कोरोना क्रांति के बाद

कोरोना क्रांति के बाद

अरुण कुमार त्रिपाठी | हमारी अजेय वैज्ञानिक क्षमताएं वास्तव में कितनी अजेय हैं। कुदरत अभी भी हमसे ज्यादा ताकतवर है या हम उससे अधिक शक्तिशाली हो चुके हैं। लोकतंत्र ही सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था है या मनुष्य के लिए अधिनायकवाद की ओर लौटना लाजिमी होगा?

कोरोना वायरस के नाम पे

कोरोना वायरस के नाम पे

संदीप पाण्डेय | कोरोना वायरस को रोकने नाम पर प्रचार ज़्यादा है. अयोध्या में राम लल्ला को संस्थानान्तरित करने का धार्मिक अनुष्ठान जारी है.

In the Name of Coronavirus

In the Name of Coronavirus

Sandeep Pandey | Steps taken to check the spread of coronavirus appears merely to be a public relations exercise. Otherwise, how is the Parliament still functioning, when all other public institutions have been closed; why are religious activities in temples of Ayodhya or Gorakhpur still continuing?

शहीद-ए-आजम भगत सिंह के स्मृति में विशेष

शहीद-ए-आजम भगत सिंह के स्मृति में विशेष

नीरज कुमार | भगत सिंह की यह निश्चित मान्यता थी कि “व्यक्तियों को नष्ट किया जा सकता है, पर क्रांतिकारी विचारों को नष्ट नहीं किया जा सकता।

डॉ॰ राममनोहर लोहिया के जन्मदिवस पर विशेष

डॉ॰ राममनोहर लोहिया के जन्मदिवस पर विशेष

नीरज कुमार | डॉ॰ लोहिया का जीवन और चिंतन दोनों एक प्रयोग था । यदि महात्मा गांधी का जीवन सत्य के साथ प्रयोग था तो डॉ॰ लोहिया का जीवन और चिंतन समतामूलक समाज की स्थापना के लिए सामाजिक दर्शन और कार्यक्रमों के साथ एक प्रयोग था ।

कोविड-19 : चार सुझाव

कोविड-19 : चार सुझाव

प्रेम सिंह | वायरस का सामाजिक संक्रमण होता है तो हालत भयावह होंगे. विशाल आबादी, नितांत नाकाफी स्वास्थ्य सेवाएं, अस्वच्छ वातावरण, व्यापक पैमाने पर फैली बेरोजगारी, जर्जर अर्थव्यवस्था जैसे कारको के चलते बड़े पैमाने पर मौतें हो सकती हैं

राजनीति और धर्म

राजनीति और धर्म

नीरज कुमार | जब तक धर्म संप्रदायवादी, अलगाववादी कट्टरपंथियों के हाथों में रहेगा, इसका गलत इस्तेमाल होता रहेगा । इसलिए धर्म को नकारने कि नहीं बल्कि उसे सहिष्णु रूप में रखने की जरूरत है ।

सोशलिस्ट पार्टी युवा सभा सम्मेलन प्रस्ताव विषय: रोजगार बने मौलिक अधिकार

सोशलिस्ट पार्टी युवा सभा सम्मेलन प्रस्ताव विषय: रोजगार बने मौलिक अधिकार

बेरोजगारी एक व्यापक व भयावह समस्या बन चुकी है परंतु देश की आजादी के सत्तर वर्ष से ज्यादा बीत जाने के बाद भी सत्ता में रही सरकारों तथा राजनीति दलों ने इसे मुद्दा बनाया पर मौलिक अधिकार बनाने की जरूरत कभी नही समझी गयी