहशतगर्दो को अदालते रिहा कर चुकी हैं। खालिद मुजाहिद की मौत हो चुकी हैं। शेख मुख्तार, नौशाद, अजीजउर्रहमान, मोहम्मद अली अकबर और नूर इस्लाम को भी अदालत ने रिहा कर दिया। इस तरह अब तक डेढ़ दर्जन से ज्यादा लोग अदालत से बेकसूर साबित होकर रिहाई पा चुके हैं और ऐसे ही पुलिस के जरिए बनाए गए दस मुबय्यना (कथित) दहशतगर्द जेल में अपनी रिहाई के मुतजिर हैं।

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