अरुंधती धुरू व संदीप पाण्डेय | यदि मजदूरों से बलिदान की अपेक्षा की जा सकती है तो अन्य लोगों, खासकर पूंजीपति वर्ग से क्यों नहीं जिसके पास अपनी जरूरत से ज्यादा जमा की हुई कमाई है। यदि मजदूरों से यह अपेक्षा की जा रही है कि वे न्यूनतम काम के घंटे अथवा न्यूनतम मजदूरी जैसे अपने अधिकारों को छोड़ दें तो पूंजीपति वर्ग से यह क्यों नहीं कहा जा सकता कि वह अगले तीन वर्षों के लिए अपना मुनाफा छोड़ दे।
Why No Pompous-Sounding ‘Vande Bharat’ Programmes For Stranded Migrant Workers?
Vijaya Ramachandran and Sandeep Pandey | Truth is also emerging that the government was under pressure from the capitalist class not to let the workers return home for the fear of labour shortage which would hit their operations, some in Gujarat going as far as to suggest that punitive action should be taken against returning migrant workers.
क्या प्रवासी मजदूरों के लिए कोई ‘वंदे भारत’ कार्यक्रम है?
रूबीना अयाज़ व संदीप पाण्डेय | कोरोना का संकट तो पूरी दुनिया में है और तालाबंदी भी दुनिया के अधिकतर देशों ने लागू की लेकिन जिस तरह मजदूरों की सड़कों पर अपने अपने साधनों से घर जाने की होड़ लगी हुई है वह पूरी दुनिया में किसी और देश में दिखाई नहीं पड़ी। ऐसा क्यों हुआ?
Pro-Corporate Thrust of Economic Package Flies in the Face of ‘Atma-Nirbharta!
Pictures of migrant workers who have lost their livelihoods struggling to go back to their home towns – walking hundreds of kilometres in the scorching heat of the summer sun, with children, elderly and meagre belongings – are something that history will remember as a shameful period when lakhs of fellow human beings were allowed to face such indignities while the ‘powers-that-be’, watched on.
2 दिवसीय ऑनलाइन सोशलिस्ट कांफ्रेंस (17 – 18 मई 2020) के प्रस्ताव
समाजवादियों का मानना है कि आजका सच पूंजीवादी नीतियों का परिणाम है। देश का जनसाधारण सरकार और सरकारी नीतियों से मोहभंग के दौर में है। नए समाधानों की तलाश का समय आ गया है। ‘सबको रोटी – सबको काम’ का नारा देशव्यापी हो रहा है।
कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के स्थापना दिवस 17 मई 1934 पर विशेष: हम में से समाजवादी कौन है?
अरुण कुमार त्रिपाठी | यह दौर है जब समाजवादी 1934 की तरह एक मंच पर इकट्ठा हों और उन मूल्यों को संजोएं जिन्हें पूंजीवाद और उसकी विकृतियों से उत्पन्न हुई महामारी ने नष्ट करने का प्रयास किया है। यह समय मजदूरों और किसानों के दर्द को समझने और उनके एजेंडे की वापसी का है।
किसान मजदूर ही बन सकते हैं परिवर्तन का हरावल दस्ता
दिनेश सिंह कुशवाह | आज पूरा देश संकट में है और ऐसे में तमाम समाजवादी विचारों से जुड़े राजनीतिक कार्यकर्ताओं को इस बात पर विचार करना चाहिए कि आज यदि डॉक्टर लोहिया जैसा नेतृत्व होता तो वह इस सरकार की जनविरोधी, मजदूर-किसान विरोधी नीतियों का विरोध कैसे करता.
कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के स्थापना दिवस पर विशेष लेख: स्थापना काल से ही समाजवादी पत्र-पत्रिकाओं और लेखकों ने वैचारिक कार्यकर्ता तैयार करने के लिए बड़ा काम किया
रामस्वरूप मंत्री | कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना के समय से ही इस आंदोलन के बड़े नेताओं का मानना था कि विचार वान कार्यकर्ता ही देश में संघर्ष और कसमता की राजनीति कर सकता है। इसलिए उन तमाम नेताओं ने विचार फैलाने के लिए लेखन को भी अपने कर्मो में शामिल किया।
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय: ‘आत्मनिर्भता’ प्राकृतिक संसाधनों के साथ आती है, उसे लुटाने से नहीं!
सदियों से संघर्षो के बाद मीले अधिकारों को सरकार छीन रही है। इन मजदूरों के अधिकारों की बलि देकर कारपोरेट को फायदा पहुंचाना है। जो आत्मनिर्भरता के कन्सेप्ट के विपरीत है।
कोरोना महामारी : श्रमिक चेतना के उन्मेष का समय
प्रेम सिंह | राजनीति को बदले बिना अर्थव्यवस्था नहीं बदली जा सकती. कोरोना महामारी को सरकार ने एक मौका बनाया है, तो मौजूदा निगम पूंजीवाद के वास्तविक विरोधी भी इसे एक मौका बना सकते हैं. मजदूरों, किसानों, अर्द्ध-पूर्ण बेरोजगारों का महामारी काल का अनुभव आसानी से भुलाने वाला नहीं होगा. उनके इस अनुभव का राजनीतिकरण होगा तो एक नई श्रमिक चेतना का उन्मेष होगा और कारपोरेट राजनीति के बरक्स वैकल्पिक राजनीति की ज़मीन बनेगी.