– संदीप पाण्डेय
नोएडा प्राधिकरण के अभियंता यादव सिंह की कार से मिले रु. 10 करोड़ की घटना फिर इस बात के महत्व को उजागर कर रही है कि भारी रकमों के आवागमन को रोकने के लिए बड़े नोटों जैसे रु. 1000 व रु. 500 का चलन बंद किया जाना चाहिए। यह मांग कई सामाजिक कार्यकर्ता व बाबा रामदेव लंबे समय से करते रहे हैं। जब अण्णा हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चर्चा में था तो वित्त मंत्री द्वारा बुलाए जाने वाले सालाना बजट पूर्व सलाह मशविरे में लेखक ने लगातार दो वर्ष 2011 व 2012 में यह सुझाव रखा था।
विदेशी बैंकों में जमा काला धन भारत वापस लाए जाने का मुद्दा भी रह रह कर भारतीय राजनीति में उठता रहा है। भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में 627 ऐसे खातों की जानकारी की बात को स्वीकार किया है। इस मुद्दे पर इतना हल्ला-गुल्ला मचा है कि आशंका इसी बात की है कि अब तक इनमें से ज्यादातर खातों में से पैसा निकाल लिया गया होगा। यदि बड़े नोटों का चलन न होता तो भारत से बड़ी रकमों को बाहर ले जाना भी आसान नहीं होता।
2005-06 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अरुण कुमार का अनुमान था कि भारत में काले धन की अर्थव्यवस्था सकल घरेलू उत्पाद का 50 प्रतिशत तक हो सकती है और इसमें से 10 प्रतिशत पैसा बाहर जा चुका है।
काले धन की अर्थव्यवस्था पर अंकुश लगाने के लिए कुछ व्यक्तियों को निशाना बनाने, जैसा कि विदेशी बैंकों से काला धन वापस मंगाए जाने के सवाल पर होता है, से काम नहीं चलेगा। या फिर हरेक यादव सिंह पर कितने ऐसे होंगे जो पकड़ में नहीं आते। और पकड़े भी गए तो कितने ऐसे हैं जिन्हें सजा होती है? हमें व्यवस्थागत समाधान चाहिए होंगे ताकि काले धन की समस्या का समाधान निकले और और जो पैसा देशी-विदेशी काले धन की अर्थव्यवस्था में चलन में है उसकी वापसी हो।
काले धन का निवेश जमीन, जेवर, बहुत मंहगी कारों, आदि में जाता है। बेनामी सम्पत्ति या जेवर खरीदने के लिए नकद का आवागमन भी होता है। अतः काले धन की अर्थव्यवस्था में बड़ी रकम की उपस्थिति व उसका आवागमन अनिवार्य है। यातायात संचालन का उदाहरण लें तो यदि किसी सड़क पर हम बड़ी गाडि़यों का जाना रोकना चाहते हैं तो उस सड़क को संकरा बनाया जाएगा। इसी तरह बड़े नोटों को खतम कर हम बड़ी रकम का आवागमन कुछ हद तक रोक सकते हैं।
राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों के लिए भी चुनावों में काला धन बड़ी मात्रा में संग्रहित करना मुश्किल होगा। अतः इस उपाय में चुनाव सुधार की भी गुंजाइश है। बल्कि काले धन के अस्तित्व का बड़ा कारण चुनावी राजनीति है। मुख्य धारा के लगभग सभी दलों का वित्तीय पोषण काले धन से हो रहा है और हमारे देश के अंदर के काले धन की अर्थव्यवस्था भ्रष्ट, आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को हमारी संसद व विधान सभाओं में पहंुचाती है। इसमें विदेशी बैंकों में जमा काले धन, जिसको लेकर ज्यादा हल्ला होता है, की विशेष भूमिका नहीं है। शायद इसीलिए हमारे राजनीतिक दल स्थानीय अर्थव्यवस्था में विद्यमान काले धन की चर्चा नहीं करते। काले धन की आतंकवाद, नशीली दवाओं, हथियार व इंसानों के व्यवपार में भी बड़ी भूमिका है।
सरकार राजस्व बढ़ोतरी के नए उपाय खोजती रहती है। रु. 1000 व रु. 500 जैसे बड़े नोटों को खतम कर अपनी आय बढ़ाने के बारे में अभी उसने गम्भीरता से विचार नहीं किया है। यह कोई नया सुझाव नहीं है। किंतु के्रडिट कार्ड, इंटरनेट पर लेनदेन, मोबाइल सेवाओं व अन्य प्रौद्योगिकी के आ जाने से नए संदर्भ में इस पर विचार करने की आवश्यकता है।
