गणतंत्र दिवस: संप्रभुता का सवाल
प्रेम सिंह
26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू होता है और हम दुनिया के मंच पर एक संप्रभु गणतंत्र के रूप में प्रवेष करते हैं। तब से हर 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाता है, जो हमारी संप्रभुता का उत्सव है। गौर करें तो पाएंगे कि 1991 में नई आर्थिक नीतियां लागू होने – यानी षासक वर्ग द्वारा देष की आर्थिक संप्रभुता के साथ समझौता करने – के बाद से गणतंत्र दिवस का उत्सव ज्यादा से ज्यादा प्रदर्षनकारी होता गया है। पिछले करीब तीन दषकों में जैसे-जैसे आर्थिक संप्रभुता के साथ राजनीतिक संप्रभुता पर भी समझौता होता गया, प्रदर्षनकारिता में भी तेजी आती गई है। राजपथ पर प्रदर्षन की यह पराकाश्ठा देखी जा सकती है।
सवाल है कि गणतंत्र दिवस पर प्रदर्षनकारिता के परवान चढ़ने के साथ क्या हमारी संप्रभुता भी परवान चढ़ी है? नवउदारवाद के दौर में किए गए समझौतों और फैसलों पर सरसरी तौर पर नजर डालने से ही पता चल जाता है कि षासक वर्ग ने सरकारों को संविधान, जिसमें हमारी संप्रभुता निहित है, की धुरी से उतार कर नवउदारवाद की पुरोधा वैष्विक पूंजीवादी आर्थिक संस्थाओं – विष्व बैंक, अंतराश्टीय मुद्रा कोश, विष्व व्यापार संगठन आदि – की धुरी पर बिठा दिया है। ये समझौते और फैसले वैष्विक पूंजीवादी आर्थिक संस्थाओं के आदेषों के मातहत देषी-विदेषी कारपोरेट घरानों, बहुराश्टीय कंपनियों के हितों के लिए लिए किए गए हैं। पिछले 70 सालों में देष में कुछ भी नहीं होने की बात करने वाले मौजूदा नेतृत्व ने अढ़ाई साल के षासन काल में देष की संप्रभुता को गिरवीं रखने में पिछले नेतृत्व से ज्यादा तेजी दिखाई है। आजादी और उसे हासिल करने की कुर्बानियों का मूल्य नहीं समझने के चलते संप्रभुता खोने की बात उन्हें नहीं सालती। नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के साथ भी यही समस्या थी। तभी उन्होंने आजादी के संघर्श की पार्टी को आजादी गिरवीं रखने वाली पार्टी में तब्दील कर दिया।
गणतंत्र दिवस मुख्यतः सैन्य षक्ति के प्रदर्षन का उत्सव होता है। षासक वर्ग सेना की मजबूती को संप्रभुता की मजबूती के रूप में पेष करता है। लेकिन रक्षा-क्षेत्र में सौ प्रतिषत विदेषी निवेष की छूट और अमेरिका को सुरक्षातंत्र में घुसपैठ की छूट के चलते यह तसल्ली झूठी है। लेकिन सरकारें, खास कर मौजूदा सरकार, राश्टभक्ति का उन्माद पैदा करके देष की जनता को भ्रमित करती है कि वह सरकार के संवैधानिक संप्रभुता के प्रति द्रोह को नहीं देख-समझ पाए। राश्टभक्ति का उन्माद केवल पाकिस्तान के खिलाफ पैदा किया जाता है, जिसे परास्त करने की क्षमता भारतीय सेना में हमेषा रही है। भारत का कई हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र चीन के कब्जे में है। षासक वर्ग उसके सैन्य समाधान के लिए राश्टभक्ति का उन्माद पैदा नहीं करता। कुल मिला कर गणतंत्र दिवस की परेड सम्मिलित रूप से षासक वर्ग, उसका हिस्सा नागरिक समाज और साधरण जनता के लिए संप्रभुता खोने से पैदा होने वाले खोखलेपन को भरने की कवायद बन जाती है। संप्रभुता पर नवसाम्राज्यवादी षिकंजा जितना कसता जाएगा, यह कवायद भी अधिकाधिक बढ़ती जाएगी। उग्र राश्टवाद उग्रतर होता जाएगा।
यह स्थिति बेहद उलझी और निराष करने वाली है। लेकिन यह संप्रभुता बचाने और उसे मजबूत बनाने की बड़ी चुनौती भी पेष करती है। खास कर देष के युवाओं के सामने। उन्हें समझना होगा कि संप्रभुता खोने वाला देष महाषक्ति नहीं हो सकता। युवा नई तैयारी और समझदारी से अपनी भूमिका तय करेंगे और निभाएंगे तो स्थिति बदली जा सकती है।
On Sunday, 22 January 2017, 13:42, mguru.ai