गाय से दूध निकालने पर ही क्यों न प्रतिबंध लगा दिया जाए?

– संदीप पाण्डे

नरेन्द्र मोदी दुनिया में घूम-घूम कर विदेशी पूंजी आकर्षित करने की कोशिश में लगे हैं। हमारे सामाजिक मानक दुनिया में सबसे खराब देशों की श्रेणी में होने के बावजूद वे भारत की छवि एक उभरते हुए मजबूत आर्थिक एवं सैन्य शक्ति के रूप में बनाने हेतु मेहनत कर रहे हैं। भारत में उनके राजनीतिक विचार धारा को मानने वाले उनके हिन्दुत्व के साथी देश के अल्पसंख्यकों, खासकर मुस्लिमों व ईसाइयों, के लिए एक आतंक का माहौल बनाने में लगे हुए हैं। बहुत साफ तरीके से कहा जा रहा है कि यदि अल्पसंख्यकों को भारत में रहना है तो उन्हें हिन्दुत्व की विचारधारा के अनुसार रहना होगा, जो हलांकि भारत के सारे हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व करने का दावा नहीं कर सकती। बिसाहड़ा, दादरी में मोहम्मद अख्लाक की निर्मम हत्या ने समाज को झकझोर कर रख दिया है। गम्भीर रूप से घायल उनके पुत्र दानिश अभी अस्पताल में ही हैं। यह घटना हमें बाबरी मस्जिद ध्वंस की याद दिलाती है। एक अनियंत्रित भीड़ कानून को अपने हाथ में ले लेती है और प्रशासन-शासन मूक दर्शक बना रहता है। विभाजन के बाद भारतीय समाज के साम्प्रदायिकरण में बाबरी मस्जिद ध्वंस एक मोड़ के रूप में था। इस घटना ने ही भारत में आतंकवाद नामक समस्या को जन्म दिया।

अगर कोई श्रंखलाबद्ध बम धमाके या आतंकवादी घटना होता है तो अगली सुबह तक अखबारों में प्राथमिकी दर्ज होने या विवेचना से पहले ही कुछ मुस्लिम नवजवानों के तस्वीरों के साथ नाम छप जाते हैं। किंतु जहां आरोपी हिन्दुत्व धारा के कार्यकर्ता होते हैं उन्हें चिन्हित ही नहीं किया जाता। अभी तक हमें नहीं मालूम कि गोविंद पंसारे, नरेन्द्र दाभोलकर व एम.एम. कालबुर्गी के हत्यारे कौन थे। कर्नाटक में छह साहित्यकारों ने राज्य सरकार के पुरस्कारों को इसलिए वापस का चुके हैं क्योंकि वह कलबुर्गी के हत्यारों को गिरफ्तार नहीं कर पाई है। राष्ट्रीय स्तर पर भी तीन साहित्यकारों ने साहित्य अकादमी के पुरस्कार इसलिए वापस कर दिए क्योंकि देश में नागरिक स्वतंत्रता खत्म की जा रही है और प्रधान मंत्री मौन है।

इसी तरह मोहम्मद अखलाक की हत्या के मामले में विभिन्न विवरण पृथक आरोपियों की बात कर रहे हैं लेकिन असली हत्यारे या फिर जिन लोगों ने हत्यारों को घटना को अंजाम देने के लिए प्रेरित किया उन्हें चिन्हित नहीं किया गया है। जिला प्रशासन की रुचि हत्यारों की गिरफ्तारी से ज्यादा इस बात को पता लगाने में थी कि अखलाक के फ्रिज से बरामद मांस गाय का था अथवा नहीं। गोमांस खाना अपराध नहीं है हलांकि उ.प्र. गोहत्या निषेध अधिनियम, 1955 व 2001 के एक सरकारी अध्यादेश के मुताबिक गोहत्या प्रतिबंधित है। इस अपराध की सजा दो वर्ष की कैद व रु. 1000 जुर्माना अथवा दोनों ही हैं। इसके लिए सजा-ए-मौत तो कदापि नहीं है जो सजा भीड़ 28 सितम्बर, 2015 को मोहम्मद अखलाक को दे चुकी है। उसकी लड़की साजिदा यह असुविधजनक सवाल पूछ चुकी है कि यदि जांच में मांस गाय का नहीं पाया जाता तो क्या उसके पिता को जिंदा लौटाया जाएगा?

