Two Phenomena of ‘Modi Era’ : Virtual World and Unabated Communal-Caste Conflicts

Two Phenomena of ‘Modi Era’ : Virtual World and Unabated Communal-Caste Conflicts Prem Singh First phenomenon : Prime Minister Narendra Modi’s team has succeeded in projecting the political debate from the ground on to the virtual world. The political and intellectual class has played a pivotal role in the last three decades in the crystallisation […]

दिल्ली विश्वविद्यालय में ठेका-शिक्षण का मुद्दा

दिल्ली विश्वविद्यालय में ठेका-शिक्षण का मुद्दा प्रेम सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय में इस समय करीब 5 हज़ार शिक्षक तदर्थ हैं. ये तदर्थ शिक्षक हर साल प्रत्येक अकादमिक सत्र में कॉलेज प्रशासन द्वारा लगाए-हटाये जाते रहते हैं. इस प्रक्रिया में उन्हें तदर्थ शिक्षक से अतिथि शिक्षक भी बना दिया जाता है. इनमें से बहुतों को किसी सत्र […]

Issue of Contractual-Teaching at Delhi University

Issue of Contractual-Teaching at Delhi University

Prem Singh University of Delhi is replete with ad-hoc teachers as it presently employs around five thousand teachers who work in the ad-hoc capacity. Year after year, a hire and fire policy is adopted with regard to their employment by the college administration for every academic session. In this process, an ad-hoc teacher often finds […]

जॉर्ज फर्नांडिस : एक तूफानी नेता का अवसान

जॉर्ज फर्नांडिस : एक तूफानी नेता का अवसान प्रेम सिंह जॉर्ज फर्नांडिस के निधन की सूचना सुबह ही डॉ. सुनीलम ने भेजी. मन कुछ देर तक खिन्न रहा. जॉर्ज करीब 10 साल से अल्जाइमर की बीमारी से ग्रस्त चल रहे थे और लम्बे समय से लगभग अचेतावस्था में थे. एक दौर में तूफानी रहे शख्स […]

कारपोरेट राजनीति का विज्ञापन बनी दिल्ली

कारपोरेट राजनीति का विज्ञापन बनी दिल्ली प्रेम सिंह यह टिप्पणी कोई पत्रकार साथी लिखता तो अधिक सार्थक होती और ज्यादा लोगों तक पहुंचती. दरअसल मैं इंतज़ार करता रहा कि शायद कोई साथी इस विषय की तरफ ध्यान देगा और लिखेगा. लेकिन दिल्ली महानगर के चहरे-मोहरे, जिसकी अनंत छवियां और सामाजिक-राजनीतिक निहितार्थ हो सकते हैं, पर […]

कारपोरेट राजनीति का विज्ञापन बनी दिल्ली

कारपोरेट राजनीति का विज्ञापन बनी दिल्ली प्रेम सिंह यह टिप्पणी कोई पत्रकार साथी लिखता तो अधिक सार्थक होती और ज्यादा लोगों तक पहुंचती. दरअसल मैं इंतज़ार करता रहा कि शायद कोई साथी इस विषय की तरफ ध्यान देगा और लिखेगा. लेकिन दिल्ली महानगर के चहरे-मोहरे, जिसकी अनंत छवियां और सामाजिक-राजनीतिक निहितार्थ हो सकते हैं, पर […]

जमीन लेंगे … और जान भी

(29 और 30 नवम्बर 2018 को देश भर से आये किसानों ने अपनी समस्याओं को लेकर दिल्ली में दस्तक दी. कई विपक्षी पार्टियों के शीर्ष नेताओं ने उनके समर्थन और सरकार के विरोध में भाषण किये. मीडिया ने वही कवर किया. देश भर में किसानों के साथ उनके मुद्दों पर काम करने वाले और उन्हें […]

फर्जी राजनीति के दौर में

(यह लेख 23 अप्रैल 2013 का है. ‘युवा संवाद’ में प्रकाशित हुआ था. एक बार फिर आपके पढ़ने के लिए ज़ारी किया है.) फर्जी राजनीति के दौर में प्रेम सिंह फर्जी राजनीति का कांग्रेसी घराना जल्दबाजी में लिखा गया यह ‘समय संवाद’ कुछ ज्यादा तीखा लग सकता है। जिस तरह से नवउदारवाद के भारतीय एजेंटों […]