सोशलिस्ट पार्टी का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पूर्ण बहुमत वाली सरकार के मार्फत पिछले एक साल में देशी-विदेशी कारपोरेट घरानों को करों से लेकर देश के बेशकीमती संसाधनों और श्रम को लुटाने का काम पिछली कांग्रेसनीत यूपीए सरकार से ज्यादा तेजी से किया है। प्रधानमंत्री बार-बार जो ‘मन की बात’ सरकारी रेडियो पर कहते हैं, वह दरअसल कारपोरेट घरानों के मन की बात होती है। इसीलिए जाहिरा तौर पर गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, बीमारी, बेरोजगारी और किसानों की आत्महत्याओं का पहले से जारी सिलसिला और तेज हुआ है। किसानों, आदिवासियों, छोटे व्यापारियों/उद्यमियों, मजदूरों, कारीगरों की तबाही का सिलसिला बदस्तूर जारी है।

पिछले एक साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्राकृतिक संसाधनों, श्रम और हुनर से समृद्ध भारत की छवि पूरी दुनिया में भिखारी की बना दी है। वे स्वतंत्रता और स्वावलंबन की विरासत को पिछले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी ज्यादा तेजी से नष्‍ट कर देश को पूरी तरह से नवसाम्राज्यवादी शिकंजे में फंसाने में लगे हैं। आरएसएस के स्वयंसेवक प्रधानमंत्री का निर्णायक रूप से मानना है कि भारत का विकास विदेशी कंपनियां और सरकारें करें। राष्‍ट्रवाद और स्वदेशी का राग अलापने वाले आरएसएस और भाजपा के ‘बौद्धिक’ पूरी तरह चुप हैं। इस एक साल में आरएसएस और भाजपा का मजदूर-किसान-अल्‍पसंख्‍यक विरोधी चेहरा ही नहीं, राष्‍ट्रद्रोही चेहरा भी पूरी तरह उजागर हो गया है।

इसमें कोई हैरत की बात नहीं है कि सरकार की कारपोरेटपरस्त नीतियों से लाभान्वित होने वाला तबका और मीडिया अभी भी नरेंद्र मोदी की देश के उद्धारक नेता की छवि बनाने में लगा है। इसीसे उसका स्‍वार्थ सधता है। लेकिन देश को बेचने और तोड़ने की असलियत सच्ची देशभक्त ताकतों से छिपी नहीं रह सकती।

सोशलिस्ट पार्टी का मानना है कि इस नवसाम्राज्यवादपरस्त राष्‍ट्रद्रोह का मुकाबला विचारधारात्मक आधार पर ही किया जा सकता है। पिछले दिनों जिन्होंने विचारधाराहीनता का नारा लगा कर दिल्ली राज्य की गद्दी कब्जा की है, वे नवउदारवादी विचारधारा के वाहक हैं और नरेंद्रमोदी के साथ नवसाम्राज्यवादपरस्त जमात में शामिल हैं।

सोशलिस्ट पार्टी का दृढ़ मत है कि संविधान और उसकी अनुकूलता में समाजवादी विचारधारा के आधार पर ही स्वतंत्र, स्वावलंबी और समतामूलक भारत का विकास संभव है। सोशलिस्ट पार्टी ने पिछले आम चुनाव के वक्त इस दिशा में लगातार कोशिश की थी कि एका बना कर कांग्रेस और भाजपा का चुनाव में मुकाबला किया जाए। लेकिन वह कोशिश कामयाब नहीं हो पाई और भाजपा 31 प्रतिशत वोट लेकर केंद्र में बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब हो गई।

ऐसे में देश की सभी सामाजिक न्याय और समाजवाद की विचारधारा को मानने वाली राजनीतिक पार्टियों और नागरिक समाज संगठनों में एका की तत्काल जरूरत है। व्यक्तिवाद, परिवारवाद और क्षेत्रवाद की प्रवृत्तियों को छोड़ कर आजादी की लड़ाई और संविधान के मूल्यों के आधार पर यह एका होना चाहिए। यह होने पर अगले चार साल बाद होने वाले आमचुनाव में कारपोरेट ताकतों के खिलाफ देश की मेहनतकश जनता की जीत निश्चित होगी।

भाई वैद्य
अध्यक्ष

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