परिवार के बचे हुए सदस्यों को पहले रु. दस लाख मुआवजे की घोषणा हुई लेकिन मुख्य मंत्री से जब वे मिलने पहुंचे तो यह बढ़ा कर रु. 45 लाख कर दिया गया। मुख्य मंत्री ने तुरंत ही रु. 5 लाख मुआवजे की घोषणा उस युवा के लिए की जिसकी अखलाक की हत्या की घटना के बाद हो रहे विरोध प्रदर्शन पर पुलिस द्वारा गोली चलाने से मौत हुई ताकि उनपर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप न लगे। आखिलेश यादव साम्प्रदायिक हिंसा से मौतों या किसानों की आत्महत्या रोकने के बजाए इतनी तुरत-फुरत मुआवजा बांटते हैं कि उनको मुआवजा मुख्य मंत्री कहना अनुचित न होगा। अपने आप को धर्म-निर्पेक्ष दिखाने वाली समाजवादी पार्टी साम्प्रदायिक ताकतों को नियंत्रित करने में नाकाम रही है जिन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और वर्तमान में केन्द्र में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त है। अब यह आम मान्यता है कि दोनों राजनीतिक दलों में अपने-अपने मतों के धु्रवीकरण हेतु इन घटनाओं को अंजाम देने में चोली दामन का रिश्ता है।

भारत से पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा मांस 24 लाख टन निर्यात होता है जो ज्यादातर भैंस का होता है। अवैध कत्लखानों की संख्या अनुज्ञाप्ति प्राप्त कत्लखानों से दस गुना ज्यादा है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 48 में वर्णित राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में कहा गया है कि राज्य कृषि एवं पशुपालन को आधुनिक व वैज्ञानिक आधार पर संगठित करेगा, नस्ल में सुधार व उनके संरक्षण हेतु कदम उठाएगा और गाय, उसके बच्चे या अन्य दूध देने वाले और हल खींचने वाले पशुओं की हत्या प्रतिबंधित करेगा। इसके अनुसार तो भैंस की हत्या पर भी रोक लगनी चाहिए किंतु धार्मिक कारणों से प्रतिबंध सिर्फ गाय की हत्या पर है। वास्तविकता यह है कि भैंस के लिए बने वैध-अवैध कत्लखानों में गाय भी कटती है। इसलिए यदि सरकारें वाकई में गोहत्या रोकना चाहती हैं तो किसी भी पशु की हत्या पर रोक लगानी पड़ेगी।

यदि हिन्दू गाय को मां मानते हैं तो उन्हें जबरदस्ती गाय का पैर बांध कर उसका दूध निकालना भी बंद कर देना चाहिए। अपनी मां के साथ भला कोई ऐसा व्यवहार कैसे कर सकता है। यह दूध गाय के बच्चे के लिए होता है। आदिवासी या पश्चिम में अब लोकप्रिय हो रहे वीगन समुदाय के लोग किसी भी किस्म के पशु उत्पाद का इस्तेमाल नहीं करते हैं।

महात्मा गांधी ने कहा कि भारत में गोहत्या पर रोक नहीं लगाई जा सकती है। उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात में कोई संदेह नहीं कि हिन्दुओं के लिए गोहत्या करना प्रतिबंधित है। वे खुद गाय की सेवा करते थे किंतु उनका मानना था कि वे अपना धर्म किसी दूसरे पर थोप नहीं सकते। यदि कल वीगन लोग किसी भी प्रकार के पशु उत्पाद जिसमें दूध भी शामिल है पर रोक लगाने की मांग करने लगे तो हिन्दुओं को कैसा लगेगा? क्या खाना है और क्या नहीं यह लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का विषय होना चाहिए जो उनकी समझ एवं मान्यताओं के आधार पर छोड़ देना चाहिए।

लोगों को अपने अपने धर्मिक विचारों के प्रचार प्रसार का अधिकार संविधान ने दिया है। इसी तरीके से जिन लोगों की कोई शिकायत है उन्हें भिन्न मान्यता रखने वाले लोगों को समझाने की कोशिश करनी चाहिए। यदि हिन्दू गोहत्या से आहत होते हैं तो उन्हें मुसलमानों या इसाइयों को यह बात समझानी होगी कि वे गोमांस खाना छोड़ दें। किंतु क्या हिंदू मुस्लिम या ईसाई धर्म की अच्छी बातों को मानने को तैयार होंगे। जैसे, इस्लाम व ईसाई दोनों जाति व्यवस्था से मुक्त हैं। क्या हिन्दू अपने धर्म के सबसे बड़े कलंक से मुक्ति पाने के लिए इस्लाम व ईसाई धर्म से सीख लेने को तैयार हैं?

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