सरकार को दो-तीन माह का समय देते हुए एक समय सीमा, जैसे 31 मार्च, 2015, तय करनी चाहिए जिसके अंदर लोग तय बैंकों में जाकर रु. 1000 व रु. 500 के नोटों के बदले में रु. 100 के नोट प्राप्त कर सकें। इसके लिए सिर्फ एक पहचानपत्र जरूरी होना चाहिए। ंिकंतु एक ही व्यक्ति अलग-अलग जगह विभिन्न पहचान पत्रों का इस्तेमाल न करे इसके लिए उसका फोटो, उंगलियों के निशान या आंख की तस्वीर ली जानी चाहिए। एक पहचान पत्र से एक व्यक्ति को कितनी भी बार जाकर पैसा जमा कराने की छूट मिलनी चाहिए।
इसका नतीजा यह होगा कि लोग बड़ी राशि का भुगतान इलेक्ट्रानिक तरीके से करना पसंद करेंगे। उदाहरण के लिए यदि कोई महिला रु. 2 लाख के जेवर खरीद रही है और नकद भुगतान करना चाहे तो उसे रु. 100 के 20 बंडल ले जाने पड़ेंगे तो बहुत असुविधाजनक होगा। ऐसे में लोग क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड और चेक का इस्तेमाल करना ज्यादा पसंद करेंगे। इससे सरकार को मिलने वाले कर की मात्रा बढ़ेगी। सिर्फ काला धन रखने वालों को ही दिक्कत होगी। जो ईमानदारी की कमाई का इस्तेमाल करना चाहेंगे उनके लिए लेन-देन के तमाम वैध रास्ते होंगे।
काला धन रखने वालों के लिए फिर भी बहुत आसान नहीं होगा। जिनके पास बहुत ज्यादा काला धन होगा वे फिर भी संकोच करेंगे। सरकार को 50-60 प्रतिशत पर कर के साथ स्वैच्छिक रूप से अपने धन को घोषित करने की छूट देनी चाहिए।
इस योजना का देश की 90 प्रतिशत जनता पर तो कोई प्रभाव पड़ेगा ही नहीं जो कभी बड़े नोटों का इस्तेमाल करती ही नहीं। मात्र 2-3 प्रतिशत अति भ्रष्ट और अमीर लोग ही इससे प्रभावित होंगे। ईमानदारी की कमाई वालों, चाहे वे कितने भी अमीर क्यों न हों, पर भी इसका कोई नहीं असर पड़ेगा।
अतः इस योजना से सरकार के पास कर आएगा, काले धन वाली अर्थव्यवस्था समाप्त होगी और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। इससे चुनाव सुधार के साथ-साथ आतंकवाद, नशीली दवाओं, हथियारों व मनुष्य को अवैध रूप से लाने-ले जाने पर भी कुछ अंकुश लगेगा।
कोई भी योजना सौ प्रतिशत सही तो होती नहीं। लोग अवैध काम के तरीके ढूंढ़ लेते हैं। बड़ी राशियों के लेन देन के लिए हवाला मार्ग अथवा सोने के सिक्कों का प्रयोग हो सकता है। इससे समानांतर अवैध अर्थव्यवस्था अस्तित्व में आ जाएगी। किंतु इसकी सम्भावना कम है क्योंकि ऐसी अर्थव्यवस्था काफी सीमित रहेगी। यदि ऐसा होता भी है तो भी स्थिति आज जितनी बुरी तो नहीं होगी जिसमें खुलकर काले धन कर इस्तेमान समाज में हो रहा है। इस योजना से काला धन रखने वालों को असुविधा तो होगी ही। ऐसे लोग जो प्रलोभन पाते ही भ्रष्ट बन सकते थे हो सकता है कि खतरे को देखते हुए भ्रष्ट न बनें।
जिनके पास ज्यादा काला धन होगा हो सकता है वे अपने रिश्तेदारों या नौकरों के नाम पर नोट बदलवाने का काम करें। इसे रोकने के उपाए सोचने पड़ेंगे। एक व्यक्ति कितनी बार नोट बदल सकता है उस पर सीमा तय की जानी चाहिए। इससे ज्यादा बार नोट बदलने पर उसे पिछले तीन वर्षों का अपने आयकर भुगतान का विवरण देना चाहिए।
यदि गम्भीरता से सोचें तो ऐसी योजना जन हित में तो होगी भले ही वह सम्पन्न व भ्रष्ट नौकरशाहों व नेताओं के हित में न हो। यदि सरकार तुरंत ऐसा फैसला न लेना चाहे तो इस सुझाव के अध्ययन हेतु एक समिति तो बना ही सकती है जैसा वह उन सभी मामलों में करती है जिनके क्रियान्वयन में उसकी रुचि नहीं होती।