Prem Singh University of Delhi is replete with ad-hoc teachers as it presently employs around five thousand teachers who work in the ad-hoc capacity. Year after year, a hire and fire policy is adopted with regard to their employment by the college administration for every academic session. In this process, an ad-hoc teacher often finds […]
जॉर्ज फर्नांडिस : एक तूफानी नेता का अवसान
जॉर्ज फर्नांडिस : एक तूफानी नेता का अवसान प्रेम सिंह जॉर्ज फर्नांडिस के निधन की सूचना सुबह ही डॉ. सुनीलम ने भेजी. मन कुछ देर तक खिन्न रहा. जॉर्ज करीब 10 साल से अल्जाइमर की बीमारी से ग्रस्त चल रहे थे और लम्बे समय से लगभग अचेतावस्था में थे. एक दौर में तूफानी रहे शख्स […]
कारपोरेट राजनीति का विज्ञापन बनी दिल्ली
कारपोरेट राजनीति का विज्ञापन बनी दिल्ली प्रेम सिंह यह टिप्पणी कोई पत्रकार साथी लिखता तो अधिक सार्थक होती और ज्यादा लोगों तक पहुंचती. दरअसल मैं इंतज़ार करता रहा कि शायद कोई साथी इस विषय की तरफ ध्यान देगा और लिखेगा. लेकिन दिल्ली महानगर के चहरे-मोहरे, जिसकी अनंत छवियां और सामाजिक-राजनीतिक निहितार्थ हो सकते हैं, पर […]
A ‘capital’ transformation : Delhi as a symbol of corporate politics advertisement
A ‘capital’ transformation : Delhi as a symbol of corporate politics advertisement Prem Singh It would have been more pertinent and meaningful if this piece had been written by a journalist friend. Actually, I had waited for some time hoping that one or another journalist friend would turn his attention to this subject and write […]
A ‘capital’ transformation : Delhi as a symbol of corporate politics advertisement
A ‘capital’ transformation : Delhi as a symbol of corporate politics advertisement Prem Singh It would have been more pertinent and meaningful if this piece had been written by a journalist friend. Actually, I had waited for some time hoping that one or another journalist friend would turn his attention to this subject and write […]
कारपोरेट राजनीति का विज्ञापन बनी दिल्ली
कारपोरेट राजनीति का विज्ञापन बनी दिल्ली प्रेम सिंह यह टिप्पणी कोई पत्रकार साथी लिखता तो अधिक सार्थक होती और ज्यादा लोगों तक पहुंचती. दरअसल मैं इंतज़ार करता रहा कि शायद कोई साथी इस विषय की तरफ ध्यान देगा और लिखेगा. लेकिन दिल्ली महानगर के चहरे-मोहरे, जिसकी अनंत छवियां और सामाजिक-राजनीतिक निहितार्थ हो सकते हैं, पर […]
जमीन लेंगे … और जान भी
(29 और 30 नवम्बर 2018 को देश भर से आये किसानों ने अपनी समस्याओं को लेकर दिल्ली में दस्तक दी. कई विपक्षी पार्टियों के शीर्ष नेताओं ने उनके समर्थन और सरकार के विरोध में भाषण किये. मीडिया ने वही कवर किया. देश भर में किसानों के साथ उनके मुद्दों पर काम करने वाले और उन्हें […]
फर्जी राजनीति के दौर में
(यह लेख 23 अप्रैल 2013 का है. ‘युवा संवाद’ में प्रकाशित हुआ था. एक बार फिर आपके पढ़ने के लिए ज़ारी किया है.) फर्जी राजनीति के दौर में प्रेम सिंह फर्जी राजनीति का कांग्रेसी घराना जल्दबाजी में लिखा गया यह ‘समय संवाद’ कुछ ज्यादा तीखा लग सकता है। जिस तरह से नवउदारवाद के भारतीय एजेंटों […]
Sacrifice at the Altar of Development
SACRIFICE AT THE ALTAR OF DEVELOPMENT The legendary Professor Guru Das Agrawal, who got promoted from a Lecturer directly to Professor at the prestigious Indian Institute of Technology at Kanpur after having finished his Ph.D. from University of California at Berkeley in two years and laid the foundation of India’s anti-pollution regimen as the first […]
विपक्षी गठबंधन की गांठें और मुसलमान
विपक्षी गठबंधन की गांठें और मुसलमान प्रेम सिंह मोदी-शाह की जोड़ी की एक के बाद एक चुनावी जीत ने केंद्र और विभिन्न राज्यों में सत्ता के प्रमुख खिलाड़ियों के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया था. घबराये विपक्षी दलों में भाजपा-विरोधी चुनावी गठबंधन बनाने की कोशिशें होने लगीं. लोकतंत्र पर फासीवादी संकट के मद्देनज़र […]